Tuesday 27 June 2017

आवरण

मन आंगन की कोमलता 
हरगीज न खोने दीजिए ....
दीन दुखियों से दयालुता का
भाव भी कम न होने दीजिए ..
राह चलते राहगिरों के लिए ....
मन आंगन को बर्फ के तरह
पिघलने भी न दिया कीजिए ....

कोमल जान मतलबी करते
रहते अपनी ही उल्लू सीधे ....
लोगों की फितरत होती है
सरलता का लाभ उठाने का
नारियल के तरह कठोरता का
आवरण हमेशा ओढ कर रहिए ....
बहुत सी बुरी बलाओं से बचके
अवश्य ही तुम निकल जाओगे  ....

सीधे सच्चे अंजाने ही जाल में
फँस जाते हैं दुष्टों के चक्कर में
एहसास होने पे छटपटाकर भी
निकल न पाते हैं चंगुल से उनके
ऐसी स्थिति आन न पड़े भूलके
बिन सोचे समझे पग न बढ़े कभी
सही गलत की पहचान है जरूरी
निर्णय हानि लाभ पर न हो कभी 
कठोर बनना मुश्किल  लगे भले ही
सच्चाई का आवरण बहुत जरूरी

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