Thursday 31 August 2017

इश्क

  आरजूँ इश्क की तुमसे मुद्दत से की
  ये तुम पे फैसला छोड़ दिया है कि ,
  तुम अहले वफा के बदले इश्क को
   रूहानियत से बाँध लो या बेवफाई
   का जख्म दे,जग में करो रूसवाईयाँ  ।।

   मैंने खुद को किया इश्क के हवाले
   प्रीत का एक घरौंदा अपने दिल में ,
   जाने कितने ही शिद्दत से बनाया है
    तुम्हारी मूरत को बसा लिया उसमें
   बना दिया है खुद को तेरी परछाईंयाँ  ।।
    
   जाने कैसी येअनकही रूहानी एहसास
   अंकुर इश्क का पनपा,अजब है प्यास
    प्रिये दिल में छुपे कई अनछुये जज्बात
   शब्द लुप्त है किन्चिंत लव थरथराता
   उन्माद में इश्क के,लगे हंसी कायनात ।।
     
   सज़दा की तेरी राह,रूह की रौशनी से  
   तुम जितने भी दूर चले जाओ मुझसे ,
   मुमकिन नहीं निकलना परछाईंयों से 
   चाहे कितने ही कोशिश कर लो पर तुम
  निकल न पाओगे मेरे इश्क की कशिश से..।।

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