Saturday 5 August 2017

क्षितिज

क्षितिज से सागर जब मिलते ..
एक विहंगम दृश्य बन जाता ।
नयनों में कई सारे भाव जगाते..
छवि प्यारी मन को बहुत सुहाती  ।
किसने रचा ये मनोरम संसार ?
मन ही मन मैं ये सोचती रहती ।
क्या ऐसा मोहक जग होगा ?
क्षितिज के पार जब हम जाएँगे ।
कौन जानता?
 कैसा होगा वो संसार ?
 जाने मन में आते कितने ही विचार ?
 फिर  मन ने कहा ..
 तू जी ले पहले इस जहान को ।
 खुशियों से भर ले अपने दामन को ।
  नभ के पार है जग कैसा?
 भला है किसे पता?
  जो है सामने उसे जान ले!
  जीवन के पल अनमोल !
  नेह लगा ले सबसे ..
 

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