आज प्रातः कालीन
की सैर पर ..
मैंने देखा एक
आलीशान बंगला
जो बन गया अब
खंड़हर ..
जिसे देख मैं
सोचने लगी
कितने यत्न से
लोग संजोते हैं
एक घरौंदे को ..
हर एक चीज
पसंद के लगवाते..
जाने कहाँ कहाँ से
टाइल्स पत्थरों व
डिजाइन से सजाते
अपने सपनों के
बंगलों को..
एक से एक सुंदर
पेंटिंग करवाते ..
पर कहते हैं न !
हर एक चीज की
अवधि नियत होती..
सो मालिक के
रूखसत होते ही..
देखरेख के अभाव में
बंगाला भी खंड़हर में
तब्दील हो जाता ..
बनाने वाले जिस
अभिरुचि से बनाते
उसकी कदर दूसरे
को नहीं होती ..
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