शिव की महिमा अपरमपार
करते सब प्राणियों का उद्धार
इनके हाथों में डमरू
गले में सर्पों की माला
जटाजूट हैं भोले दानी
माथे पे फूटती गंगधारा ..
शिव से ही संसार है
पर हैं वो निर्विकार
उनका न घर द्वार है
कैलाश पर्वत में बसेरा है ..
वो खाते भांग धतुरा हैं
नंदी सवारी उनको प्यारा है..
वो आशुतोष हैं,आदि शिव हैं
शक्ति में शिव निहित है
देवों के देव महादेव
वो तो ओढ़रदानी हैं
मार्कण्डे की रक्षा करते
काम देव को करते भस्म
श्मशान में ही वास करते
वो तो रमता जोगी हैं ..
मृगछाला वस्त्र पहनते
भूत प्रेत संग करते नृत्य
पार्वती के संग ही रहते हैं ..
जग की भलाई करने को
किये शंभुनाथ विष को पान
वो तो नीलकंठ कहलाते हैं ..
प्रेम के वशीभूत हो देते
सबको अभय वरदान
दानव, मानव हो या देवता
विपदा जब किसी पे पड़ती
शंकर जी हर लेते सब संताप हैं..
किये अहं को चूर दक्षप्रजापति के
त्रिदेव हैं ,त्रिनेत्र है, अर्धनारिश्वर हैं
तांडव नृत्य कर नटराज कहलाते हैं ..
हाथो में त्रिशूल ले रक्षा करते जगके
अंग में विभूती गले में रूणद्र माल है ..
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