Tuesday 31 July 2018

भूल सुधार / लघुकथा

सुबह सुबह रवि को बहुत  सारे लोगों के जोर जोर से बोलने की आवाज सुनाई दी ... ।
वो भी आवाज की दिशा में चल पड़ा । उसने घर के पिछुआड़े में पोखर के बराबर पाट पर देखा बहुत से लोगों को गहन विचार विमर्श करते हुए । नजदीक पहुँच कर उसने किसी से पूछा आखिर माजरा क्या है ....?
उसने कहा नीचे देखो ...!
नीचे एक अर्धविकसित नन्हीं के शव  देख वो एकाएक चौंक गया....!!
सबने बताया ! हीरा चाची सुबह पोखर नहाने आई उसी ने
नन्हीं के शव को किनारे में देख गाँव वाले को बताया ...
सभी लोग आपस में सोचने लगे आखिर कैसे ढूँढा जाए इस जघन्य पापी को ....?
फिर विचार हुआ ! नर्स को सबके घर जाँच करने भेजा जाए..... ।
जल्दी ही सच्चाई सबके सामने आ गयी... "वो एक कुँवारी किशोरी निकली ...।"
नन्हीं के पिता कौन है सबने जानने के लिए उसपर दबाव बनाया ...।
लड़की ने जिस लड़के पर अंगुली उठाई वो गाँव के संभ्रांत परिवार का सजातिय बेटा ही निकला ... सब कोई आश्चर्य चकित हो गए... !
लड़की ने बताया, शादी के झांसे देकर उसने रिश्ते बनाया .....बाद में वो मूकर गया ....।
लड़की और उसकी माँ पापा फफक कर रोने लगे....और
कहने लगे भूल सुधार का यही उपाय सूझा....हम गरीब बड़े लोगों का क्या कर लेंगे ....?
पंचों ने लड़की और उसके माता पिता को पहले बहुत डाँटा...उसने कहा तुम लोग कब तक इस कूपमंडुता से निकलोगे..... !
" चोरी छिपे संबंध बनाने वाले धूर्त इंसान रिश्ते को कभी
भी अपना नाम नहीं दे सकता ...?"
शुरू में लड़का स्वीकार ही नहीं कर रहा था अपनी  संलग्नता..... !
"जब पंचायत वाले ने डी एन ए टेस्ट और मामले को कोर्ट में खिंचने की धमकी दी तो .....वो मान लिया अपना करतूत....।"
इस तरह का जघन्य अपराध फिर से कोई करने की हिम्मत न करे, इसलिए पंचों ने विचार विमर्श कर दोनों की शादी कराना ही उचित समझा ... ।
फिर पंचायत वाले ने लडका व उसके घर वाले पर ..... "किशोरी से शादी करने का फैसला सुनाया । गाँव वाले के उग्र रूख को देखकर और परिवार की बची खुची इज्जत  को ढकने के लिए शादी करने में ही उसने अपनी भलाई समझी..।"
सबके उपस्थिति में, "उसने लड़की के गले में माला डालकर मांग भर दिया ...पंचों के इस शर्त पर कि वो लड़की को कभी प्रताड़ित नहीं करेगा ।"

भूल सुधार / लघुकथा

सुबह सुबह रवि को बहुत  सारे लोगों के जोर जोर से बोलने की आवाज सुनाई दी ... ।
वो भी आवाज की दिशा में चल पड़ा । उसने घर के पिछुआड़े में पोखर के बराबर पाट पर देखा बहुत से लोगों को गहन विचार विमर्श करते हुए । नजदीक पहुँच कर उसने किसी से पूछा आखिर माजरा क्या है ....?
उसने कहा नीचे देखो ...!
नीचे एक अर्धविकसित नन्हीं के शव  देख वो एकाएक चौंक गया....!!
सबने बताया ! हीरा चाची सुबह पोखर नहाने आई उसी ने
नन्हीं के शव को किनारे में देख गाँव वाले को बताया ...
सभी लोग आपस में सोचने लगे आखिर कैसे ढूँढा जाए इस जघन्य पापी को ....?
फिर विचार हुआ ! नर्स को सबके घर जाँच करने भेजा जाए..... ।
जल्दी ही सच्चाई सबके सामने आ गयी... "वो एक कुँवारी किशोरी निकली ...।"
नन्हीं के पिता कौन है सबने जानने के लिए उसपर दबाव बनाया ...।
लड़की ने जिस लड़के पर अंगुली उठाई वो गाँव के संभ्रांत परिवार का सजातिय बेटा ही निकला ... सब कोई आश्चर्य चकित हो गए... !
लड़की ने बताया, शादी के झांसे देकर उसने रिश्ते बनाया .....बाद में वो मूकर गया ....।
लड़की और उसकी माँ पापा फफक कर रोने लगे....और
कहने लगे भूल सुधार का यही उपाय सूझा....हम गरीब बड़े लोगों का क्या कर लेंगे ....?
पंचों ने लड़की और उसके माता पिता को पहले बहुत डाँटा...उसने कहा तुम लोग कब तक इस कूपमंडुता से निकलोगे..... !
" चोरी छिपे संबंध बनाने वाले धूर्त इंसान रिश्ते को कभी
भी अपना नाम नहीं दे सकता ...?"
शुरू में लड़का स्वीकार ही नहीं कर रहा था अपनी  संलग्नता..... !
"जब पंचायत वाले ने डी एन ए टेस्ट और मामले को कोर्ट में खिंचने की धमकी दी तो .....वो मान लिया अपना करतूत....।"
इस तरह का जघन्य अपराध फिर से कोई करने की हिम्मत न करे, इसलिए पंचों ने विचार विमर्श कर दोनों की शादी कराना ही उचित समझा ... ।
फिर पंचायत वाले ने लडका व उसके घर वाले पर ..... "किशोरी से शादी करने का फैसला सुनाया । गाँव वाले के उग्र रूख को देखकर और परिवार की बची खुची इज्जत  को ढकने के लिए शादी करने में ही उसने अपनी भलाई समझी..।"
सबके उपस्थिति में, "उसने लड़की के गले में माला डालकर मांग भर दिया ...पंचों के इस शर्त पर कि वो लड़की को कभी प्रताड़ित नहीं करेगा ।"

Friday 27 July 2018

सावन सुहावन

घनन घनन घन मेघा बरसे
सावन आये जिया हर्षाये

बिजली चमके दामिनी दमके
मुझको डराए कारी कारी रैना
रह रह के मेरे ये दिल धड़के
आई है कैसी रूत ये सुहानी 

घनन घनन घन मेघा बरसे
मन आंगन में खुशियाँ बरसे

बागों में कोयल कू कू कुहके
सावन में देखो पड़ गए झूले
कजरी गावे सखी सब मिली के 
प्रियतम संग सब पींगे झूले

घनन घनन घन मेघा बरसे
सावन आए जिया जलाये

हाथों में सब मेंहदी सजावे
करके श्रृंगार पिया को रिझावे
विरह की मारी किछु नहीं भावे
तुम बिन सजन मुझे चैन न आवे

घनन घनन घन मेघा बरसे
मोरे पिया परदेश सिधारे

जा रे बदरा तू जिया न जला
विरह की मारी वन वन भटकूँ
ओ री पवन तू पी को बूला ला
पड़ जाए चैन मोरे हिया को

घनन घनन घन मेघा बरसे ..
सावन आए जिया हर्षाये

Thursday 26 July 2018

वादा

नेट पर पी सी एस का रिजल्ट देखते ही शंकर के आँखों से खुशी के अश्रु बहने लगा । उसके बेजान जीवन को मानो संजिवनी बूटी मिल गई ...।

अपने माँ पापा व गुरूजनों के आशीर्वाद लेने के बाद...वो
जल्दी जल्दी वाइक निकालकर आनन- फानन में ही पहुँच गया अपने प्रियतमा के घर सफलता का परचम लहराने....।

जहाँ,प्रिया के मम्मी पापा के साथ सभी लोगों ने ढेरों बधाईयाँ दी,सब कोई गर्मजोशी से उसका स्वागत करने लगे। इसी पल के इन्तजार में उसने जाने कितने ही रातें  जग के बिता दिया था ....।

रिजल्ट निकलने से पहले वो डरा डरा सा रहता, पेपर से संतुष्ट होने के बावजूद स्पर्धा के भेंड़ चाल से भयभीत था  ..।
रात दिन यही ख्याल सता रहा था कि, अगर उसका सेलेक्सन पी सी एस में नहीं हुआ तो प्रिया से जीवन भर
 के लिए बिछुड़ जाएगा । अब कोई मौके भी नहीं देंगे प्रिया के घरवाले ..।

दोनों का मिलना एक इत्तेफाक ही था..."जाने कैसे एक
दिन शंकर की नजर प्रिया पे पड़ गई....!
जबकि दोनों का क्लास अलग अलग था । शंकर बी ए आनर्स और बी एस सी में प्रिया थी...।"

शंकर का अधिकतर समय प्रिया का पीछा करने में बर्बाद होने लगा । वो जहाँ जाती पीछे पड़ जाता । पढ़ने लिखने में उसका मन तो लगता नहीं था, बस प्रिया के प्यार में दीवाना बना फिरता । इस चक्कर में मेधावी प्रिया की पढ़ाई बाधित हो रही थी ... ।

"नाहक ही प्रिया बदनाम हो गई थी...।"

एक दिन प्रिया ने हिम्मत करके शंकर से कहा, अगर आपको मुझे पाना है तो कुछ बनके दिखा दीजिए.. मैं आपसे शादी करने के लिए अपने घर वालों को मना लूँगी ....।

परन्तु जब तक आप कुछ न बन जाएँ, हमसे न मिले इसका वादा करना होगा ...।

"शंकर ने बोला ठीक है पर ये बात तुम्हारे मम्मी पापा के मुँह से सुनना चाहता हूँ... ।"

प्रिया ले आई शंकर को अपने घर, परिवार के लोगों ने भी यही कहा ...।
"आज शंकर ने लक्ष्य भेद कर प्रेम को नई उँचाई बख्स दी...!!"
कहते हैं गर प्यार सच्चा हो तो उसे मिलाने में सारी कायनाते एक हो ही जाती ...।

बुलंद हौसला

उफान देख नदियों का
मांझी गर दिल थाम ले
छोड़ दे हाथ पाँव चलाना
तो मझधार में ही डूबके
रहेगी किस्ती उनकी ..
हिम्मत वाले तूफानो को
गुजर जाते छू के ..

नाव लहरों के हवाले
छोड़ देते हैं बुजदिल
बुलंद हो अगर हौसला
तो समुन्दर के बीच से
वो जाते हैं निकल ..

जग के जाने कितने झमेले
अनेकों होते यहाँ भेड़ चाल
जीवन के इस माया जाल
से निकलना बहुत मुश्किल
आत्मबल से मिलता है हल

जो मन से हार मान ले
डर जाए देख लहरों को
वो बैठे रहते साहिल पे
घबरा के...
साहस को जो साथी बना ले
वो ही पार करते भव सागर को..


Tuesday 24 July 2018

मुक्ति / उषा झा

इस बार गाँव गई तो पता चला, दयालु को चौथी बेटी हो गई ।
हर किसी के जुबान पे हाय हाय सुनने को मिल रहा था । सब यही कहता, वो अनपढ़ एक खेती के भरोसे कैसे बेटियों को पढ़ायेगा.. ? दहेज के लिए धन कहाँ से लाएगा.. ?

"भगवान ने उसके साथ बड़ा अन्याय किया... !...एक बेटा देते तो उनका क्या जाता ..?"

"मुझे ये सब सुनकर बहुत गुस्सा आया.. ! मैंने पति पत्नी को समझाने का मन बनाया ...। "

"अगले ही दिन पहँच गई उसके घर ! दयालु ने पैर छुआ, फिर दौड़कर अपने पत्नी रमा को बुलाया, उसने भी पैर छुआ ..मैंने भी घझउसे गले लगाकर , स्वास्थ्य वगैरह की जानकारी ली ।"

मैं दयालु से बात कर ही रही थी कि ...कहीं से लाल काकी आ गयी । लाल काकी के पैर मैंने छूआ , फिर वो अपनी बीमारियों का चर्चा करने लगी । इतने में रमा चाय बनाके ले आई ...।
अब जो कहने उसके घर गई थी वो कहना शुरू किया ...।

"मैंने रमा और दयालु से कहा ! बहुत नासमझी तुमलोगों ने दिखा दी ..!  बेटा के चक्कर में कितने बेटी पैदा करोगे ..?"

दयालु से कहा डॉ के पास जाकर बीवी का लेप्रोस्काॅपिक आपरेशन करा लो, मामूली खर्चों में निबट जाओगे ! रमा को अधिक पीड़ा भी नहीं होगी,एक दो दिन में स्वस्थ हो जाएगी ।

"लाल काकी सब सुन रही थी,वो बीच में ही बोल पड़ी..
बाकी सब तो ठीक पर बिन पुत्र के मुक्ति कैसे मिलेगी ..?"

"जल देने वाला न हो तो भूत बनके पेड़ पर लटकना पड़ेगा ।"

अचानक मेरी आवाज तल्ख हो गई ....मोक्ष के अंधविश्वास में  पूरे परिवार तिल तल कर मरे... ! सिर्फ जलदाता के लिए..!
  ये कैसा पंथ..... ? कैसा धर्म....?
"जहाँ बेटी उचित लालन पालन व शिक्षा को तरसे ....!
 मरने के बाद की बात किसे पता ..?"

 

Monday 23 July 2018

सच्ची श्रद्धांजलि

कल जब पापा आए थे कितने स्वस्थ थे ...सुबह के नाश्ते व दिन के खाने तक  कितनी गप्पें हुई जरा भी आभास नहीं हुआ
रिया को कि ,उनको कोई तकलीफ है ।
शाम को फिर से आने की बात कहकर गए भाई के घर । आधी रात में खबर आई पापा बहुत सिरियस हैं ....।
सोते बेटे को छोड़ भागी वो हास्पिटल पर न जाने विधि को   क्या मंजुर था ...? जीवन भर का गम देकर सुबह सुबह  जुदा हो गए हमेशा के लिए ...!

शोक संतप्त परिवार ऐसे दुख में डूबा कि होश ही नहीं रहा
अगले ही दिन बच्चों के फाइनल परीक्षा है ....।
खैर बच्चे बेचारे खुद अपना ध्यान रखकर पढ़ाई कर रहे थे ।
पूरे घर में खचाखच भीड़ लगी थी...

 पड़ोसियों और पंडित जी के बताए अनुसार चंदन के धूप शुद्ध घी का अंखड दीप जलाकर , तुलसी, मखान पान, गंगाजल ,
सोना व शहद पापा के मुख में डालकर रिया फफक पड़ी.... जार बेजार रोते रोते देशी घी का मालिश करते हुए वो बेसुध
ही हो गई ...।

भाई - भाभी और रिश्तेदारों ने माँ को संभाला हुआ था ..।
खैर शाम होते होते गाँव से भी भाभी भाई आ गए ....।
पार्थिव शरीर को हरिद्वार ले जाने की तैयारी होने लगी तो पंडित  ने नाती रिशू को भी साथ ले चलने के लिए रिया से कहा....।
 उनकी मान्यता थी ... नाती का लकड़ी देना हर नाना नानी के सौभाग्य की बात होती है ।

 खैर माँ की इच्छा देखकर, "रिया ने रिशु से कहा चलो नाना जी की आत्मा की शांति के लिए तुम्हारा लकड़ी चढाना जरूरी है....।"
 
वो आया नाना जी के उपर फूल डालकर पैर छूकर प्रणाम किया । फिर सबसे  कहा ! कल मेरा फिजिक्स का पेपर है ,
अगर मैं गया तो रात भर का समय बरबाद हो जाएगा... ।

"कल के पेपर में फिर मैं शत प्रतिशत नम्बर लाने से चुक  जाऊँगा ।"

"अगर मुझे परीक्षा में अच्छे अंक आएँगे तो नाना जी को बहुत खुशी होगी ... क्योंकि नाना जी की दिली इच्छा भी यही रहती थी ....।"
" नाना जी के लिए  सच्ची श्रद्धांजलि भी यही है मेरी .....।"
नौवें क्लास के बच्चे के तर्कसम्मत बातें  सुन सब अचंभित हो गए...!!

 
 .

Sunday 22 July 2018

मनमौजी सफाई कर्मचारी (लघु कथा/ उषा झा)

जिला अस्पताल में भागम भाग मची है ..मंत्री जी आ रहे औचक निर्क्षण को । सुप्रिटेन्डेन्ट साहब का हाथ पाँव फूला
हुआ है, कारणअस्पताल में चारो तरफ गंदगी फैली हुई है... ।
सफाई कर्मचारी एक दिन की छुट्टी पे गया पर तीन दिन से आया नहीं है...।
ड्यूटी पर होता भी तो ठीक ढंग से काम कहां करता ..थोड़ी
बहुत साफ सफाई कर, दिन भर गप्पें लड़ाना बस यही उसका
रूटीन होता... । "हमेशा पी के थोता नारा देता अपने कर्मचारियोंपर हुए अन्याय और ज्यादितियों का....।"
कई बार डाँट भी लगाते सी एस साहब फिर भी उसपर कोई
असर नहीं  ! उलटे और दो तीन दिनों की छूट्टी कर लेता.. ।
सफाई कर्मचारी के अनुपस्थिति से अस्पताल में चारों ओर 
गंदगी ही गंदगी दिखाई देता । दुर्गंध के वजह से डॉ और स्टाफ  का काम करना मुश्किल हो जाता.... ।
ऐसी विकट स्थिति से दो चार न होना पड़े इसलिए सुप्रिटेन्डेन्ट साहब उसकी मनमानी सहते जा रहे थे ...।
जिसका नतीजा आज भुगतना पड़ रहा है .. "मंत्री जी अगर इस हालत में देख ले अस्पताल तो सुप्रिटेन्डेन्ट साहब की छुट्टी तय ही है ..।"
उन्होंने तुरंत ही आदेश दिया स्टाफ को.." कहीं से तत्काल मजदूर बुला के ले आओ ....!"
सभी डॉ कम्पाउन्डर नर्सो को अपने अपने वार्ड की साफ सफाई चाक चौबंद करने को कहा  ...।
"सुप्रिटेन्डेन्ट साहब ने मन ही मन फैसला लिया चाहे जो भी हो
ड्यूटी में लापारवाही करने वाले को बख्सा नहीं जाएगा ।"

    

Wednesday 18 July 2018

सुन वो नन्हा बालक

सुन वो नन्हा बालक

ज्ञान की पंख लगाके
उड़ना तू आकाश तलक
बढाना मान माता पिता का
न करना अपमान नारी का
मशाल अपने हाथों में लेके
नई राह दिखलाना जग को

जनम देके माँ तुझको
सुन्दर सृजन दी धरा को
करना गौरवान्वित उनको
करना न शर्मशार कोख को
वर्ना रोयेगी ममता उनकी

सुन वो नन्हा बालक

नौ महीने गर्भ में रखके
नई दुनिया दिखाती शिशु को
होता नया जन्म  स्त्री का
बेटा हो या बेटी टुकड़ा उनके दिल का
रगों में एक ही खून बहते दोनों के

सपना हर माता पिता का
राहों पे चले संतान नेकी के
करें ऐसे काम नाज हो सबको
देख उसके बुद्धि व विवेक
बन जाए वो पथ प्रदर्शक विश्व के

सुन वो नन्हा बालक

क्यूँ  पथ से गए भटक
वासना के ज्वाला में युवक
क्यों कर दर्द देते लड़की को
बनाकर शिकार अपने हवस का
भूल गए स्त्री के खून मांस के
हिस्से से बना है शरीर उसका

सुन वो नन्हा बालक ..



 




Tuesday 17 July 2018

अभिसार

बीते लम्हें दिलबर की यादें दिला जाती
लबों पे फिर मीठी मुस्कान सी छा जाती

वो खूबसूरत शमां मैं कहां भूला पाती 
हसीन यादों के सफर में यूँ  चली जाती

जेहन में अब तलक ताजा है वो जज्बातें
उम्मीद जैसे मिलन की आस जगा जाती

रोज ख्वाबों में आके तू नींदे चुरा जाते
यादें फिर अश्कों से तकिये भिंगो देता

भूलने न दुँगी मैं हूँ ऐसी तेरी प्रियतमा
 कराने को अभिसार भेजूँगी मैं मेघदूत

प्रीत न करना किसी के बस की नहीं बातें
सच्चे प्रेयसी उम्र भर मुहब्बत निभा जाते ..

उषा झा  (स्वरचित)
उत्तराखंड (देहरादून)










Monday 16 July 2018

सुकून

किसी के आरजू में दीवाना हुआ मन
खोके अपनी चैन बेसुध हुआ मन
कर दिया उनके हवाले अपना जीवन 
मुहब्बत में लुट के मिटा दी मैं पहचान ..

लूट के जहां मेरा वो हैं बने अंजान
कभी याद न करता बेखबर हैं बने
बड़े ही निष्ठुर हैं मेरे बेदर्दी साजन
कभी लुभाता नहीं उन्हें मौसम सुहाना ..

मुश्किल है जीना अब उनके बिना
 मेरा सातो जनम उनपे ही कुर्बान
 एक बार कर ले मेरे प्रेम पे यकीन
भर दूँ खुशियों से मैं उनका दामन  ...

नसीबों की बात है प्रियतम से मिलना
बिन पिया अमावस लगे पूनम की चाँदनी
विरहा की मारी अब मैं भटकूँ वन वन
वो ले ले सुधी रूह को मिल जाए सुकून



Sunday 15 July 2018

शहनाई

आ ही गई वो रात सलोनी
बजने लगी आंगन में शहनाई
मन मयूर होके मगन लगे झूमने
नैनों में छाने लगी सतरंगी सपने 
मीठी मीठी मिलन की चुभन
मचलने लगी दिलों में धड़कनें
पिया से अंखिया मिलाने के दिन
 आ गए सखी री ..

आंगन में मंड़प अब सजने लगे
माँ दुल्हा को परीक्षण कर ले आई
 दुल्हन बन सब सखियों के संग 
वरमाला पिया को डाल लजा गई
हर्षोल्लास में पुष्पों की वर्षा होने लगी
शहनाई मधुर तान छेड़ने लगी
पिया से अंखिया मिलाने के दिन
आ गए सखी री ..

बाबा की दुलारी परायी हो गई
नैहर की दहलीज छुट जाएगी
बचपन के अल्हड़पन छोड़
फर्ज और जिम्मेदारियों में
मासूमियत कहीं दब जाएगी
 दस्तूर ए जमाने की तकाजा 
विदाई की विरह सहनी ही पड़ती ..
हर बाबुल के आंगन शहनाई
बजने की खुशियाँ जिया हर्षाती  ..

Friday 13 July 2018

गर्भपात

ये सच है सहमति बिना औरतों के
संभव नहीं हो सकता गर्भपात ।
नारी हमेशा विकट परिस्थियो के
सामने हो ही जाती है नतमस्तक
जो जन्म देती उनकी कायरता को ।
संबंध खराब होने के भय या आर्थिक
निर्भरता जड़ है ऐसे जघन्य कुकृती के ।

हर माँ का फर्ज करें थोड़ी साहस
मुकाबला करें समाज के ठेकेदारों से
अपने ही कोख की बच्चियों को वो
बचा ले बच्चियों को दुष्ट जालिमों से
करें माँ हर संभव प्रयास बचाने का
कैसी भी परिस्थिति उत्पन्न हो जाए
महरूम न हो अजन्मी बच्ची जीवन से ।

सृष्टि की मूल तो बेटियाँ ही होती
कोख में अपने बीज को संभालती
नारी और धरती में है समानता
सबों को हमेशा देना ही जानती
बिन खेत बीज कैसे उपजेंगें ?
अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगी !
नौ महीने जिसे गर्भ में सहेजती
वही पुरूष उसे कैसे हैं कुचलते?
सृष्टि तो खत्म हो ही जाएगी ,
कन्या भ्रूण हत्या गर होती रहेगी ।

प्रकृति प्रदत्त समरूपता रब ने बनाई
खत्म इसे करने पे उतारू है मानव क्यूँ ?
गर बेटी न हो तो बहू कहाँ से आएगी ?
पीढ़ी दर पीढ़ी वंश कैसे आगे बढ़ेगी?
बिन बहनों के घर में खुशियाँ न चहकेगी !
भाइयों की कलाईयाँ सूनी ही रह जाएगी !
गर्भ से अजन्मे बिटिया की चीख 'मत मारो'
माँ पापा के ये अपराधबोध चैन छीन लेगी ।
लाड़ली के किलकारियाँ बिहिन आंगन
जैसे लगेगी मायूस, उदास व श्रीहिन ...

Thursday 12 July 2018

सबल संकल्प

घनघोर विरोध के बाद भी आखिरकार संजय ने आज मंदिर में
अपने माता पिता की उपस्थिति में अपनी सगी भाभी को पंड़ितजी के द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ ही मांग भर डाला ।

संजय के माता पिता के चेहरे से अजीब संतोष झलक रहा था,
"हो भी क्यों न...? बहू के गर्भ में पल रहे संतान को छोटे बेटे ने नई जिन्दगी जो दे दिया  ...।"
उन्हें याद आ रहा था वो मनहूश दिन जब लीवर कैंसर से पीड़ित बड़े बेटे अजय ने आखिरी साँस ली थी ...."परिवार में मानो गमों का पहाड़ टूट पड़ा था  ...।"

"नई गर्भवती बहू को देख उनका कलेजा मुँह को आता ...।"

 थोड़े दिनों के लिए उन्होंने  मायके वालों के आग्रह पर बहू को जी बहलाने के लिए भेज दिया ..."ताकि वो खुद को संभाल सके  ...।"

पर कुछ दिनों के बाद ही,... बहू के घरवाले ने अपनी बेटी के पुनर्विवाह के लिए गर्भ गिराने की बात कही तो," उनके पाँव तले जमीन खिसक गई ...।"

"अपने बड़े बेटे की आखिरी निशानी को वो किसी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे ...।"

अपने माता पिता को जार बेजार रोते देख, "छोटे बेटे संजय ने मन ही मन भाभी के हाथ जीवन भर थामने का सबल संकल्प  लिया ....।"

"ये बात गाँव में आग की तरह फैल गई ...कट्टर ब्राह्मण परिवार में ऐसी हिम्मत किसी ने नहीं की थी...। अतः सबने हुक्का पानी बंद करने का ऐलान कर दिया ...। अपने खानदान के लोगों ने भी संजय के परिवार को  घर से निकलने के चारों तरफ से रास्ते बंद कर दिए..।
  
"संजय ने फिर भी हार नहीं मानी... ।"

अपने माता पिता को गाँव से लेकर निकलते वक्त फिर से आने की बात कहकर .....
"वे लोग नियत समय पर मंदिर पहुँच चुके थे ....।"

"जहाँ बेटी को लेकर मायके वाले पहले से मौजूद थे ..।"
 
 

 
 

Wednesday 11 July 2018

बदलते वक्त

गृहप्रवेश पे सारे ही रिश्तेदार आए हुए हैं ।आज बड़ी ही रौनक है रिया और रूपक के घर में ।हवन और पूजन के बाद लोगों के भोजन का निगरानी पति पत्नी स्वयं कर रहे हैं ।वे लोग बहुत खुश खुश हैं आज ...क्योंकि सपने का घरौंदा आखिर  तैयार जो हो गया ...।
 
सास - ससुर व भाई- बहनें रिया से चाशनी में डूबो डूबो कर घर के डिजाइन व नक्से की तारीफ करते ही जा रहे ..परंतु रिया और रूपक बिना टिप्पणी दिए, उदासीन होके अनसूनी कर देते एक एक बातें ..."सिर्फ फीकी मुस्कान लिए कनखियों से देख लेते उन्हें ...।"

"बहुत सी बातें उमड़ घुमड़ रही थी उनके दिलों में, पर उसे दुहराकर आज के शुभ मुहूर्त के आनंद को वो जाया न करना चाहते हैं ... ।"

पर कटु यादें, तो मन मस्तिष्क में चिपक ही जाता है ..लाख कोशिशें कर लो ! वो पीछा ही नहीं छोड़ते... !
पति पत्नी को याद आने लगा वो दिन ,जब एक ही शहर में   देवर के घर महिनों रहकर माँ बाबूजी लौट जाते ....उनके घर
आना मुनासिब न समझते...।

"कारण किराये के घर में रहने में अशोकर्य लगता उन्हे ...।"

 जबकि रिया और रूपक उनके सेवा में कोई कोताही नहीं बरतते ..। उनके खान पान दवाइयों पर विशेष ध्यान देते ... ।
शाम को रूपक ड्यूटी से आते ही वाॅक पर ले जाते ,परन्तु एक दो दिन बाद ही माँ बाबूजी रहकर चले जाते... ।

देवर के सरकारी घरों की आफिसरी शान ही उन्हें सुहाता..। ननदें ननदोई व बाकी भाई बहनों का हाल भी
क्रमशः ऐसा ही था ...।

 रिया और रूपक आज बदलते वक्त के पदचाप सुन, अपने पाँव को जमीन पर जमाए हुए है ...। रिश्ते के बाजार हर इन्सान अकेला होता,  सिर्फ अपना धैर्य व संतोष का संबल होता है...।

Monday 9 July 2018

संयुक्त परिवार

नीलू को आज  मायके की बहुत याद आ रही थी ...उसका मन कर रहा था उड़कर चली जाएँ वहीं । घर के कोने कोने से उसे  अकेलेपन की बास आ रही थी ...।
शहर में ससुराल होने से रोमांचित वो विवाहोपरांत  बहुत ही खुश हुई ...।
परंतु ,जल्दी ही," वहाँ के एकल परिवार के निरवता से विचलित हो उठी ...।"
"सब कोई हमेशा जल्दी में रहते, परिवार के सदस्यों को इकट्ठे
खाना तो दूर, मिलना या बातचीत करना मुश्किल से कई दिनों बाद ही हो पाता ...।"
संयुक्त परिवार में पली नीलू को अपने मायके परिंदों के घर जैसा ही लगता था । अपने कजिन के साथ चिड़ियों के तरह फुदकती चहचहाती । हमेशा घर के चारों ओर झरनें की मानिंद कलकल ध्वनि गूँजता रहता । परिवार के सब सदस्य इकट्ठे खाते । ताई ,चाची व माँ मिलके खाना पकाती ।
बहनों व भाइयों की बदमाशियाँ व मस्तियाँ याद कर उसके नयनों से नीर बहने लगे ...।
पर  मन ही मन उसने सोचा, "बीती बातों को यादकर दिल दुखाने से क्या फायदा ..?"
अपने  वर्तमान को सुन्दर बनाने के लिए हमें सकारात्मक प्रयास करना चाहिए... ।
नीलू ने अपनी सासू जी से कहा , माँ जी आप सबसे रात के भोजन साथ में खाने और रविवार के दिन साथ में बिताने के नियम बना दीजिए ...तभी सभी में आपसी प्यार पनपेगा ।
"उसी समय उसने अपने पति से ससुराल के सभी बड़े व छोटे सदस्यों -  ससुर, जेठ, ताईजी,  चाचीजी, ननद, ननदोई और कजिन देवरों का नम्बर अपने मोबाइल में सेव किया... ।"
"फिर व्हाटसप पर ससुराल नाम से ग्रूप बनाया ...।"
"अब नीलू को ससुराल में एकाकीपन महसूस न होता, कारण सब से गपशप कर लिया करती ...।"
अब सभी लोग एक दूजे के गमों व खुशियों में हमेशा शरीक होते ...वास्तव में संयुक्त परिवार मजबूती से आपस में जुड़ गए ।"

Sunday 8 July 2018

दीवानी

तेरे प्यार में ऐसी हुई दीवानी
खुद पे बस न रहा लुट गया चैन

धड़कनें भी अब कहना न माने
तेरे एक झलक को तरसे नैन
 
कैसा जादू तूने कर दिया सजन
तुझ में ही बसे है अब मेरी जान
 
बाली उमर में लगती ये रोग कौन
बगावत की बिगुल करने को है ठान

देखो सजन आई रूत मस्तानी
कटे न तुझ बिन मेरे दिन रैन

कुछ भी न रहा बस में अपना
मेरा सब कुछ है तेरे पे कुर्बान

 
 












 

Saturday 7 July 2018

पैगाम

उन तक कोई ये पैगाम देदे
उल्फत की एक वो शाम देदे
बैचेन निगाहों को करार देदे
मनमीत को कोई संदेश दे दे
आके रूह की प्यास बुझा दे ..

उम्मीद में दिये बैठी हूँ जलाए
गर आ जाए जो परदेशी सजन
दिल को भी आराम मिल जाए
उन से बिछुड़ के जीना मुश्किल
प्रियतम बिन अब चैन नआए
 
ठहर जाएगी रूत भी सुहानी
जब आएँगे मेरे हरजाई सनम
नाचने लगेगा तब मन का मयूर
धरा आसमां भी झूमने लगेगी
 बागों में कलियाँ खिलने लगेगी
 
पिया तेरे ही वास्ते है हर श्रृंगार
तुझ बिन फीका फीका जीवन
तू जो कहे तो खुद को दूँ निसार
तुम बिन मुझको जीना न गँवारा
तुम बिन अब मेरा कौन सहारा

 

Thursday 5 July 2018

जिद्द (सीमाओं का बंधन ..)

कितने दिनों से चल रहे वकीलों के जिरह के बाद कोर्ट के फैसले अनुसार शालू और सौरभ अंततः आज अलग हो ही गए ...।
एक मेधावी डॉ और एक मेधावी ईन्जिनियर का एक छत के नीचे रहना अत्यंत मुश्किल हो गया था । 
कहीं से उड़ती खबर आई कि,तलाक की पेशकश लड़की के तरफ से था ...
 किसी को समझ में न आया, इतनी सुशील शालू क्योंकर इतनी रूड हो गई । जबकि,स्वभाव से गंभीर सौरभ निहायत स्मार्ट एवं मेधावी डॉ थे ।
"लोगों ने आपस में कानाफूसी की,  शायद ये दिल का मामला है ....।"
 शालू की माँ बहुत ही सख्त मिजाज की थी । अपने बच्चों को सीमाओं के बंधन से घेर रखा था ...किसी भी बच्चे में उस  लक्षमण रेखा को पार जाने की इजाजत नहीं थी...

परंतु, न चाहते हुए भी शालू ने बड़ी बहन के चचेरे देवर जो बी टेक का छात्र था  उसको दिल दे बैठी ..। डरते डरते ये बात उसने माँ को भी बता दिया ।
परंतु जिद्दी माँ ने, "उसकी एक न सुनी..क्योंकि एक ही घर में दो रिश्ते उसे मंजूर नहीं था । "
"उसने ये भी न सोचा ! मेधावी इन्जिनियर बिटिया को कोर्स पूरे होने दे ..! उल्टे, अलग फिल्ड के लड़के डॉ से शादी करा दी ।"..
शालू भी कम जिद्दी नहीं थी उसने पति के साथ कभी रिश्ते बनने ही नहीं दिया । लाख समझाने के बावजूद ... "कोर्स कमप्लिट होते ही जाॅब मिलने के साथ उसने तलाक की अर्जी अदालत में दे डाली ..।"
इस तरह एक जिद्द में  दो जिन्दगी बरवाद हो गई ...

Tuesday 3 July 2018

सेल्फ काॅन्फिडेंन्स

आज राजेश एन डी ए में सेलेक्सन की खुशी में मिठाई का डिब्बा लिए, मेरे घर आके मेरे पाँव छू रहा ...।अचानक खुशी मिश्रित आँसू ढलक गए मेरे गालों पर और आशीर्वाद वाले हाथ उसके सिर पर जा पड़ा ...।
"सचमुच उसको देख के मैं फूली नहीं समा रही थी ...।"
मुझे याद आने लगा वो दिन, "जब सुदूर गांव से दुबला पतला लंबा सा एक युवक आया देहरादून, एन डी ए की तैयारी करने ।"
वो  दूर के मेरे रिश्तेदार था... इसलिए उसके पापा  लोकल गार्जियन हमें बनाना चाहते थे ।
मेरे ही कोलोनी के आसपास उसे कमरे दिलाकर वो चले गए ।
लड़का बड़ा ही संस्कारी था .. खुद ही खाना बनाता, बर्तन धोता साथ साथ मन लगाकर कम्पिटिशन की तैयारी भी करता था ।
हमेशा ही एक ही जोड़े सफेद कुर्ते पजामे में आता ..रत्ती भर दाग धब्बे न रहते उसके कपड़े में ...। कभी कभी मेरे बच्चों के सवाल भी बता दिया करता ...  लेकिन हर सवाल हिन्दी में बताता..। चूँकि गाँव से आया था तो अंग्रेजी कमजोर था उसका ...।
एक दिन मैंने उससे पूछा बेटा , "मैथ्स इतना अच्छा है तो तुम  इन्जिनियरिंग में क्यों नहीं जाना चाहते ...?"
  "आर्मी आफीसर में जाने के लिए अंग्रेजी मजबूत होना जरूरी है ...! कहीं इनटरव्यू में तुम्हें दिक्कत न हो ....!"
उसने बोला," दीदी एन डी ए में सेलेक्सन होने पे सरकार खर्चे देगी पढ़ाई के लिए ।" ईन्जिनियरिंग में पढ़ाने में पापा को परेशानी होगी," दोनों छोटे भाई भी पढ़ नहीं पाएगा क्योंकि आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है उनकी ।"
बाद में अपने स्कालरशिप से मैं भी पापा की मदद करूँगा।
जहाँ तक अंग्रेजी की बात है, "थोड़े दिन ट्यूशन करके व मेहनत  से ठीक कर लूँगा ... ।"
उसके सेल्फ काॅन्फिडेंन्स देख मैं अचरज में पड़ गई.. ।
उसने फिजीकल फिटनेश के लिए पढ़ाई के साथ साथ प्रशनाइलिटी डवलपमेन्ट पे भी खूब मेहनत किया ..जिसके परिणामस्वरूप,सच में आज वो मेधावी छात्र राजेश अपनी कथनी को हकीकत में बदल दिया ...।"