Friday 27 July 2018

सावन सुहावन

घनन घनन घन मेघा बरसे
सावन आये जिया हर्षाये

बिजली चमके दामिनी दमके
मुझको डराए कारी कारी रैना
रह रह के मेरे ये दिल धड़के
आई है कैसी रूत ये सुहानी 

घनन घनन घन मेघा बरसे
मन आंगन में खुशियाँ बरसे

बागों में कोयल कू कू कुहके
सावन में देखो पड़ गए झूले
कजरी गावे सखी सब मिली के 
प्रियतम संग सब पींगे झूले

घनन घनन घन मेघा बरसे
सावन आए जिया जलाये

हाथों में सब मेंहदी सजावे
करके श्रृंगार पिया को रिझावे
विरह की मारी किछु नहीं भावे
तुम बिन सजन मुझे चैन न आवे

घनन घनन घन मेघा बरसे
मोरे पिया परदेश सिधारे

जा रे बदरा तू जिया न जला
विरह की मारी वन वन भटकूँ
ओ री पवन तू पी को बूला ला
पड़ जाए चैन मोरे हिया को

घनन घनन घन मेघा बरसे ..
सावन आए जिया हर्षाये

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