Saturday 7 July 2018

पैगाम

उन तक कोई ये पैगाम देदे
उल्फत की एक वो शाम देदे
बैचेन निगाहों को करार देदे
मनमीत को कोई संदेश दे दे
आके रूह की प्यास बुझा दे ..

उम्मीद में दिये बैठी हूँ जलाए
गर आ जाए जो परदेशी सजन
दिल को भी आराम मिल जाए
उन से बिछुड़ के जीना मुश्किल
प्रियतम बिन अब चैन नआए
 
ठहर जाएगी रूत भी सुहानी
जब आएँगे मेरे हरजाई सनम
नाचने लगेगा तब मन का मयूर
धरा आसमां भी झूमने लगेगी
 बागों में कलियाँ खिलने लगेगी
 
पिया तेरे ही वास्ते है हर श्रृंगार
तुझ बिन फीका फीका जीवन
तू जो कहे तो खुद को दूँ निसार
तुम बिन मुझको जीना न गँवारा
तुम बिन अब मेरा कौन सहारा

 

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