Saturday 8 December 2018

घुंघरू

विधा - गीत

मंदिर महफिल में बजे इसकी शान
मधुर धुन सुनाके लुभाना है पहचान

घुंघरू छन छन छनक कर
बहुत ही इतराए वो खुद पर
कला पुजारी पग बांधे जब जब
लुभाता है मधुर धुन तब तब 
अप्सरा पग बांध छीने देवों के चैन
मंदिर से महफिल ....

मंदिर में भजन का वो श्रृंगार
ईश के आराधना में बजकर
छीन लेता भक्तों के मन प्राण
राज दरबार में साजों के शान
छनक पे नर्तकी के डोला सिंहासन
मंदिर से महफिल तक....

देव व दानव हो या मानव
रिझाता घुंघरू सबके मन
देवालय से लेके विद्यालय
सियासी गलियों के वो जान
नसीब में फिर भी न सम्मान 
मंदिर से महफिल तक...

नृत्यांगना के नृत्य पर घुंघरू
मुदित हो छेड़ता सुरीला स्वर
वाह वाह करते थकते न कोई
देवदासी पग बाँध हुई मशहूर
प्रभु को ही जीवन करती अर्पण
मंदिर से महफिल ...

बाजार में जब छनके घुंघरू
तब छेड़े सरगम दर्द भरी धुन
मजबूरी में बहुत बहाते अश्रु
सिसक उठता है रूह बैचेन
आशिकों की चाह दिलाए घुटन
मंदिर से महफिल ...

कोठे की महफिल में सजकर
बिक जाता है घुंघरू बारंबार
हुस्न वालों के वाह से आहत
कई बार बिखर जाता वो टूटकर
कच्ची कली बांधे तब आए रूदन
मंदिर से महफिल ....

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