विधा- दुमदार दोहे
बहु भाग्य वृन्दावन के, बाल-कृष्ण का रूप।
नटखट माखन चोर बन , लगते कृष्ण अनूप ।।
जी लीला धर ले उड़े ।
नेह गोपी के उमड़े ।।
चोरी माखन नित्य ही , करें सखा, गोपाल ।
गोपी करें शिकायतें, जाते थे वो टाल ।।
जब कान्हा पकड़े गए ।
गोप संग जकड़े गए ।।
मुग्ध नैन ब्रजवास के, देख अलौकिक रास ।
मोहित राधा, कृष्ण पर, बंसी फूँके श्वास ।।
वो यशुदा का लाड़ला ।
गुपियन का भी लाड़ला ।
ब्रजभूमि के भाग्य खुले, कण कण में भगवान ।
पूरा द्वापर में हुआ , देवकि को वरदान ।।
कंस संहारा गया ।
दानव मारा गया ।।
भूल कृष्ण सबको गए, धेनु, यमुन के तीर ।
राज-काज में वे बहे, गुपियन बहता नीर ।।
बाम अंग रुक्मी नार ।
गोवर्धन अँगुर धार ।।
पार्थ कृष्ण को बहु प्रिय , सौपा गीता ज्ञान
मोह भंग अर्जुन हुआ, नष्ट हिया अज्ञान।
बने सारथी मित्र के ।
महभारत के चित्र थे।।
पाण्ड़व अकेले जब हुए, सिर्फ कृष्ण थे साथ ।
कुचला सिर अन्याय का , मिली जीत प्रभु हाथ ।।
दिखा मार्ग, मानव दिए।
;रूप विराटी धर लिए।।
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