विधा - दूमदार दोहे
जटा चंद्र ग॔गा बसे , अद्भुत योगी राज।
डमडम डमरू बज रहे,नाच रहे नटराज ।।
शिव के माला साँप ।
नंदी जाये भाँप ।।
शोभते रुद्राक्ष गले , रक्तिम नेत्र विशाल ।
भूत प्रेत नंदी लिये , घूमते महाकाल ।।
भस्म रमाये अंग ।
शिखर पार्वती संग ।।
भोले निर्मल हृदय के , पल में दें वरदान ।
दानव भी जब पूजते , दे तभी महादान ।।
अमर हुए सब देव
खुश हुए महादेव ।
समुद्र मंथन जब हुआ, निकले थे विष सोम ।
माणिक लूटे देव सब, देख मोहनी भौम।
सभी दानव देव लडे।
अमृत पान को वे अड़े ।।
कौन हलाहल विष पिये ,आफत मे थी जान ।
देव असुर,भयभीत थे , शंभु किए विष पान ।।
सब कहे नील कंठ ।
सभी क्रोध में संठ ।।
गौरी संग प्रसन्न शिव , रहते हैं कैलाश ।
होते हैं भक्त अति प्रिय ,करे दुष्ट का नाश ।।
भोले, भोले नाथ ।
वे है दीना नाथ।।
पाप जगत में जब बढे, धरे रोद्र शिव रूप ।
जब त्रिनेत्र खुलते गए, खत्म सृष्टि के भूप ।।
करे माफ शिव भूल ।
हरे भक्त के शूल ।।
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