Friday 27 September 2019

बेरहम

कैसे करूँ उनकी बंदगी
बीच राहों पर है जिन्दगी

 वफा की कीमत ही चुकाई
 मिला सिर्फ मुझको रुसवाई
 छँटे नहीं  नैन से भ्रम कभी
  करता था हर दिन दरिन्दगी
  कैसे करूँ उनकी बंदगी ...

  ढाया सितम टूटा दिल कहीं
  दिया हृदय में वो जगह नहीं
  दिल में भरती सिर्फ आह ही
  साथ पल भर के दिए दर्द ही
  बची है अब तन्हा जिन्दगी
  कैसे करूँ उनकी बंदगी ...

उषा झा देहरादून
 

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