कैसे करूँ उनकी बंदगी
बीच राहों पर है जिन्दगी
वफा की कीमत ही चुकाई
मिला सिर्फ मुझको रुसवाई
छँटे नहीं नैन से भ्रम कभी
करता था हर दिन दरिन्दगी
कैसे करूँ उनकी बंदगी ...
ढाया सितम टूटा दिल कहीं
दिया हृदय में वो जगह नहीं
दिल में भरती सिर्फ आह ही
साथ पल भर के दिए दर्द ही
बची है अब तन्हा जिन्दगी
कैसे करूँ उनकी बंदगी ...
उषा झा देहरादून
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