Friday 27 September 2019

शिव ही सृष्टि

विधा - दूमदार दोहे

जटा चंद्र ग॔गा बसे , अद्भुत योगी राज।
डमडम डमरू बज रहे,नाच रहे नटराज ।।
शिव के माला साँप ।
नंदी   जाये  भाँप ।।

शोभते रुद्राक्ष गले , रक्तिम नेत्र विशाल ।
भूत प्रेत नंदी लिये , घूमते  महाकाल ।।
भस्म रमाये  अंग ।
शिखर पार्वती संग ।।

भोले निर्मल हृदय के , पल में दें वरदान ।
दानव भी जब पूजते , दे तभी महादान ।।
अमर हुए सब देव
खुश  हुए  महादेव ।

समुद्र मंथन जब हुआ, निकले थे विष सोम ।
माणिक लूटे देव सब, देख मोहनी भौम।
सभी दानव देव लडे।
अमृत पान को वे अड़े ।।

कौन हलाहल विष पिये ,आफत मे थी जान ।
देव असुर,भयभीत थे , शंभु किए विष पान ।।
सब कहे नील कंठ ।
सभी क्रोध में संठ ।।

गौरी संग प्रसन्न शिव , रहते हैं कैलाश ।
होते  हैं भक्त अति प्रिय ,करे दुष्ट का नाश ।।
भोले, भोले नाथ ।
वे है दीना नाथ।।

पाप जगत में जब बढे, धरे रोद्र शिव रूप ।
जब त्रिनेत्र  खुलते गए, खत्म सृष्टि के भूप ।।
करे माफ शिव भूल ।
हरे भक्त के शूल ।।

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