Saturday 14 September 2019

दोहे ( शृंगार रस)

तुम बिन जीना है सजा , कुछ पल बैठो पास ।
जां निसार तुझपर करूँ, मुझपर कर विश्वास ।।

बने प्यार से नीड़ में , खिले प्रीत के फूल ।
टूटे अब न ख्वाब कभी , तेरे उड़े दुकूल ।।

तन तेरे स्वेत धवला, हृदय भरती प्रकाश ।
अधर से शहद पटकते , रूप बहुत है खास ।।

उँचा कद खड़ी नासिका, लगती बड़ी कमाल ।।
ग्रीवा सुराही लगता , हिरणी सी है चाल  ।।

तेरे  नैना  सीप  से ,  मन  लेते  हैं   मोह ।
मुख बिखरे काली घटा, करते उर विद्रोह ।।

जूड़े में सजा गजरा , करती तू मदहोश ।
लुभा रूप तेरा रहा ,किसको दूँ मैं दोष  ?

बोली मिश्री सी लगे , नैन कटीले बैन ।
झुकाती जब हो पलकें ,छिनती मेरा चैन ।।

नैनों में अजीब नशा, बढा रहे उन्माद ।
चितवन देख दिल पिघले , प्रेम रहे आबाद।।

जीना मुश्किल एक पल , कभी न जाओ दूर ।
संग-संग जीवन कटे , तुम जीवन का नूर ।।

   

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