Monday 23 September 2019

दोहे (वात्सल्य रस)

कितनी हर्षित मै हुई  , पाई जब  संतान ।
तुम्हें देख कर उर भरे, बनो नेक इन्सान ।।

पाकर सुख  मातृत्व का , मै तो हुई  निहाल ।
ममत्व से लोरी भरी,   गाती चूमूँ भाल ।।

नींव नही कमजोर हो , सींच रही दिन रात  ।
उच्च इमारत तुम बनो ,यही हृदय की  बात  ।।

लिखो इबारत तुम नई , देना तुम सौगात ।
रौशन करना नाम  तुम , मिले नहीं आघात ।।

विशाल बरगद से बनो , टिकें जमीं पर पाँव ।
करूँ भरोसा,मै सदा,  दोगे सबको छाँव ।।

बेटी तू ज्योति नयन की, तुझसे चलती साँस ।
धड़कती उर रश्मि ऋचा ,तनुजा मेरी खास ।।

मोहती रश्मि जगत को , हृदय भरे अनुराग ।
ऋचा वेद सी प्रखर है , देख दिल बाग बाग ।।

बोली झरने सी मधुर , तनया तू अनमोल ।
लाती खुशियों की लहर, हृद पट जाती खोल ।।

जीती तुझको देखकर ,निश्छल सी मुस्कान ।
प्रतिमूर्ति दया त्याग की ,तुम मेरी अभिमान ।।

बेटा कोई कम नहीं , श्रेयस उसका नाम  ।
करना अब विभेद नहीं ,दोनों एक समान  ।।

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