उषा हर्ष से लाल है, सूर्य रश्मि विस्तार ।
सबको सुप्रभात कहूँ, नमन करें स्वीकार।
घंटी मंदिर बज रही , मन है प्रभु के द्वार ।
भक्ति भाव उर में जगे, नव्य भाव संचार
मुदित खग वृन्द बाग में , वृक्ष लदे हैं बौर ।
गुलशन भी महका रहा , छाया है नव दौर
पंछी कलरव नभ करे , खिली हुई है धूप
भोर सुहानी द्वार है , लगता दृश्य अनूप ।।
लता कुंज भी झूमते , बहती मलय बहार ।
चहक पिहू कानन रही ,कूकत वो हर बार
दृग लुभाते है किसलय,,द्वार बसंत बहार ।
कोंपल मन में फूटते , बहे प्रेम रस धार ।।
उजले नीले घन गगन , मन को लेते मोह ।
कुसमित कानन देख कर,भटके उर किस खोह ।।
मानव प्रपंच छोड़ दो , कर लो सबसे नेह ।
अभिमान न कोई करो , माटी की यह देह ।।
नि: स्वार्थ बहती नदी ,धरा की बुझी प्यास ।
मांगे बदले में कुछ न , किसी से नहीं आस ।।
नि: स्वार्थ नदी बहती ,धरा की बुझे प्यास ।
बदले में मांगे कुछ न , नहीं किसी से आस ।।
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