विथा- सिंहावलोकित (दोहे)
गाँधी का एक सपना, हिन्सा जग हो खत्म ।
खत्म ईष्या द्वेष करें, मिटा हृदय से क्षद्म ।।
कहते गाँधी थे हमें , रिश्ते रहे प्रगाढ़ ।
प्रगाढ़ प्रेम विभेद बिन,लाओ हृद से काढ़।।
नहीं मनुज भूखा रहे,सपने भर लो नैन
खुशियाँ छलके नैन से ,भरे नेह से रैन ।।
ऊँच नीच निकृष्ट कथन ,सब है एक समान ।
समान काया मनुज के,विचार क्यों असमान।।
जल वायु खुशी गम मिले,सभी ईश के पुत्र ।
पुत्र धर्म का फर्ज कर, लक्ष्य से गुम कुपुत्र ।।
द्वेष हाॅवी मानव पर , राह करे अवरुद्ध ।
राह अवरुद्ध दुखद है , रहते गाँधी क्षुब्ध ।।
बापू ने जो सीख दी, दिल से कर स्वीकार ।
स्वीकार कर स्वच्छ धरा , अब न करो अपकार ।।
No comments:
Post a Comment