Thursday 31 October 2019

कड़वी याद


122 2     122 2           12 22     1222
तुम्हें फिर याद कर आँखें जगी बस पीर सोती है ।
उदासी अब गमों के बीज ही हर वक्त बोती है ।।

कभी तुमने मुझे भी प्यार कर रखते पनाहों में ।
पराये क्यों किया उर जख्म से बेजार रोती है ।।

हृदय तो अब तलक मंजर मिलन के देख कर जीता ।
सुहाने दिन ढ़ले अब भी जतन से क्यों सँजोती है ।।

जला दिल बात कड़ुवी याद करके पिघलती रहती ।
तड़प कर मन मुझे अब आस बंधाती न होती है। ।

हमेशा मन दुखाया जो उसे मैंने दिया ये दिल ।
जगी अब नींद से उनपर सभी विश्वास खोती है ।।

उषा झा (स्वरचित )

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