Friday 1 November 2019

हरि के अद्भुत प्रेम

प्रेम से बंधे प्रभु हैं , अद्भुत प्रभु का रूप ।
मन से जो उन्हें भजते, भक्त लगते अनूप ।।
भक्त लगते अनूप, हैं बस में वो प्रेम के ।
भूल अगर मान लो ,रखे छाँव में नेह के ।।
झूठे चलते बेर , ,वात्सल्य से भरे प्रेम  ।
हृदयंगम में भक्त ,  हरि के अद्भुत  प्रेम ।।

सबरी हो कर के मगन ,हुई प्रेम में लीन
हरि दर्शन को तड़पती , जैसे जल बिन मीन
जैसे जल बिन मीन, प्रेम की भूखी सबरी
सुध बुध दई भुलाय, हर्ष में खुद को बिसरी
 आई जब वह होश , लगे ज्यों हुई बावरी
 हरि को देती बेर, नेह से चखकर सबरी

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