विषय- सुगंधित ,सुरभि, खुशबू , महक , सौरभ
विधा - दोहा (गीत)
दस्तक सर्दी दे रही, लगे सुहावन धूप ।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगतीं हमें अनूप ।।
मन विभोर खुशबू करे , बिखरे हरशृंगार ।
रोम रोम सुरभित हुआ, निखर गया है रूप ।।
मन आंगन पुलकित हुआ, गेह झर रही प्रीत ।
कुसमित है गुल बाग में, हृदय सुगंधित शीत ।।
प्रेम तिक्त उर में भरा , दूर है अब विरक्ति ।
प्रीतम जब हो पास में, हृदय भरा आसक्ति ।।
प्रीत धार में डूब कर , उर नव धरा स्वरूप ।।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगतीं हमें अनूप।।
मुग्ध शीतल नैन भये, किरण मुदित है ओस ।
पुलक मंद समीर रहे , मुग्ध भोर मदहोश ।।
पुष्प लुटा सौरभ रही, भ्रमर गा रहा गीत ।l
मदहोश हुए प्यार में , मन को भाये मीत।।
इतना जादू प्रेम में , बदल गए सब भूप ।।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगती हमें अनूप ।
कोंपल कलियों की खिली ,नैन हुए रंगीन ।
उन्माद बढ़ा भ्रमर का ,तरसे जल बिन मीन ।।
साँझ सुगढ़ मन हेरती , धरती उतरा भानु ।
आकांक्षा प्रीतम मिलन , प्रमुदित हृदय कृशानु ।।
पावन प्रीत अमर भये , हृदय में खिले पुहुप ।
दस्तक सर्दी दे रही , लगे सुहावन धूप ।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगतीं हमें अनूप ।।
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