Monday 25 November 2019

खिले हृदय पुहुप

विषय- सुगंधित ,सुरभि,  खुशबू , महक , सौरभ 
विधा - दोहा  (गीत)

दस्तक सर्दी दे रही, लगे सुहावन धूप ।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगतीं हमें अनूप ।।
मन विभोर खुशबू करे , बिखरे हरशृंगार ।
रोम रोम सुरभित हुआ, निखर गया है रूप ।।

मन आंगन पुलकित हुआ, गेह झर रही प्रीत ।
कुसमित है गुल बाग में, हृदय सुगंधित शीत ।।
प्रेम तिक्त उर में भरा , दूर है अब विरक्ति ।
प्रीतम जब हो पास में, हृदय भरा आसक्ति  ।।
प्रीत धार में डूब कर ,  उर नव धरा स्वरूप ।।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगतीं हमें अनूप।।

मुग्ध शीतल नैन भये, किरण मुदित है ओस ।
पुलक मंद समीर रहे , मुग्ध भोर मदहोश ।।
पुष्प लुटा सौरभ रही, भ्रमर गा रहा गीत ।l
 मदहोश हुए प्यार में , मन को भाये मीत।।
इतना जादू प्रेम में , बदल गए सब भूप ।।
पर्वत तरु पर रवि किरण, लगती हमें अनूप ।

कोंपल कलियों की खिली ,नैन हुए  रंगीन ।
उन्माद बढ़ा भ्रमर का ,तरसे जल बिन मीन ।।
 साँझ सुगढ़ मन हेरती , धरती उतरा  भानु ।
आकांक्षा  प्रीतम मिलन  , प्रमुदित हृदय कृशानु  ।।
पावन प्रीत अमर भये , हृदय में खिले पुहुप ।
दस्तक सर्दी दे रही , लगे सुहावन धूप ।
पर्वत तरु पर रवि किरण,  लगतीं हमें अनूप ।।
  

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