दुख सुख में प्रभु! सब बँटे , तुमने किया विभेद ।
एक सभी तेरे लिए , फिर क्यों करता भेद ?
पिघला तेरा क्यो न हिय, लाचार किए मर्द ।
किसी की झोली भरता, दिया किसी को दर्द ।।
आँच सत्य पर जब नहीं , सच फिर क्यों लाचार ।
दिल को भाता झूठ है, सत्य कैद दीवार ।।
अपना दुख लागे बड़ा , दिखे न दूजे पीर ।
मानव लिपटा स्वार्थ में, देता मन को चीर ।।
कान खोल सुन ले मनुज , प्रेम बसे संसार
जग उजाड़ नफरत भरी,दई मनुजता मार।
क्यों मनुज जड़ खोद रहा ,खुद जाएगा सूख
सिंचित कर नींव अपने, बदले तेरा रूख ।।
देख सूरत रीझ गया , पकड़ा अपना माथ ।
गुण की जिसको परख है, खुशियाँ उसके साथ ।।
उषा झा
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