Saturday 2 November 2019

पहचान

दुख सुख में प्रभु! सब बँटे , तुमने किया विभेद ।
एक सभी तेरे लिए , फिर क्यों करता भेद ?

 पिघला तेरा क्यो न हिय, लाचार किए मर्द ।
किसी की झोली भरता, दिया किसी को दर्द ।।

आँच सत्य पर जब नहीं , सच फिर क्यों लाचार ।
दिल को भाता  झूठ है, सत्य कैद दीवार ।।

अपना दुख लागे बड़ा , दिखे न दूजे पीर ।
मानव लिपटा स्वार्थ  में, देता मन को चीर ।।

कान खोल सुन ले मनुज , प्रेम बसे संसार 
जग उजाड़ नफरत भरी,दई मनुजता मार।

क्यों मनुज जड़ खोद रहा ,खुद जाएगा सूख
सिंचित कर नींव अपने, बदले तेरा रूख ।।

देख सूरत रीझ गया , पकड़ा अपना माथ ।
गुण की जिसको परख है, खुशियाँ उसके साथ ।।

उषा झा

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