त्याग अन्न जल दी कोमारी ।।
इकलौती थी सुता पार्वती ।
हठी अति, मन की बस ठानती ।।
लाडली वो पर्वत राज की ।
वन में रहती, राज त्याग की ।।
पुत्री गौरी थी सुकुमारी ।
तप में उमा, मिले त्रिपुरारी ।।
तप में बरसों जब बीत गए ।
शंभू उमा पर प्रसन्न हुए ।।
बोले वर मांग लो बालिके ।
गौरी तो आपकी साधिके ।
बनूँ संगिनी, चाह तुम्हारी ।
सदियों से आपकी पुजारी
तप में उमा, मिले त्रिपुरारी ।।
मान गए महादेव कहना ।
शिव दुल्हा बन उतरे अँगना ।।
भूत पिशाच व संग देव थे ,
सर्प माल तन भस्म रमे थे ।।
लगते अद्भुत त्रिनेत्र धारी ।
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।
मैना वर को देख डराई ।
नहीं चाहिए शंभु जमाई ।
मात पिता फूट फूट रोये
बेटी उमा ने भाग्य खोये ।
शंभु पिया जन्मों के मेरे,
करो ब्याह की माँ तैयारी
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।
तीनों लोकों के स्वामी की,
हो रही अलौकिक विवाह थी ।।
भाँति भाँति रूप लिए गण थे।
गौरी शिव प्रेम में लीन थे ।।
अद्भुत दृश्य नहीं संसारी ।।
तप में उमा मिले त्रिपुरारी ।।
____________________