Sunday 21 February 2021

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है

2122 1122 1122 22
काफिया - ई
रदीफ - रहती है

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है ।
राह मुश्किल है मगर फिर भी खुशी रहती है ।।

जुल्म की खत्म हदें कत्ल हुआ रिश्तों का ।
पीर इतनी है कि अब नींद खुली रहती है।।

और इंसान परेशान हुआ जाये अब ।
कितने खतरों में घिरी अपनी गली रहती है ।।

ये निगाहें ही करें रोज ही छलनी उसको ।
घर में रहती है मगर फिर भी डरी रहती है ।।

शर्म बेची है निजी स्वार्थ हुआ है हावी।
क्यों बुराई ये तेरे दिल में घुसी रहती है ।।

हद से बाहर तू कभी भी नहीं होना जालिम ।
राख में भी तो कहीं आग छुपी रहती है।

ख्वाहिशें खुशियों' की रखते हैं जमाने में सब ।
पर उषा बेरुखी' से रोज़ दुखी रहती है ।

जिन्दगी फूल है शूलों से भरी रहती है
राह मुश्किल है मगर फिर भी खुशी रहती है

उषा झा देहरादून 

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