Friday 30 June 2017

आस की बारिश

आस की बारिश ख्वाहिशों की
बारात लाई, नेह हृद में जगा गई ।
मनभावनी बरखा की रिमझिम फुहारे
मोहती बडी ,बूँदें मनुहार कर गई ।

पावस की मधुरिम बूँदे तन मन
भिगोंकर अनकही एहसास जगा,
उम्मीदों की बूँदे बरसा जाएगी ..
कुछ  हसीन लम्हें जज्बात के
जिन्दगी जीने के लिए दे जाएगी ..

बारिश की बूँदें अरमानों की रात में
छू कर दिल के तारों को धड़कनों
से खेल, बिन बोले बरस जाएगी...
सजनी को साजन से प्रीत की ड़ोर
से जोड़ जाएगी ....

काश ऐसी बारिश आए जीवन में
मनुज - मनुज में भेद भाव मिटा
दिलों को दिलों से जोड़ जाए....।
नफरतें  हटाकर दिलों को भिंगो
जाए प्रेमरस की बारिश में ....

Thursday 29 June 2017

सबंधों की बलि

क्यूँ मनुज इतने बेरहम हो रहें हैं ?

बेसुमार दौलत की चाहत में सब
नियमों और रिश्ते तोड़ने में लगे हैं
सारे उसूलों और मानवीय संबंधों
की बलि क्यूँ कर आज चढ़ा रहे हैं ....

मानवता रो रही है वसुन्धरा पर
कोमलता खोकर हो रहें हैं सब क्रूर?
माता पिता वृद्धाश्रम में रो रहें हैं
भाई भाई का हक क्यूँ  मार रहे हैं ..

बिटिया को बोझ समझ बेदर्दी से
माँ बाप ही क्यों गला घोंट रहे हैं
गर जी गई नन्हीं तो परायी मान
भेद भाव कर उसको पाल रहे हैं ...

हे मानव सुन ले दिल की पुकार
क्या अपने साथ ले के जाओगे? 
मिट जाएँगें तुम्हारे नामो निशान
धरे रहेंगे सारे,खाख में मिल जाओगे ....

मनुज जो बो रहे वही तो काट रहें हैं  ..
क्यूँ मनुज इतने बेरहम हो रहे हैं...

Wednesday 28 June 2017

बेटियाँ

एक नन्हीं सी बिटिया माँ के
कलेजे से छुपकर ममता के
आँचल में लिपटकर दुनियाँ
के पथरीली रास्ते से अंजान
पहला मासूम कदम रखती ..
बेखबर सी वो नहीं जानती
दुनियाँ की भेड़ चाल, कैसे
मासूम कली भी पीस जाती

राह में अनेकों रोड़े बिछे हो
संकटों के तूफान में घिरी वो
खुद के अस्तित्व को बचा कर
आसमान की उँचाइयों को अब
अपने कदमों से नापना चाहती

गर भेद भाव न हो बेटे बेटी में
राह रोकने की जबरन कोशिश
न करे कोई, तो हर क्षेत्र में झंडे
लड़कियाँ अब फहरा ही देती....

हर रिश्ते को संवारने में जिन्दगी
बिताने वाली बिटिया को दें स्नेह
बिना मर्जी के उसपे थोपे न बंधन
पर न काटे, करें उसपे अभिमान

कर नन्हीं को आजाद,खोल पिंजरे
नभ में करेगी तब स्वच्छंद विचरण 
लाएगी अनेकों खुशियों के तोहफे
बढाएगी वो कुल का मान सम्मान

Tuesday 27 June 2017

आवरण

मन आंगन की कोमलता 
हरगीज न खोने दीजिए ....
दीन दुखियों से दयालुता का
भाव भी कम न होने दीजिए ..
राह चलते राहगिरों के लिए ....
मन आंगन को बर्फ के तरह
पिघलने भी न दिया कीजिए ....

कोमल जान मतलबी करते
रहते अपनी ही उल्लू सीधे ....
लोगों की फितरत होती है
सरलता का लाभ उठाने का
नारियल के तरह कठोरता का
आवरण हमेशा ओढ कर रहिए ....
बहुत सी बुरी बलाओं से बचके
अवश्य ही तुम निकल जाओगे  ....

सीधे सच्चे अंजाने ही जाल में
फँस जाते हैं दुष्टों के चक्कर में
एहसास होने पे छटपटाकर भी
निकल न पाते हैं चंगुल से उनके
ऐसी स्थिति आन न पड़े भूलके
बिन सोचे समझे पग न बढ़े कभी
सही गलत की पहचान है जरूरी
निर्णय हानि लाभ पर न हो कभी 
कठोर बनना मुश्किल  लगे भले ही
सच्चाई का आवरण बहुत जरूरी

Monday 26 June 2017

हिम्मत

कल्पना की उड़ान से संसार नहीं बसता
यथार्थ की नींव मजबूत कंक्रीट से हो बना
सपने के घरौंदे में रहता है प्यार का रिश्ता 
जब इरादा हो पक्का हौसले छू ले बुलंदियाँ 
तो मिट ही जाती है राह की सभी दुश्वारियाँ ....

तूफानों से टकराने की ताकत हो सिने में
कौन रोक सके ,मंजिल तो फिर मिलनी है
कितने ही काँटे व कंकड़ बिछे हो राहों पे
कठिन डगर सुगम बन जाते बुलंद इरादों से

कोई भी मुश्किलें राह को रोक नहीं सकता
अगर मन पर बस हो, पग तेरा हो जमीन पर
सभी मुश्किलों को पराजित होना ही पड़ता
खुद के भरोसा,ताकत व हिम्मत के पुतले से....

सारा ज़माना क्यों न हो जाए दुश्मन हमारा
मिले न कोई भी खुशियाँ,नसीब भी दे धोखा
छोड़ गए अपने साथ, वेदना उर में हो गहरा
अपने हाथों की ताकत ही दिलाएगा मान तेरा

Sunday 25 June 2017

जीवन चक्र

जन्म मृत्यु सृष्टि की पहेली
नित्य प्रस्फुटित नव अंकुर
पर्ण पादप पुष्प कुम्हलाये,
है रीति प्रकृति कीअलबेली  ।।
जो  है कल वो नहीं मिले
वो जो चले गए क्या फिर,
आएँगें इसी सर जमीं पर  ।।

जीवन के इस आपाधापी में 
भूल जाते हैं एक दिन हमें
छोड़ चले जाना इस जग को,
दूर बहुत दूर,क्षितिज के पार  ।।
जहाँ एक नई दुनिया,नये चेहरे,
नये रिश्ते निभाने होंगे और
छूट जाएगें फिर सब कुछ अधूरे ।।

 जीवन चक्र यूँ ही चलता रहेगा
  सृष्टि के खत्म होने तक ये खेल
  हमेशा ही दुहराया जाता रहेगा ,
  माया मोह के बंधन से होके मुक्त
  कुछ अनुठे कर्म करने वाले ही
  याद किए जाएंगे सदियों तक
  होंगें नाम उनके हर इक जुबां पर  ।।