Saturday 25 August 2018

जीगर

विधा- गजल
काफिया- अर
रदीफ- गए होते

 मेंहदी रचती उनके नाम कि वे न डर गए होते
 मांग में मेरे महबूब काश सिंदुर भर गए होते

तकदीर का लिखा कभी नहीं मिट सकता 
उनसे हम भी बिछुड़के संभल गर गए होते

रंजो गम हम तुम संग मिलके ही बाँट लेते
हसरत है दुल्हन बनके तुम्हारे घर गए होते

रोजी रोटी में प्यार सबके काफूर हो जाते हैं
रहती पनाहों में उनके कुछ ऐसा कर गए होते

लाखों में एक वादा निभाने का जीगर रखते
तुम मुझे न मिलते तो इन्तजार में मर गए होते

 

 

No comments:

Post a Comment