विधा- आधार छंद
16/11 (गाल)
लिपटे शब्द हो चाशनी में , हृदय सभी ले जीत
भाव भरे मधुरिम लफ्जों में, जग बन जाए मीत
नाद सृष्टि में है निहित यही,,, शब्द ब्रह्म है ओम
कटु बोल कोप के हैं कारण,, मधु बोल झरे सोम
शब्द शब्द के योग से बने ,, सभी धर्म के ग्रंथ
अलग अलग है रूप शब्द के,,सबके अनेक अर्थ
कुटिल बोल से द्वेष बढ़े हैं ,,मिष्टी शब्द से प्रीत
भाव भरो मधुरिम....
मिश्री बोल जोड़ते दिलों को,,विष वाणी दे पीर
कड़वी भाषा व्यथित करे जब ,,नयन भरे तब नीर
मधुर वाणी शीतल छाँव दे ,,हृदय खिले फिर फूल
दुख हो या सुख सब मौसम में, मनुज रहे अनुकूल
घोल वचन में मिठास गाते,, रहें सब प्रेम गीत
भाव भरे हो मधुरिम..
शब्द शारदा की वीणा का , है अनुपम उपहार
मुरली की धुन में मुखरित है ,, शब्द प्रेम श्रृंगार
नाप तौल कर बोल मनुज यूँ ,निकले न भूल चूक
अज्ञान की पट्टी बाँध, कभी ,, बैठ न बनकर मूक
घायल करे अंतर्मन,शब्द ,, शस्त्र लगते प्रतीत
बहे ज्ञान गंगा वाणी में,,बदले जग की रीत
लिपटे शब्द हो चाशनी में, हृदय सभी ले जीत
भाव भरे मधुरिम लफ्जों में, जग बन जाए मीत
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