विधा- मनहरण घनाक्षरी ( कवित्त)
8,8,8,7
पिया सावन आ गया
गगन घन छा गया
बूँदे नेह जगा गया
मन दहक रहा ।
कोकिल गीत सुनाती
सखियां कजरी गाती
प्रिया पिया पुकारती
मेघ बरस रहा ।
झूले पड़े हैं बागों में
मेंहदी रची हाथों में
मन पी के बातों में
हियरा भीग रहा ।
हरी भरी है वादियां
कुसुमित है बगिया
मधुमास जगत भाया
भ्रमर गूँज रहा ।
प्रियतम हो बाँहों में
भींग रहें हो राहों में
अगन लगी दिलों में
प्रेम छलक रहा ।
हियरा अगन लगी
अंतस प्यास जगी
आतुर कीट पतंगा
उर आह भर रहा ।
पीत पर्ण झड़ गए
तरू पल्लवित हुए
प्रेममय जगत हुआ
मदन जाग रहा ।
वर्षा ऋतु अति प्यारी
सुरमयी सांझ न्यारी
प्रियतमा दिल हारी
प्रेमी मचल रहा ।
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