विधा - दोहे
धरा पुत्र होते श्रमिक ,,हृदय भरे अरमान
रवि के ढ़लने तक कृषक ,,नित्य करे श्रम दान 1.
धरती सोना तब बने,,,बहे कृषक के स्वेद
भंडार भरे अन्न से ,, करते नहीं विभेद 2.
प्रकृति जब तांडव करे ,, हिम्मत हृदय अटूट
घाव जब देते अपने ,दिल जाते फिर टूट 3.
सोने को है घर नहीं,,,सपने नैन हजार
भोजन न भर पेट मिले,,कोई न मददगार 4.
इरादे बुलंद उसके ,, वृहद परिपक्व सोच
भोले भाले हो भले,, मन में होता ओज 5.
नेता स्वार्थ में फंसकर ,,बहुत बिछाया जाल
ठेंगा दिखाया सबको ,,गली नहीं फिर दाल 6.
सुविधा हीन रहकर भी ,,उन्हें है एक आस
सपना देखते हरदम ,, भारत करे विकास 7.
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