विधा- गीत
अनगिनत यादें छोड़ कर,सूरज ढल रहा वक्त का।
लम्हे लम्हे जी कर भी, दिल में चाह उसी पल का ।
हरी भरी पल्लवित विटप ,इठला सुरभित पुहुप रहा ।
नाचता मोर कानन में , यौवन बरसा नेह रहा ।
पतझड आ गया, विजन वन,,बदला पहिया वक्त का ।।
अनगिनत यादें छोड़ कर ,सूरज ढल रहा वक्त का ।।
छिप जाता रवि वादा लेकर गगन में कल फिर चमकना ।
सत्य ! उदय के बाद अस्त , मन में नव उमंग भरना ।।
निर्मम बढ़ रहा वक्त है,मधुरिम पल छिन हम सबका ।
लम्हे लम्हे जी कर भी , दिल में चाह उसी पल का ।।
नहीं लौटता वक्त कभी , कर्म मनुज पुनीत कर लो ।
रह जाएँगे बस यादें ,, अपने कुछ फर्ज निभा लो ।।
उम्र चुरा कर चुपके से , बदलता जीवन जाय़का ।।
लम्हें लम्हें जी कर भी , दिल में चाह उसी पल का ।।
यादों की गठरी बाँध वर्ष, फिर जीवन के बदल रहे ।
तीखे- मीठे क्षण मुट्ठी से ,देखो सबके फिसल रहे ।।
आने वाले कल हो मधुरिम, दूर रहे तम जीवन का ।
अनगिनत यादें छोड़ कर,सूरज ढल रहा वक्त का ।।
लम्हे लम्हे जी कर भी, दिल में चाह उसी पल का ।।
उषा झा स्वरचित
देहरादून उत्तराखंड
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