विधा - सरसी छंद आधारित # गीत
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खिली कली कुसमित देख धरा, दुष्ट हिय नहीं हर्ष ।
देख दशा नारी धरती की ,उपजे हृदय अमर्ष ।
शृंगार जगत का करे धरा ,नारी से परिवार ।
वृक्ष काट हरियाली हरते,नारी बीच बजार।।
हर दिल में मक्कारी हो जब ,कौन सुने तब पीर।
है छल कपट का बोल बाला,बचा नहीं मन धीर ।।
गया वक्त नारी धरती का ,कहाँ हुआ उत्कर्ष ।
देख दशा नारी धरती की, उपजे हृदय अमर्ष ।।
नुँची कली धृतराष्ट्र देखते,मिटे पेट में भ्रूण ।
बाँध नयन के टूट गए अब , खौल रहा अब खून ।।
शुष्क धरा बरसे नही बदरा,,जल बिन तरसे खेत
पीट रहा निज छाती किसान,कठिन वैशाख चैत ।।
चला कर अबला पर हुकूमत, निकले क्या निष्कर्ष?
खिली कली कुसमित देख धरा, दुष्ट हिय नहीं हर्ष ।।
नर को देख व्यथित हर नारी, गिरी अर्स से फर्श ।।
देख दशा नारी धरती की हृदय उपजे अमर्ष ।।
उषा झा
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