Sunday 29 December 2019

नेह से भरा गगन

विधा - गीत 
         
नभ छतरी ताने नेह की,, करें हम नमन ।
 सकुचाई उषा सिंदूरी ,नील है गगन ।।

अनंत अडिग सदियों से है , उनमुक्त गगन ।
सारे सुख दुख सुबह संध्या को, करें वो दफन ।
प्रकृति के उत्थान- पतन में, संग खड़ा है ।
करके राज अनगिनत वरण, किए सब हवन ।
सकुचाई उषा सिंदूरी,,,नील है गगन ।।

सप्तरथ आरूढ़  उतरता, रवि नित्य गगन ।
अभ्र भी आलोकित करते , पंछी विचरण ।
 ऋचा गूँजे, भोर का हुआ, शुभ्र आगमन ।
ऋषि मुनि कर जोर दिन प्रतिदिन, करते वंदन ।
सकुचाई उषा सिंदूरी,, नील है गगन ।।

चमके अस॓ख्य , वितान पर,जब तारागण ।
ज्यों अनगिन जड़े हो हीरे,सुशोभित गगन। 
इन्द्र संग अप्सराएँ भी,  करती विचरण ।
हुई शुभ्र चांदनी में,  निशा से मिलन ..।

स्वर्ण रूप इस मार्तण्ड का, बिखेरे किरण ।
कन्हैया  के पीताम्बर सा, रंग गया मन ।
सुघर सांझ जब मन हेरती, दमके आनन ।
उतर धरती पर ढ़ूढ़ रहा  ,नभ आलंबन ।
सिन्दूरी उषा सकुचाई ,  नील है गगन  ।।

श्यामल रूप लगे सलोना ,  छाए जब घन  
नभ पर सुरधनु ,सप्तर॓गी , लगे सुहावन ।
गूँजे राग अनुराग हृदय ,  बूंद गिरे छम।।
नित्य करते शीश शिखर के,तब आलिंगन 
सकुचाई उषा सिंन्दूरी,  नील है गगन  ।

नेह की छतरी ताने नभ, करें हम नमन ।।

उषा झा 

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