घिर आई काली बदरिया नेह जगाय
सावन आए जिया जलाय
चहूँ दिश हरियाली छाई,जिया हुलसाए
जग उपवन बन जाय
मन में उमंगो की मौज घटा घनघोर
जीने की चाहत दे मन को करे हिलोर
घनघोर बारिश दिलों में शोर मचाए
बिछुड़े प्रीतम हुए विरहन आस सजाए
रह रहके गगन में चमक रही बिजुरिया
दिलों को छू दे कई एहसास, पिया परदेशिया
दारून वियोग सहा न जाए,जिया जलाय
मन हुआ बेचैन प्रियतम संग नेह लगाय
प्रियतम संग रहे सब कोई जिया हर्षाय
जीवन के डगर बहुत कठिन बिन पिया
जिया न जाय..
रब की इनायत प्रियतम बिन जिये न कोई
बने न विरहन बिछुड़े न कोई
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