वक्त के संग संग जो भी चलते, वो मुड़के कभी नहीं देखते
चाहे कितने कठिन राहें मिलते , फिर भी वो बढ़ते ही जाते
समय की सूई बढ़ती जाती,, दिन रात बदलती जाती
जो हार मान के बैठ ही जाते ,,,,वो जाने कितने पछताते
मंजिल हर हाल में उसे मिलता ,जो वक्त की कीमत जानता
जीवन के भुलावे में जो फंसते,, वक्त के आगे निकल जाते
वक्त रेत के तरह फिसल जाती,, जिन्दगी भी निकल जाती
चाहे हम लाख जतन करते,,,, बीते वक्त कभी न लौटते
वक्त के चाल में बहुत भेद है ,,, राजा भी फकीर बन जाते हैं
वक्त के सब कोई गुलाम है ,,,, वक्त के प्रहार करते लाचार हैं
हाथ पाँव चला लो चाहे जितने ,,,लौटकर वक्त कहाँ आते
जो दूसरे को अपना वक्त देते,,,,दुनिया उसके ही भक्त होते
समय बड़ा बलवान होता,,, दाँव न उसपे कोई भी चलता
जो वक्त का उपयोग करते ,,उनका विजय निश्चित होता