Friday 12 April 2019

मधुमास

तुम बिन मेरा कहाँ वजूद
तुमसे खिले जीवन पुष्प
बिखर जाती यूँ किसी राह
पहनाकर प्रीत का ये हार
किया तूने जीवन साकार

तुम आए बहार बन कर
मेरे सूने उदास जीवन में
चटखी प्रीत की कलियाँ
आए न पतझड़ हूँ डर में
रहे बरकरार सारी खुशियाँ

प्रीत पावन का है महिना
आओ न कंत इस बसंत में
मधुमास में प्रतिक्षित नैना
सुरभित कुसुमित है मही
प्रीत के गुल खिले अंगना

कुमुदिनी पर मोहित मकरंद
प्रीतम मन झूमे अमलताश
गुलमोहर देख राही पथ भूले
लुभाये पुष्प लाल नीले पीले 

नेहसिक्त नयन भावविह्वल
बजे हर क्षण हृदय के तार
विरहणी हृदय बहु हलचल
नेहगंधिल बढ़ाए रक्त संचार

कलियां खिल मधुमास लाती
वसुधा नभ का राह भटकाती
कोकिल पिहू भौंरे व तितली
मधुर मिलन के गीत सुनाती

 

 

 

बिखरे सतरंगी सपने

बिखरे सभी सतरंगी सपने
मधुरिम पल अब स्मृतियों में

झरने लगे हरसिंगार प्रीत के
नई नई जब आई तरूणाई
प्रमुदित हृदय ने ली अंगड़ाई
खिलने लगे फिर टेसू हृदय में
मधुर मलय ने आंचल ढ़लकाई
उड़ने लगी बिन पंख आसमां में
मधुरिम पल अब...

रास रंग में खो गया तन मन
चिर मिलन की आस दिल में
अंतर्मन में छलके जलधि तरंगें
खोयी मैना अब  स्नेह कुंज में
नेपथ्य में अब सारी कामनाये
फंसी जीवन के भूल भूलैया में
मधुरिम पल अब...

बजी घंटी उर में सुधियों के
छंटा जादू जब आसक्ति के
बरसे वारिद घनघोर नैनों  से
बीते हास परिहास के वो दिन
ढूंढते हैं उनके अवशेष नयन
पीर के गवाह सूनी सेज बने
बिखरे सभी सतरंगी ...

बीत गए मनुहार के पलछिन
अतीत के पन्ने में वो लम्हें
शिथिल हुए हैं हृदय स्पंदन
यादें भींगोये नैनों के कोरें
भग्न स्वप्न से अकुलाये मन
क्यों देखें इन्द्रधनुषी सपने

बिखरे सभी सतरंगी सपने
मधुरिम पल अब स्मृतियों में

Thursday 11 April 2019

बन जाती नई कविता

सुरभित गगन बहुत निखरे
उषा आती जब रवि रथ पर
पंछियों के कलरव मन हरे
दूर पर्वतों पर रश्मि बिखरी
स्वर्ण सा शिखर मन लुभाये
बिखर जाती फिर पन्नो पे
कोई नई कविता..

चीड़, देवदार पर छनकर
आती किरणें जब सुनहली
वादियों में खिलते हैं फूल
मुग्ध मन जाए खुद को भूल
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

मन में उठे कोई हलचल
याद आए कोई पल पल
नैंना बातें करे दर्पण निहारे
छलक जाते प्रीत के प्याले
जज्बात लेने लगे हिलोरें
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

दिल में उमंगें जब मचलने लगती
प्रेम रस की फुहारें बरसने लगती
यादें करने लगी सरगोशियाँ
प्रिय मिलन की आस जगने लगती
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

सिंदुरी शामें जब सजने लगी
जीवन में रंग कई भरने लगे
प्रियतम को मन पुकारने लगे
तन्हाईयाँ हर पल सताने लगी
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
 
विरहन बन जीना पड़े
वियोग दंश सहना पड़े
प्रेम प्याला हो जब खाली
शूल भरे पथ पर चलना पड़े
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

खुशियाँ चली जाए रूठकर
अरमान रह जाए जब अधूरे
बिखर जाए ख्वाब टूटकर
जिन्दगी में न कोई उम्मीद
न ख्वाहिशों के रंग रहे
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

छा जाते गमों के जब बादल
जीवन को छोड़ जाते उजाले
अंधियारी रातें लगती डरावनी 
नैनों के झील में नीर भरे
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

Tuesday 9 April 2019

आंगन में बसंत

उतर आया बसंत मोरे अंगना
घर पिछुआरे कूके कोयलिया

खिला आंगन में सूर्ख गुलाब
लग रहा मन भी खिला खिला
भाग गया है अब हृदय विषाद
महकाया रोम रोम पुष्प सुगंध
आया मधुमास का शूचि महिना
उतर आया वसंत ..

मुग्ध नयन निहारे रंग बिरंगे पुष्प
भाये हृदय को गुल खिला खिला
बहकी बहकी है चंचल तितलियाँ
मदहोश अलि छुपा पुष्प पंखुड़ियाँ
प्रीत पर न्योछावर सजनी सजना
उतर आया बसंत ...

पुरवाई पवन चले ज्यूँ बिहुँस कर
ढलक जाता सुधियों का आंचल
लगे मिश्री सी कोकिल की गान
पिउ पिउ बोले बाग में पपिहरा
राग रागिनी छेड़ रहे मन वीणा
घोल रहे जीवन में बहु रसना
उतर आया बसंत...

कंटकों के संग गुलाब मुस्काता
विस्मित है उर का कोना कोना
मिटकर भी जग में खुशबू लुटाता
सीख लें हम गुलाब सा बाँटना
दो पल के जीवन की खुशियाँ

घर पिछुआरे कूके कोयलिया
उतर आया वसंत मोरे अंगना

Monday 8 April 2019

टूटा फसाना

लिपटे बादल पर्वत पे ऐसे, दो प्रेमी फिदा देख लिया
मूंडेर से बादल के आगोश में चाँद डूबा देख लिया

रोज पहाड़ों के ओट से डूबते सूरज देखना सुहाता
छत से ही उनके नजरों में प्यार का बयां देख लिया

कदम न चाहते उठ जाती थी बारहां मूड़ेर पर मेरी
दिल ने दिल में इश्क की ज्वाला छुपा देख लिया

हर दिन का फसाना एक आदत सी ही बन गई 
फूल देने के बहाने महबूब का वफा देख लिया

न जाने कैसे सबके जुबां पर हमारी कहानी बनी
बिन बोले ही सजदे में मिरे को झुका देख लिया

हौले हौले कब तुम मेरी जिन्दगी में शामिल हो गए
 बिन बताए एक दूजे ने प्रीत का धुआं देख लिया

इकरारे मुहब्बत से पहले हम दोनों ही जुदा हो गए
बनते बनते प्यार का फसाना मैंने टूटा देख लिया

Saturday 6 April 2019

गीत आजादी का

आया है दिन आज खुशियों का
गाओ सभी गीत आजादी का

अनुपम स्वर्गिक देश हमारा
लगता हमको जां से प्यारा
नाज हमें अपनी धरती पर
अर्पित बूंद बूंद शोणित का
शत्रु न दूषित कर पाएगा...

मातृभूमि के लिए मरेंगें
और उसी के लिए जिएंगें
बलि बलि जाएंगें क्षण क्षण हम
शत्रू के दूषित नजरें
कभी न बर्दास्त करेंगें

आजादी हमें सबसे प्यारी
वीरों ने जान लुटा के दी
शहीदों की कुर्बानी
व्यर्थ न हम होनें देंगें
देश के लिए हमें जीना है
इसके लिए सदा मरना है

आओ सब गुन गुना ले
आजादी के गीत गा ले

पथ विहिन मनुज

मानव किस उद्देश्य से , तुम आए संसार
फंसे हुए भ्रम जाल में,मानव धर्म बिसार ।।

मनुष्यता की नाव में, बैठे हो तन धार
भूले हो कर्तव्य क्यों,बन धरती पर भार  ।।

यह माटी का देह ले, खुद को ईश्वर  मान
पर दुख से है विरत तू ,दम्भ लोभ की खान ।।

स्वारथ में मानव घिरा , खुद को कर संम्पन्न
जो पर पीड़न कर रहे ,सबसे बड़े विपन्न  ।।

मानव लोभ प्रवृति से , ग्रस्त हुआ सर्वत्र
सजा धजा फिर भी लगे ,जग को वह निर्वस्त्र  ।।

आया जग में किसलिए ,क्या है तेरा काम
पाप दिशा में भागता , मानी नहीं लगाम   ।।

दया धर्म को त्यागकर , कैसा तू धनवान 
राजनीति की ओढ़नी,गर्हित मन अभिमान    ।।

कौन देव दानव यहाँ ,कैसे हो पहचान
रक्त रक्त का शत्रु है , मनुज बना शैतान   ।।

भार कोख में बेटियां , जग करते शमशान
मातृशक्ति की दुर्दशा , करे अंधे इन्सान     ।।

मनुज मनुज के बीच में , नफरत की दीवार
जीवित हम कैसे रहें ,दुनिँया में बिन प्यार    ।।

मानवता रोती फिरे ,कौन किसी का  मित्र
अपनों के ही रक्त ले ,बना रहे वो चित्र     ।।

खामोशी

वेदना की बदलियों ने
आज फिर आकश घेरा
खामोशियों का पहरा
बिठा दिया दिल पर
जीवन उपहास बन गया
पीर से है हृदय विचलित
मिले जो अपनों के दंश
सह वो नहीं पा रहा

अपनेपन का ढ़ोंग
रचाते हैं सभी लोग
झूठी दया सहानुभूति
के मत बनो तुम पात्र
झूठे स्वांग में सब फँस गए हैं
आज दिलों के रिश्ते
स्वार्थ में लिपटे होते

अब दिल का लगाना
खेल ही तो हो गया
किसी को मत कहो कुछ
भाता नहीं किसी से
 कुछ बात कहना
खामोशी की चादर
ओढ़कर सबसे छुप जाना
एक मात्र अब अस्त्र है

किसी का दर्द का उपहास
सभी ही उड़ाते रहते हैं
फिर किसी से कहकर
हँसी का पात्र बनना
किसको स्वीकार होगा
जब अपने ही खंजर
भोंक डाले वक्ष पर
फिर धीर कौन बंधाए
है बहुत बेर्दद जमाना
नैना फिर क्यों न नीर बहाए...?

 

Friday 5 April 2019

अपना लिया

सपने में हमदम को अपना बना लिया
हसरतें हुई पुरी खुदा को ही बुला लिया

तुमसे मिले कितने मुद्दत की बात हो गई
तेरी सूरत को मैंने नयनों में बसा लिया

जाने मुझे किस बात की सजा दी तुमने
क्या भूल हुई है तुमने दामन छुड़ा लिया

मिलन की अब कोई सूरत नजर नहीं आती
बस यादों को मैंने अपने दिल में समा लिया

विरह के दिन नागिन सा डसते हैं मुझको
पीर में मैंने अपना जीवन को मिटा लिया

 वफा में लौटकर तुमको आना ही पड़ेगा
पि के वास्ते ,मैंने खुद को ही मना लिया

उम्मीद है विदा होंगे जुदाई के ये लम्हें
सपनों में सही मैंने बाँहों में छुपा लिया

हमनफज

बेहद दिल अजीज
वो हमनफज
एक अमिट छाप
छोड़ गए
रह गए सारे
अनछुए जज्बात..

वो भीनी भीनी यादें
वो मीठी मीठी सी
कुछ कही अनकही
बाते...
दिल के कोने में
अपना घरौंदा बनाकर
वो हसीन दिलकश
हमनफज
एक मीठी चुभन दे
ले गए सारी हसरतें...

भींगी भींगी सी
एहसास
हलचल सा मचा
रिश्तों को अपनी
गर्मी में पिघलने
को आतुर कर देता

एक खलिस सी
रह जाती
दिल मिलने को
बैचेन कर देता
वो हमनफज..

कान्हा चितचोर

मनमोहन की बाँसुरी , सुन मन शीतल होय
कामिनि खोई शून्य में,सुध बुध सारी खोय

देखी छवि चितचोर की ,हृदय गए हम हार
रूप अलौकिक मन बसा,मोहित हुए अपार

वृन्दावन की भूमि में, छलक रहा है नेह
रास रचा रहे कान्हा , आह्लादित सब गेह

पीकर चितवन की नशा,छोड़ दिए घर द्वार
रैन संग चंदा गया ,बिखरे सब श्रृंगार

 भंवर में डूब रही गोपी , श्याम छुड़ा गए हाथ
विरह अग्नि में जला के ,,वो कर गए अनाथ

उद्भव की सुन गोपियां,  सहें विरह की पीर
मन मोहन के संग गया, हो कैसे अब धीर

धरो ध्यान घनश्याम का ,करके उर उजियार
हुए प्रतिष्ठित हिय में,, अब कैसा घर बार

बीते यौवन

इस यौवन की यही कहानी
मन में आग नयन में पानी
प्रणय भाव में नयन निमज्जित
लगता सब कुछ हुआ विसर्जित

भींगे मन में प्रेम भरा है
मानस उपवन हरा भरा है
प्रिय की है यह चूनर धानी
मन में आग नयन में पानी

जो है दूर , याद आया है
इन्द्रधनुष मन में छाया है
हर सांस में प्रिय की वाणी
इस यौवन की यही कहानी

शैलभ जले जब दीपक जलता
प्रेम अग्नि से जीवन मिलता
प्रणय यान में घूंमूं क्षण क्षण
अर्पित प्रिय को है  कण कण

मैं भिक्षुक सी प्रिय है दानी
इस यौवन की यही कहानी