उतर आया बसंत मोरे अंगना
घर पिछुआरे कूके कोयलिया
खिला आंगन में सूर्ख गुलाब
लग रहा मन भी खिला खिला
भाग गया है अब हृदय विषाद
महकाया रोम रोम पुष्प सुगंध
आया मधुमास का शूचि महिना
उतर आया वसंत ..
मुग्ध नयन निहारे रंग बिरंगे पुष्प
भाये हृदय को गुल खिला खिला
बहकी बहकी है चंचल तितलियाँ
मदहोश अलि छुपा पुष्प पंखुड़ियाँ
प्रीत पर न्योछावर सजनी सजना
उतर आया बसंत ...
पुरवाई पवन चले ज्यूँ बिहुँस कर
ढलक जाता सुधियों का आंचल
लगे मिश्री सी कोकिल की गान
पिउ पिउ बोले बाग में पपिहरा
राग रागिनी छेड़ रहे मन वीणा
घोल रहे जीवन में बहु रसना
उतर आया बसंत...
कंटकों के संग गुलाब मुस्काता
विस्मित है उर का कोना कोना
मिटकर भी जग में खुशबू लुटाता
सीख लें हम गुलाब सा बाँटना
दो पल के जीवन की खुशियाँ
घर पिछुआरे कूके कोयलिया
उतर आया वसंत मोरे अंगना
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