Thursday 11 April 2019

बन जाती नई कविता

सुरभित गगन बहुत निखरे
उषा आती जब रवि रथ पर
पंछियों के कलरव मन हरे
दूर पर्वतों पर रश्मि बिखरी
स्वर्ण सा शिखर मन लुभाये
बिखर जाती फिर पन्नो पे
कोई नई कविता..

चीड़, देवदार पर छनकर
आती किरणें जब सुनहली
वादियों में खिलते हैं फूल
मुग्ध मन जाए खुद को भूल
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

मन में उठे कोई हलचल
याद आए कोई पल पल
नैंना बातें करे दर्पण निहारे
छलक जाते प्रीत के प्याले
जज्बात लेने लगे हिलोरें
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

दिल में उमंगें जब मचलने लगती
प्रेम रस की फुहारें बरसने लगती
यादें करने लगी सरगोशियाँ
प्रिय मिलन की आस जगने लगती
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

सिंदुरी शामें जब सजने लगी
जीवन में रंग कई भरने लगे
प्रियतम को मन पुकारने लगे
तन्हाईयाँ हर पल सताने लगी
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
 
विरहन बन जीना पड़े
वियोग दंश सहना पड़े
प्रेम प्याला हो जब खाली
शूल भरे पथ पर चलना पड़े
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

खुशियाँ चली जाए रूठकर
अरमान रह जाए जब अधूरे
बिखर जाए ख्वाब टूटकर
जिन्दगी में न कोई उम्मीद
न ख्वाहिशों के रंग रहे
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

छा जाते गमों के जब बादल
जीवन को छोड़ जाते उजाले
अंधियारी रातें लगती डरावनी 
नैनों के झील में नीर भरे
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...

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