Saturday 6 April 2019

खामोशी

वेदना की बदलियों ने
आज फिर आकश घेरा
खामोशियों का पहरा
बिठा दिया दिल पर
जीवन उपहास बन गया
पीर से है हृदय विचलित
मिले जो अपनों के दंश
सह वो नहीं पा रहा

अपनेपन का ढ़ोंग
रचाते हैं सभी लोग
झूठी दया सहानुभूति
के मत बनो तुम पात्र
झूठे स्वांग में सब फँस गए हैं
आज दिलों के रिश्ते
स्वार्थ में लिपटे होते

अब दिल का लगाना
खेल ही तो हो गया
किसी को मत कहो कुछ
भाता नहीं किसी से
 कुछ बात कहना
खामोशी की चादर
ओढ़कर सबसे छुप जाना
एक मात्र अब अस्त्र है

किसी का दर्द का उपहास
सभी ही उड़ाते रहते हैं
फिर किसी से कहकर
हँसी का पात्र बनना
किसको स्वीकार होगा
जब अपने ही खंजर
भोंक डाले वक्ष पर
फिर धीर कौन बंधाए
है बहुत बेर्दद जमाना
नैना फिर क्यों न नीर बहाए...?

 

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