विधा--मधु मालती छंद
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212 से अंत
खौफ में है अब लाड़ली
रहनुमा तोड़ रहे कली
फिर वो कली मुरझा गई
पाँव तले कुचल दी गई
रो रही मातु कहाँ चली
क्यों डाल से टूटी कली
खौफ में .....
तांडव दरिन्दों का जवां
डर में जी रहे बागवां
आज फ़िजा में जहर घुली
हवस की आँधी जो चली
खौफ में...
अपनों ने किया रूसवा
निकल गए यकीं का हवा
दगा के फल वृक्ष में फली
रिश्ते में जब दाँव चली
खौफ में...
मुश्किल मनुज बनना यहाँ
दानव ही बच गया यहाँ
मासूम जब जाती छली
जमीर क्यों न उसकी हिली
खौफ में ....
महफूज हो जग में सुता
जले न अरमान की चिता
दरिन्दे चढ़ा रहे बली
नौ महिने कोख क्यों पली
खौफ में...
कुसुमित नहीं गुल बाग में
बिखरी कली परिवार में
बदले की आग दिल में लगी
आस के दिन क्यों कर ढ़ली
खौफ में जीती अब लाड़ली
रहनुमा तोड़ रहे हैं कली