Wednesday 10 January 2018

प्रीत के बिना

विरहन बन गई
पिया से बिछुड़ के 
आए न परदेशी
सुधि लेने उनकी ..
याद में सुख के
काँटे बन गई
कैसे कटे दिन
बिन सजन के
बैरन बन गई
मौसम सर्दी की ..

आस सजाए
पिया मिलन की
रह रहके नैन
बाट निहारे
लगे न जियरा
पिया के बिना ..
देख के सूना
घर आंगन
कटे न रैना
मन लगे बैचेन ..

जिनके सजन
बसे परदेश
विरह की अग्नि
में वो जल जल मरे ..
कुछ न सुहाए
मन को न भाए
साज श्रृंगार ..
मन की अगन
अब सहा न जाए
 बन गए निष्ठुर
बैरी जमाना ..

अकेलेपन का दंश
कठिन जीवन
विष के समान
निकलती ही जाए
दम घुट घुट के साँस ..
कोई पीछे न आगे
भीड़ भरे जग लगे
जैसे मानव विहिन
वैसे ही ये जीवन
प्रीत के बिना ..

 

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