दिल के कड़ुवेपन को चलो सभी भूला लें
गुड़ की चाशनी में द्वेष तार तार कर डालें
मकर संक्रांति में उत्तरायण से रवि
ले कर आता नई उष्मा नई तीव्रता
जीवन पथ हो जाता आलोकित
भर देता वो तन मन में नव स्फूर्ति ..
घुल मिल जाते सभी एक दूजे में
आज अपनी अहं की खिचड़ी ही बना ले
दिल के कडुवेपन को चलो सभी भूला लें
बरसों से सोये हैं मेरे भी अरमान
खुले आसमां में विचरण को तृषित
उर आजादी का जश्न मनाने को
बनकर पतंग उड़े बादलों के पार
चिड़ियों के संग जी भरकर खेले ..
पवन संग लहरा के चुमें चाँद को
बरसों की जमी कोफ्त तिल तिल कर डालें
दिल के कड़ुवेपन को चलो सभी भूला लें
रोज रोज के जद्दोजहद से निकल लूँ
खुद की हस्ती को ही भूल जाऊँ
नीले आसमां में स्वच्छंद घुम लूँ
गर भटकने लगूँ अपनी मंजिलें
तू मांजा बन खींच लेना पहलूँ में
ख्वाहिशों की झोली मेरी भरना
करना निहाल रख अपने पनाह में
हम सब नेह के बीज दिलों में ही जमा लें
दिल के कड़ुवेपन को चलो सभी भूला लें
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