वो आदमी कितना
बौना बन जाता खुद
अपनी ही नजरों में
दिनहीन जाने कितने
बन जाता जब
बेबस बन किसी के
आगे हाथ फैलाने जाता ..
किसी के आँखों में
हिकारत भरी नजरें
देख वो खुद कितना
जलील समझता ..
अपनी बेबसी का
मजाक बनता देख
अपनी ही नजरों में गिर जाता ..
मजबूरियाँ अच्छे अच्छों का
हौसले पस्त कर देता
रास्ते का भिखारी बना ड़ालते ..
बेबसी से बेबस इंसान
परिस्थिति के आगे
नतमस्तक होके
घुटने टेक ही देते
वक्त के कुठाराघात
लाचार और निःसहाय
बना ड़ालते लोगों को..
कितना ही हाथ पाँव
चला लो परिस्थिति के
सभी दास होते हैं ..
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