Friday 18 May 2018

अमूल्य निशानी माँ की

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प्रिया अपने ज्वेलरी के डिब्बे में पड़ी एक पुराने से कंगन को हाथों में लेकर खो सी गई ..दिल में दर्द का गुबार उठने लगा !
"अपनी माँ की की प्यार भरी बातें और दुलार को याद कर,पलकें उसकी नम होने लगी "..

बचपन में माँ बाल बनाते हुए कहती ,"मैं अपने गुड़िया के लिए लाखों में एक राजकुमार चुनके लाउँगी।" 
वो हमेशा कहती ! "अपनी लाड़ो को अपने हाथों से ऐसे सजाऊँगी लोग देखते रह जाएँगें "....
मगर निर्दय वक्त ने, उन्हें मौका ही नहीं दिया, "असमय ही वो सबको छोड़कर चल बसी ।"

कई बार बड़ी ननद ने समझाया .."जब वो कंगन तुझे छोटी पड़ रही है और डिजाइन भी पुराना सा है , तो तू उसे सुनार से तुड़वाकर नई कंगन बनवा लो " ..बेकार में पड़ी है ।  पर वो सुनके भी अनसुनी कर देती ..

प्रिया आठ साल की थी जब उसकी माँ चल बसी थी ।उसके पापा ने.. विदाई से पहले अलग कमरे में बुलाकर उसे ये कहते हुए दिया था कि .."बेटा ये कंगन माँ ने तेरे वास्ते रखा था "...

तब से उसने कंगन को, "मखमल के मुलायम कपड़े में लपेट कर रख रखा था ।" जब भी उसे माँ की याद आती आलमीरा से..." कंगन निकाल कर भींगी पलकों से घंटो निहारा करती "...

अक्सर प्रिया जब भी अकेली होती, कंगन को धीरे धीरे कोमल हथेली से ऐसे सहलाती जैसे.."उसकी माँ  साक्षात उसके सामने हो " ...
उसने मन ही मन सोच लिया था, चाहे कुछ भी हो माँ की अमूल्य निशानी को.." आजीवन संभाल कर रखुँगी ..

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