Sunday 30 September 2018

वक्त

वक्त के संग संग जो भी चलते, वो मुड़के कभी नहीं देखते
चाहे कितने कठिन राहें मिलते , फिर भी वो बढ़ते ही जाते

समय की सूई बढ़ती जाती,,  दिन रात बदलती  जाती
 जो हार मान के बैठ ही जाते ,,,,वो जाने कितने पछताते

मंजिल हर हाल में उसे मिलता ,जो वक्त की कीमत जानता
जीवन के भुलावे में जो फंसते,, वक्त के आगे निकल  जाते

वक्त रेत के तरह फिसल जाती,, जिन्दगी भी निकल जाती
चाहे हम लाख जतन करते,,,,   बीते वक्त कभी न लौटते

 वक्त के चाल में बहुत भेद है ,,, राजा भी फकीर  बन जाते हैं
 वक्त के सब कोई  गुलाम है ,,,, वक्त के  प्रहार करते लाचार हैं

हाथ पाँव चला लो चाहे जितने ,,,लौटकर वक्त कहाँ आते
जो दूसरे को अपना वक्त देते,,,,दुनिया उसके ही भक्त होते

समय बड़ा बलवान होता,,, दाँव न उसपे कोई भी चलता
जो वक्त का उपयोग करते ,,उनका विजय  निश्चित होता

आश्रय

विधा-राधिका छंद

ओ मेरे बैरी सजन ,पीर न बढाओ        1.
कर रही हूँ याद तुम्हें, दरश दे जाओ
आस में जी रही सनम,तुम बिन अधूरी
हो जब भी मेरा जनम,मिलन हो पूरी

बीच मझधार में घिरी, सुनो तुम पुकार      2.
जीवन धारा में फंसी,  करो बेड़ा पार
निश दिन करूँ अराधना,द्रवित न कर हृदय
 तुम बिन बनी हूँ जोगन, दे मुझे आश्रय

आजा परदेशी प्रियम, बढ़ा न अब विरह     3.
तुम बिन अब कौन मेरा, बंधी प्रेम गिरह
दिवानी बन गई पिया ,,,प्यार में मरती
हर जनम तेरे वास्ते, नेह संग जीती

नैया मेरी भंवर में, डूब रही कहीं        4.
थाम ले डोर धैर्य का, पार करे वही
आश्रय तेरा ना मिले, है मेरा मरण
भगवन कर मुझ पे कृपा,हूँ तेरी शरण

अनुनय भाई का

विधा-गीत

बस इतनी सी बात तू मान लेना ओ मेरी बहना
जमाना बहुत खराब है घर शाम होते ही आना

घूमा करते बहरूपिये भेष बदल बदलके
कैसे पहचानोगी तुम नियत में खोट कितने
फैलाते हैं जाल मीठी बातों के डालके दाना
जमाना बहुत खराब ....

पढ़ लिखकर अपने कुल का मान बढाना
बचपन में दी संस्कार को याद हमेशा रखना
तुम किसी घर की आबरू हो बेटी ही गहना
जमाना बहुत खराब ...

राह में मिले कितने ही कांटे, कदम तुम बढाना
दुष्ट नोचने को बैठा गली गली उनसे न घबराना
करना मुकाबला इनसे हिम्मत कभी न हारना
जमाना बहुत खराब ...

काम काज फूर्ती से निबटाके मुस्कान ले आना
आँखें बिछाये माँ पापा कब आओगी ऐ बहना
खुशियाँ  मिले भरपूर तुम्हें उनका यही है सपना
जमाना बहुत खराब ....

जमाने के कदम से कदम मिलाती तुम चलना
आधुनिकता में बहके अपनी संस्कृति न भूलाना
मर्यादा सीमा का उल्लंघन तू कभी भी न करना

बस इतनी सी बात तू मान लेना ओ मेरी बहना
जमाना बहुत खराब है घर शाम होते ही आना

उषा झा (स्वरचित )
उत्तराखंड(देहरादून

तन शूचि रहे

विधा- राधिका छंद

तुम हमें खुशी दो न प्रभु ! पीर दे देना      1.
राह जब भी मुश्किल लगे,धीर दे देना
बिखरे हैं हर ओर कंश ,रक्षा तू करना
दिल में चुभाते हैं दंश,नेह तुम करना

मेरी छुट गई पतवार, तुम प्रभु उबार     2.
खो गई है मंजिल मेरी,दे ख्वाब का घर
दुख दो मुझे कितने ही ,मन कभी भटके
वर देना हमें इतना ,  शीश रहे झुके

प्रभु जी कुछ ऐसा करूँ, ज्ञान मुझे मिले    3.
शब्द अलंकृत हो उर में, फिर छंद खिले
गीत गाऊ मीठा जिसे ,सुन के दिल खिले
होये फिर सफल जीवन, पहचान कुछ मिले

तन मन में प्रभु जी बसे, तन शूचि कर दे
हो मन आलोकित !कभी न,रैन काली दे
घमंड न छू सके हमको, कलुषित न उर हो
धर्म कर्म से वास्ता रहे , कभी अहित  न हो

Friday 28 September 2018

सिद्धि

विधा- राधिका छंद

प्रीतम बिन कैसे जियूँ, शायद भूल गए    1.
कर रही हूँ याद तुम्हें ,  शूल क्यों दे गए
प्यार ने ही छीन लिया,  दिल के सब चैन
देख रही राह कब से,    धीर न धरे मन

जब मिली मुझको खुशियाँ, संभाल न सकी    2.
राह दिखाया मंजिल के, समझ भी न सकी
पग पग छलते हैं लोग, अकल भी न आई
सब कोई यहाँ परेशां ,क्यों न सकुन आई

किनारे रहके न थाह,    तू नदी के ले       3.
 चलो कठिन राह !दूरी,  तुम  ज्ञात कर ले
कंटक चाहे कितने ही,  मिले निकाल लो
दुख से घिरा हो जीवन , गम से निकल लो

लाख गम क्यों न मिले हो , तुम कभी न डरो
रखना जमीन पर कदम ,तुम न कभी गिरो
दर्द की दवा वही करे,  पीर दी जिसने
जिसे दे प्रभु आशीष , सिद्धि पाई उसने

Thursday 27 September 2018

मुक्ति द्वार

विधा- पियूष वर्ष छंद
10 , 9  यति पर सृजन

प्रेम बिहिन जीवन , का न मोल कभी     1.
स्नेह संबंध का ,   नहीं तोल कभी
कर निसार जीवन,  सकूँ मिले तभी
निःस्वार्थ बलिदान , न हो व्यर्थ कभी

जब सब परेशान,,,,किससे क्या कहें
व्यथा अलग सबका,,पीर किससे कहें
राहें जुदा जुदा,,,,,सभी मस्त खुद में
दे न वक्त किसी को,व्यस्त अपने में

जग में आते सब , बंद कर मुट्ठी ।   2.
जाते मिलने को,  मात्र ही मिट्टी ।।
मोह है बेकार ,    दर्द यहाँ मिले ।
स्वार्थ से बंधे सब,  त्याग कहाँ मिले ।।

प्रभु संग प्रेम हो ,  मुक्ति द्वार  खुले ।   3.
पूज लो उन्हें तो ,  दुख न कभी मिले ।।
राग द्वेष से सदा ,    जब कष्ट मिले ।
मनुज क्यूँ न समझे,  दण्ड अवश्य मिले ।।

कर्म पथ से विमुख न,,,कर जीवन कभी    4.
कर इरादा पक्का,,,,डिगे न पग कभी
रखो मन पे अंकुश, बस चलते रहो
राह कठिन हो पर , तुम बढ़ते रहो

 
 

Wednesday 26 September 2018

योग्य डॉ

विधा-आलेख

डाॅ मतलब एक संवेदनशील,सहनशील व जिम्मेदार व्यक्ति । जिनके दिल में दया प्रेम और सहानुभूति भरे होते हैं ।
समाज के भेद भाव व जातिय संकीर्णता से बहुत उपर उठकर उनकी सोच होती है।
हर माँ पापा गोरवान्वित होते जब उनके बच्चे एक योग्य
डाॅ बनते । हलाॅकि डॉक्टरी की पढ़ाई मंहगी और बहुत लम्बी अवधि तक अनवरत शिक्षण कराने वाला कोर्स है,
फिर भी अगर दिल में जज्बा हो तो बच्चे इस क्षेत्र में अपना मुकाम बनाना चाहते हैं ।
डॉ बनने के लिए बारहवीं के बाद आठ साल ( छःसाल एम.बी .बी.एस और दो साल हाउसमेन शीप) तो नितांत आवश्यक है, उसके अतिरिक्त पी .जी.तीन साल (किसी विषय मे स्पेस्लाजेशन) हो तो अति उत्तम ।
डॉ बनके समाज सेवा का दायित्व निभाना और सभी
मरीज से मीठे स्वर में बिना क्रोधित हुए बोलना ,इसका पाठ उन्हें सर्वप्रथम दिया जाता है ।
डॉ बनने के लिए शर्म का त्याग करना बेहद जरूरी है 
ताकि वो अच्छे से सीख सके । खासकर एम .बी.बी.एस
तक उनको सभी विषयों की पढ़ाई करनी पड़ती है । मेडिसिन, सर्जरी गाइनि इत्यादि ।डिलीवरी भी करानी पड़ती है।
जब एक डॉक्टर मरीजों की चिकित्सा करने के लिए रात दिन खड़े होते, समाज के अधिक से अधिक लोगों को
अपनी चिकित्सा से लाभ पहुँचाते ,तो बदले में समाज भी
उन्हें बेहद सम्मान और प्रेम देते हैं ।
एक डॉ को आलस्य त्याग कर चौबीस घंटे में कभी भी अपनी सेवा देने के लिए खड़ा होना पड़ता हैं । मर्यादा
सीमा में रहकर अपनी पेशे को ऊँचाई देना हर डाॅक्टर के
कर्तव्य हैं, और वो ऐसा करते भी हैं । आखिर डाॅक्टर को लोग भगवान तक का दर्जा देते हैं... इसका निर्वहन उन्हें अवश्य करना चाहिए ।
परंतु डॉक्टर भगवान नहीं हैं इस बात से कभी भी इन्कार नहीं किया जा सकता । वो सिर्फ कोशिश कर सकते हैं  जान बचाने का काम तो ईश्वर के हाथ में है ये तो उपरवाले के उपर निर्भर है, ये तो वही जानते हैं ।
किसे जीना या मरना है इसका फैसला वही करते हैं ।
डॉ भी एक इसांन है उनकी भी जिन्दगी है ,वो भी
कभी अवकाश ले सकते हैं । गुस्से में आकर बात बात में डॉ के साथ हाथापाई करना या नुकसान पहुँचाने का हक कभी भी मरीजों को नहीं मिल सकता ।इस जघन्य अपराध से उन्हें बचना चाहिए ।
अभी दो साल पहले मेरे पति के मित्र को ड्यूटी के समय ही गोली मार दिया गया, सिर्फ इसलिए कि वो
उस हत्यारे के बेटा को बचा नहीं पाए थे ।
आज उनका परिवार उजड़ गया है । दोनों बेटे के साथ भाभीजी अकेली रह गई..... ।
     अपवाद हर क्षेत्र में है। कई डाॅक्टर इस पेशे को शर्मशार कर रहें हैं । रूपये के लालच के लिए कई ऐसे
कार्य कर रहे, जैसे मरीज से अधिक फीस लेना या शरीर अंगों को निकाल कर बेचना..ये बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय कार्य है।जिसके लिए उनकी भर्त्सना करना जायज है । परंतु सभी डॉक्टर ऐसे नहीं होते हैं ।
   चिकित्सा जगत में झोला छाप डॉक्टर की संख्या
बढ़ती जा रही है, जो अधिक चिन्तनीय विषय है।भोले भाले लोग उनके चक्कर में फंसकर अपना नुकसान कर  लेते हैं ।सबको ऐसे फर्जी डिग्री धारक से बचना चाहिए ।
सरकार को भी ऐसे फर्जी डिग्री को निरस्त कर ,उनके
क्लिनिक को तत्काल बंद करने का उपाय करनी चाहिए ।
     मैं एक डाॅक्टर की पत्नी ,डॉ की माँ, डॉ की बहन और भाभी हूँ । वे सभी अच्छे से अपने पेशे का निर्वहन कर
रहे हैं । मुझे फक्र है कि मेरे सपने हकीकत के रूप में मेरे आँखों के सामने मौजूद है। पैसे ज्यादा हो न हो पर
सम्मानित  जिन्दगी हो ये हर किसी की ख्वाहिश होती है ,सो ईश्वर की कृपा से है,इसके लिए उपरवाले को लाखों शुक्रिया ।
हलाॅकि इसके लिए मुझे बहुत त्याग और तपस्या करनी
पडी है । डॉ साहब के गैर मौजूदगी में अकेले बहुत से कर्तव्यों को निभाना पड़ा । बच्चों के केरियर के वजह से एकाकी जीवन भी बितानी पड़ गई । अपनी नौकरी को बीच में ही छोड़ना पड़ा ....।
परंतु मुझे उनपर गर्व है... !!
मुझे याद है मेरे पापा जो खुद यूनिवर्सिटी प्रोफेसर (बाद में प्रिसिंपल) होने के बावजूद मेरी शादी डॉ से और बच्चों
को डॉ ही बनाना उनकी एकमात्र ख्वाहिश थी ,जो पूरी हुई....।
और अंत में मैं यही कहना चाहती कि किसी चिकित्सक
को किसी के जीवन से खेलने का कोई हक नहीं, जो उनके वश में न हो वो लालच किए बिना रोगी को उपयुक्त चिकित्सा के लिए अपने से अधिक अनुभवी डॉक्टर के
पास भेज दे। ताकि रोगी का जीवन और रूपये दोनों बर्बाद होने से बचे ।

Tuesday 25 September 2018

लैपटाप

बहुधा गाँव में मनोरजन की सुविधा नाम मात्र की होती है ।
सिनेमा हाल और मलटिप्लेक्स में चलचित्र देखने के सपने
तो अधूरे ही रह जाते । परंतु विज्ञान की प्रगति से अब कोई
वंचित नहीं रहते हैं मनोरंजन से ।
देश दुनियाँ की खबर से भी कोई अछूते न रहते.... ।
घर घर टी वी ,मोबाइल लैपटाप से सब अपने लैपटाम से अपने
मनपसंद फिल्म,धारावाहिक आदि घर पर ही देख लेते हैं ।
उस दिन सरिता अपनी ननद और देवरानी को नई फिल्म
 'तुम्हारी  सुलू' के बारे में बताया ,"सुना है! हम जैसी गृहिणी
  के लिए बहुत सुंदर फिल्म है ।"
आज कैसेट मंगवाती हूँ ,"फिर शाम को मिलकर हम लोग देखेंगे ...।"
सबने कहा जरूर मंगाना .....।
"शाम होते ही सरिता अपनी ननद आरती और जिठानी
सारिका को बुला लिया और  खुश हो कर सब लैपटाप पर
 फिल्म देखने लगी ...।"

Monday 17 September 2018

भूख

विधा- कविता

आँखें भीतर धँसी हुई हैं ।
क्षुधा पेट की शांत करो  ।।
भूख से हम बिलख रहे  ।
प्रभु जी हम पे नजर करो ।।

जी रही हूँ कचरे चुनकर ।
तारों के छाँव में बिस्तर है।।
दिख रहे भविष्य अंधकार ।
कहीं नहीं अब मेरा ठौर है ।।

जाने मेरी कैसी किस्मत ।
राहों में मेरे बिछे हैं काँटे  ।।
लाड़ दुलार से रहते वंचित ।
मिले नहीं दो जून की रोटी  ।।

गरीबी है सबसे बड़ी बीमारी ।
सब कोई समझे हमें भिखारी ।।
किससे करूँ मदद की गुहार ।
गहरी नींद में डूबे हैं सरकार  ।।

सहानुभूति के हम नहीं हैं भूखे ।
सिर पे छत, भर पेट खाना मिले ।।
मिटा दूँ फिर भाग्य का लिखा ।
पढ़ने को हमें काॅपी कलम मिले ।।

बचपन में मिले हमें भी दुलार ।
अवसर मिले हम भी पढ़ें लिखें ।।
मेरे  दामन में भी खुशियाँ भरे  ।
नहीं चाहिए हमें दया की भीख ।।

Sunday 16 September 2018

सोहबत

उनके नजर में न हो अहमियत क्या करते
हमारी कुर्बानी की न दे कीमत क्या करते

 दिल के खजाने के थे तुम नायाब कोहिनूर
 संभाल न पाई अपनी ही दौलत क्या करते

कर दिया था मैंने खुद को तुझ पे ही निसार
तुझे साथ रहने की न थी चाहत क्या करते

सोचा न था तुमसे जुदा हो के यूँ जीना पड़ेगा
तुम्हें थी ही नहीं कभी मेरी जरूरत क्या करते

 तुझपे हमने अपनी दुनिया ही लुटा दी थी
 तुम मुझसे करते न थे मुहब्बत क्या करते
 
 परवाह न उसकी जो मिल जाए आसानी से
 लुटा दो जां फिर भी दे न इज्जत क्या करते
   
  मुहब्बत का भूत जब  दिल से उतर जाता है
  कलई खोल दे सबके असलियत क्या करते

  किसी के वास्ते चाहे अपनी हस्ती ही मिटा दो
  बेवफा सनम की बदलती न आदत क्या करते

  वश में नहीं किसी के, इश्क के एहसास छुपाना
  हालात से ही बयां हो जाता हकीकत क्या करते

  सोचा था तेरे संग अपना जीवन संवारा करूँगी
  मेरे नसीब में पर तेरा न था सोहबत क्या करते

   एहसास न हो जब दिल में किसी के भी वास्ते
   प्रेम की उम्मीद बेकार है जज्बात क्या करते

Friday 14 September 2018

हिन्द की बिन्दी

भारत माँ की शान बढाती नेह से कितनी भरी है
हिन्द के मृदु उर में बसे प्राणों से प्यारी हिन्दी है

हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा
कईयों की ये मातृभाषा
विशालकाय जनसंख्या
एक सूत्रों में पिरोकर रखती है ।

हिन्द के मृदु उर में ..

हमारी सभ्यता संस्कृति की
खूशबू दूर दूर तक फैलाती है ।
हम सबों की अभिव्यक्ति एक 
हिन्दी ही सबों को जोड़ती है ।

हिन्द के मृदु उर में ...

देश के हर कोने कोने में हिन्दी
एक दूजे में अपनत्व जगाती है ।
हो न दुर्व्यवहार हिन्दी के संग
करे न सौतेलापन ये अभिलाषा है ।

हिन्द के मृदु उर में ..

विदेशों में शौक से जिसे सीखते
मुट्ठी भर देशवासी बोलने से कतराते
देश में हर ओर इसे मिले सम्मान
बस सबसे मेरी इतनी विनती है  ।

हिन्द के मृदु उर में ..

कई भाषाओं की जननी है ।
संस्कृत के गर्भ से निकली है ।
विश्व पटल पर हिन्दी ही
हिन्दुस्तान की पहचान है ।

हिन्द के मृदु उर में ...

जन जन की वाणी है हिन्दी
उपेक्षित न करे अंग्रेजिन्दा
सभी भाषाओं में सरल हिन्दी
देश के सिर पे सजी है बिन्दी ।

भारत माँ की शान बढाती नेह से कितनी भरी है
हिन्द के मृदु उर में बसे प्राणों से प्यारी हिन्दी है

Thursday 13 September 2018

सफेदपोश

विधा-  संस्मरण

अकेले अन्याय से लड़ पाना नामुमकिन है !"चाहे कोई कितना ही हिम्मती और निडर हो ....।"
"खासकर समाज के तथाकथित सफेदपोश से.. ।" जब रक्षक ही भक्षक हो जाए तो रही सही गुंजाइश भी खत्म हो जाती है ।
सड़क पे जुर्म होते देखके भी लोग आँखें बंद कर चल देते , आँखों देखी घटनाओं पे भी कोई गवाही नहीं देना चाहता...। सच्चाई के साथ देने वाले शायद ही नजर आता कोई  ।
" काश हर कोई चुप्पी तोड़े, डरे न नरभक्षियों से तो जहां  
  में होगी न अन्याय किसी के संग...! "

मेरे शहर में कई साल पहले एक डॉ हस्पताल के ही कैम्पस में बने क्वार्टर में रहते थे । उनकी 14 साल की मासूम बेटी को तथाकथित सफेदपोश के दरिंन्दे गुण्डे उठा के ले गए । "लोगों को समझ में नहीं आया कि इतने नेक व दयालु डॉ के साथ कोई कैसे ऐसे घृणित व्यवहार कर सकते हैं ? " कहते हैं पाप करने वालों की कोई जात नहीं होती...।"
दूसरे दिन शाम को वो बच्ची सूनसान जगह पर एक पुल के नीचे मिली , आयु बची थी इसलिए साँसें चल रही थी ..।
डॉ साहब ने घटना के तुरंत बाद पुलिस ,नेता सबके पास गुहार लगाई पर किसी ने कोई मदद नहीं की । "क्योंकि जिसने कुकाण्ड किया था, उनकी पहुँच बहुत उपर तक थी ..।"
जबकि डॉ साहब उस शहर के नामी हस्ती थे, पर बिटिया की खूबसूरती ही आफ़त हो गई ..।
"दुष्टपापियों की नजर में वो शायद खटक गई.. ।"
पुलिस को सब कुछ पता होने के बाबजूद भी,उसने कुछ नहीं किया । मामला रफा दफा हो गया ।
लोगों के हो हल्ला पर दिखाने भर को, एक दो दिन के लिए सारे दरिंन्दे जेल गए और तुरंत बाहर भी आ गए ...।
डॉ साहब गुण्डे को सजा दिलाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़े । मंत्रियों के चक्कर काटने से लेके , कानूनी  सहारा भी लिए पर उन बदमाशों का बाल बांका भी नहीं हुआ । कारण नामचीन सफेदपोशों का वरद हस्त प्राप्त था उन्हें । उनके खिलाफ मुख खोलने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुए....।
आज तक उस घटना को लोग याद करते हैं और सब कोई आहें भरते हैं ..।
जब तक हम सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं करेंगे..जब तक मासूमों पे जुर्म होते देख  समाज में रह रहे लोगों  की आत्मा न धिक्कारेगी ...
ऐसे कुकर्मियों को सजा दिलाने के लिए लोग चुप्पी नहीं तोड़ेंगें...
" तब तक इन बहशिंयों के अकल ठिकाने नहीं लगेंगें ...।"
समाज को अपराधियों से मुक्त करने के लिए सभी लोगों की एकता और सहायता की आज जरूरत है ।
"अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ता ! ! "

Sunday 9 September 2018

आसक्ति

अतुकान्त/ छन्द मुक्त सृजन

आज हर संबंधों में
लगाव कम और
दिखावा अधिक है
फायदे और नुकसान
के तर्ज ही रिश्ते के
आधार हो रहे हैं
ममता खून के
आँसू पीती है
सपूत स्वार्थ में लिप्त है
पल पल वो दूर हो रहे
माँ के दूध का कर्ज
चुकाए बगैर ...
जाने क्यों वो
मतलबी हो रहे ..
सब उलझे हुए हैं
अनंत इच्छाओं के
मकड़जाल में ..
अपनी ही परिधि में
सभी घिरे हुए हैं ..
लालसाओं के
कुपमंडुताओं से
बंधके अपने ही
फर्ज से मुख
मोड़ रहे हैं ...
क्यों न स्वार्थ
की बेड़ियों से
मुक्त रखें खुद को
सफर आसानी से
कट जाएगी ...
जब जाना ही है
एक दिन सबको
छोड़ के ..
क्यों ना खुद को
दूर रखें आसक्ति के
भंवर जाल से ...



Saturday 8 September 2018

समय

विधा- कविता

समय तेजी से बदल रहा था
बचपन की दहलीज लांघ कब
दर पर यौवन खड़ा हुआ था
सहसा कहाँ यकीन हुआ था..

बचपन की अटखेली बीती भी नहीं
सखी संग वो मासूम अभी गुम थी,
शादी के बंधन में बांध अभिभावक
तुरंत निभा दी अपनी जिम्मेदारी थी

साहस लिए उर में फिर खड़ी हुई
खुद बनाने को अपनी दुनियाँ नई
जीवन के हर रिश्ते बहुमूल्य बनाया
बच्चों को उँचे नभ पर पहुँचाया ..

फर्ज  निभाने में भूल गई खुद को
मिट गई हस्ती उलझनों में खोके  
अपनी ख्वाबों व आकांक्षाओं को
बच्चों के सुंदर भविष्य सजाकर 
 पूरी कर ली अपनी हसरतों को

अजीब संतुष्टि है खुद को खोकर
शामिल होना बच्चों की खुशियों में
पहुँचे बेसक बच्चे नित नए उँचाई में
पर काटे न कभी अपनी जड़ों को
दे वो स्नेह व आदर माता पिता को

Thursday 6 September 2018

राम वनवास

विधा-कजली गीत
 
कि हरे रामा अयोध्या भइल सूनसान
भेल वनवासी दशरथ नंदन ए हरि ।
कि हरे रामा गाछ पात सब रोये
नगर वासी सारी ऐ हरि ..
 1.
मात कौशल्या रोये फूटी फूटी
कहंमा गईल हमार राम लला बाटे ।
जानकी बिन उदास भवनवां
श्मशान लागे ए हरि ।
कि हरे रामा अयोध्या ..
2.
मंथरा कैकयी के बुद्धि फेरि दिहनि
निकस गईल दशरथ के प्राण
पड़ल आघात विपदा बड़ भारी ।
हियरा हारी ऐ हरि ।
कि हरे रामा अयोध्या ..
3.
माई कुल घातिनि तू हमार मात नहीं
माता कुमाता कभियो न होला
भाई राम लक्ष्मण भावज सिया
वनके देलन ए हरि ।
कि हरे रामा अयोध्या ..    
4.
राम भैया संग मिली गला
भरत के हिचकी छूटैय लागल
अयोध्या तोहरे बिन अनाथ
नहीं चाही राज पाट  ऐ हरि ।
5.
सुनी रघुनाथ मन ही मन मुस्काये
उठ ह भरत कर तू आपन कर्तव्य ।
आपन अधूरा काज संपन्न करब,
आयब हम अयोध्या ऐ हरि ।

कि हरे रामा अयोध्या भइल सूनसान
भेल वनवासी दशरथ नंदन ए हरि ।
 

Tuesday 4 September 2018

कजरी

सावन भादों के महिनमा में करिया मेघ बरसे ला
कलेजवा पे बिजली गिरेला मोर जियरा जरे ला

घर अयलन सबके सजनवा
हमरा नसीब मे वियोग बा
पिया तू विदेशवा में घुमेला
पिया विदेशवा ...

सावन भादों के ..

पिया कैसे कटे दिवस हमार
आबे न तोहरा कबहू याद हमार
बालम तू कैसन निष्ठुर हो गई ल
बालम तू ..

सावन भादों के ....

पिया सौतन संग करिहय् न प्यार बा
हमार जिनगी तोहरे पे निसार बा
पिया तोहरे कारण घर द्वार छूटल
पिया तोहरे ...

सावन भादों के ...

मेंहदी हरिहर चूडी से करब सिंगार
अखंड सुहाग हमार रहे बरकरार
पिया तीज में कितना बजार सजेला
पिया  तीज ...

सावन भादों के ..

पिया देवर संग नेईहर पठाय द ना
भईया के हम तनी राखी बान्हब ना
पिया सावन में रक्षा बंधन आयल बा
पिया सावन ...

सावन भादों के ...

पिया सावन में नेईहर पह़ुँचाय द ना
कजरी गायब ननदी भउजईया ना
सखियन संग ऊँहा हम झूलब झूला
सखियन संग ..

सावन भादों के महिनमा में करिया मेघ बरसे ला
कलेजवा पे बिजली गिरेला मोर हियरा हुलसे ला

Sunday 2 September 2018

कर्म का फल

विधा- कविता

जब कोई न सुने दर्द की चित्कार
बेसहारा के हो न कोई मददगार
अपनों से भरे जहाँ में मिले न पनाह
आगे न आए कोई देने को सलाह
तो सुन के करुण पुकार आते जरूर
रक्षा करने दुष्टों से चक्रधारी कृष्ण मुरारी ..

अबला नारी की इज्जत जब होती तार तार
करें दुराचारियों सब मिलकर अत्याचार
बनाकर रख दे जिन्दगी को नर्क समान
जीवन जब बन जाए कठिन लाचार
मन से सुमिरन करने पे आते हैं जरूर
करने को उद्धार चक्रधारी कृष्ण मुरारी ..

जीवन में हो जब दुखों का सागर
समझ में न आए कैसे करें पार
संकटों का पहाड़ चहूँ ओर हो घिरे
सूझे न कोई रास्ता दिखे न मंजिल
सुनकर फरियाद आते हैं जरूर
देने को सहारा चक्रधारी कृष्ण मुरारी

अदृश्य रहकर भी वो रखते हैं सब पर नजर
सारी गलतियों का रखते वो हिसाब किताब
फिर भी लोग बाज नहीं आते बुरे कर्मों से
कर्मों के अनुरूप ही मिलता है दंड अवश्य
जैसी जिसकी करनी है फल देते हैं जरूर  
मुरलीवाले चक्रधारी कृष्ण मुरारी ..