Monday 17 September 2018

भूख

विधा- कविता

आँखें भीतर धँसी हुई हैं ।
क्षुधा पेट की शांत करो  ।।
भूख से हम बिलख रहे  ।
प्रभु जी हम पे नजर करो ।।

जी रही हूँ कचरे चुनकर ।
तारों के छाँव में बिस्तर है।।
दिख रहे भविष्य अंधकार ।
कहीं नहीं अब मेरा ठौर है ।।

जाने मेरी कैसी किस्मत ।
राहों में मेरे बिछे हैं काँटे  ।।
लाड़ दुलार से रहते वंचित ।
मिले नहीं दो जून की रोटी  ।।

गरीबी है सबसे बड़ी बीमारी ।
सब कोई समझे हमें भिखारी ।।
किससे करूँ मदद की गुहार ।
गहरी नींद में डूबे हैं सरकार  ।।

सहानुभूति के हम नहीं हैं भूखे ।
सिर पे छत, भर पेट खाना मिले ।।
मिटा दूँ फिर भाग्य का लिखा ।
पढ़ने को हमें काॅपी कलम मिले ।।

बचपन में मिले हमें भी दुलार ।
अवसर मिले हम भी पढ़ें लिखें ।।
मेरे  दामन में भी खुशियाँ भरे  ।
नहीं चाहिए हमें दया की भीख ।।

No comments:

Post a Comment