विधा- कविता
आँखें भीतर धँसी हुई हैं ।
क्षुधा पेट की शांत करो ।।
भूख से हम बिलख रहे ।
प्रभु जी हम पे नजर करो ।।
जी रही हूँ कचरे चुनकर ।
तारों के छाँव में बिस्तर है।।
दिख रहे भविष्य अंधकार ।
कहीं नहीं अब मेरा ठौर है ।।
जाने मेरी कैसी किस्मत ।
राहों में मेरे बिछे हैं काँटे ।।
लाड़ दुलार से रहते वंचित ।
मिले नहीं दो जून की रोटी ।।
गरीबी है सबसे बड़ी बीमारी ।
सब कोई समझे हमें भिखारी ।।
किससे करूँ मदद की गुहार ।
गहरी नींद में डूबे हैं सरकार ।।
सहानुभूति के हम नहीं हैं भूखे ।
सिर पे छत, भर पेट खाना मिले ।।
मिटा दूँ फिर भाग्य का लिखा ।
पढ़ने को हमें काॅपी कलम मिले ।।
बचपन में मिले हमें भी दुलार ।
अवसर मिले हम भी पढ़ें लिखें ।।
मेरे दामन में भी खुशियाँ भरे ।
नहीं चाहिए हमें दया की भीख ।।
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