विधा- पियूष वर्ष छंद
10 , 9 यति पर सृजन
प्रेम बिहिन जीवन , का न मोल कभी 1.
स्नेह संबंध का , नहीं तोल कभी
कर निसार जीवन, सकूँ मिले तभी
निःस्वार्थ बलिदान , न हो व्यर्थ कभी
जब सब परेशान,,,,किससे क्या कहें
व्यथा अलग सबका,,पीर किससे कहें
राहें जुदा जुदा,,,,,सभी मस्त खुद में
दे न वक्त किसी को,व्यस्त अपने में
जग में आते सब , बंद कर मुट्ठी । 2.
जाते मिलने को, मात्र ही मिट्टी ।।
मोह है बेकार , दर्द यहाँ मिले ।
स्वार्थ से बंधे सब, त्याग कहाँ मिले ।।
प्रभु संग प्रेम हो , मुक्ति द्वार खुले । 3.
पूज लो उन्हें तो , दुख न कभी मिले ।।
राग द्वेष से सदा , जब कष्ट मिले ।
मनुज क्यूँ न समझे, दण्ड अवश्य मिले ।।
कर्म पथ से विमुख न,,,कर जीवन कभी 4.
कर इरादा पक्का,,,,डिगे न पग कभी
रखो मन पे अंकुश, बस चलते रहो
राह कठिन हो पर , तुम बढ़ते रहो
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