Thursday 31 January 2019

शबनमी चाहत

विधा-- कुकुभ छंद

विषय - प्रेम गीत


विधा-- कुकुभ छंद


सर्दी से ठिठुर रहे तन मन,  प्रीत ऊष्मा हृद

तपाए ।

लुभा रही गुनगुनी धूप ये, नर्म एहसास जगाए ।।


रंग बिरंगे पुष्म माल को,,,धरा पहन कर मुस्काई ।

लेकर बहार सर्दी आयी,,भौरों ने धूम मचाई। 

रस चखने को छुपा पंखुड़ी,सौरभ तन मन ललचाए ।

फूट रहे कोंपल मधुबन में,,,रूह फिजा नित महकाए ।

सर्दी से ठिठुर रहे तन...

गेंदा, गुलदाउदी चमेली, सजी हुई सी बगियां है।

फूल गई है पीली सरसों  , चहक रही उर कलियां है ।।

चूम रहा हरशृंगार मही,गुलशन के मन  ललचाए।। 

धवल वसन में ढ़के  शिखर हैं,,,नैनों को दृश्य लुभाए।

सर्दी से ठिठुर रहे ...

मखमली दूब से सजी ओस शीतल नयन हमारे ।

तितली सी इठलाती सजनी, सजना के राह निहारे ।।

प्रीत खिली है हर बगिया में,जड़ चेतन मन मदमाए ।।

छुपा रश्मियों को रवि लेकर, रजाई में कामना ।

सर्दी से ठिठुर रहे तन ....।

शीतल रजनी भी महक उठी,, निशि नित उत्सवी नबाबी  ।

दिल खिलने लगे प्रेमियों के ,,दिन होने लगे गुलाबी ।।

कसमें वादे करे प्यार में,ख्वाबों के मौसम आए ।

पिय स्मित मनुहार शरद ऋतु में, अंतस् को बहुत लुभाए ।।ठिठुर रहे सर्दी से  तन मन,प्रीत उष्मा हृद तपाए ।।

प्रो उषा झा रेणु 

Tuesday 29 January 2019

खामोशी

विधा- कविता

वेदना की बदलियों ने
आज फिर घेर रखा है
खामोशियों का पहरा
बिठा दिया दिल पर ..
जीवन उपहास बन गया
पीर से उर सिसक रहा
मिले जो अपनों के दंश
सह वो नहीं पा रहा ..

अपने पन का ढ़ोग
रचाते हैं सभी लोग
झूठी दया सहानुभूति
दिखाते हर एक इन्सान
झूठे स्वांग में सब फँस जाते
आज दिलों के रिश्ते
स्वार्थ में लिपटे होते

अब दिल का लगाना
खेल ही तो हो गया
किसी को कुछ कहना
भाता नहीं किसी से बाँटना
खामोशी की चादर
ओढ़ कर सबसे छुपाना
 एक मात्र है हथियार

किसी के दर्द का मखौल
सभी ही उड़ाया करते हैं
फिर किसी से कहकर
हँसी का पात्र बनना
किसको मंजूर होगा 
जब अपने ही खंजर
भोंक डाले सिने पर
फिर धीर कौन बंधाए
है बहुत बेदर्द जमाना
नैना फिर क्यों न नीर बहाए ...?

तृप्ति

विधा-कविता

मन की तपन से झुलस रहा तन बदन
वेदना की ज्वाला में जल रहा है जीवन
सूख रहा है गला तृषित है मेरा रोम रोम
प्यास ऐसी जगी छटपटा रहा अब प्राण
काश तुम आओ नेह की सर्द फुहार बन...

जाने कब से चली जा रही रेत की तपन पर
ठंडी छाँव की आस में भटक रही इधर उधर
हर ओर घोर निराशा, रेगिस्तान बना जीवन
आस है की, आओगे जल्द ही बर्फीली रैन बन
हर लोगे सब संताप,फिर पिघलने लगेगा मन ...

किसी के जीवन को आसान होता दहकाना
जल जल कर जीना, मुश्किल होता है सहना
दहन हो रही प्रीत, भावनाएँ हो रही हैं दफन
प्रेम का कोहरा बरसा ! आ बनके पोष की भोर
पुलकित कर हृदय, आओ गुलाबी सर्दी लेकर

स्नेह का लिहाफ ओढकर खो जाए स्वप्न में हम
ठिठुराने वाली ठंड में भी मिले अजीब सा सुकून
पूर्ण हो मनोकामना पी लें प्रीत का अमृत सोम
पाकर तुम्हारे प्रेम से तृप्त हो जाएगा रोम रोम
सर्द लहर में भी प्रेम ऊष्मा से खिले मन उपवन


Sunday 27 January 2019

शहादत

क़ाफ़िया ---- ओ
रदीफ़ --- क्या है

जन जन के लिए गणतंत्र दिवस से बड़ा तोहफा क्या है
एक कानून बना सबके लिए इससे बढकर मौका क्या है

खुशी मना लो साथियों आया दिन देश पे नाज करने का
सुंदर संविधान से देश जग में इज्जत पाया.खोया क्या है

तिरंगा हमारा लहराए गगन में जब तक चाँद सूरज रहे
देश की मिट्टी बने चंदन इसके सिवा अरमां मौला क्या है

देश में कोई भूखा न हो हर बच्चे के हाथ काॅपी कलम हो
बेटी सुरक्षित हो भेदभाव न हो ये मूल मंत्र बोला क्या है

मातृभूमि पर करें हम अभिमान झूकने न दें इनके शीश    अपने ही संतान टुकड़े करना चाहे अजब धोखा क्या है

उन्नति के पथ पर ही देश चले अवनति कभी भी न हो
हर गाँव गाँव, शहर में विकास का पहिया डोला क्या है

निर्भिक होकर हम सभी नागरिक चैन आराम से रहते हैं
देश पर कुर्बान सैनिकों की शहातत किसी ने रोका क्या है

Saturday 26 January 2019

नेह दे नारी नारी को

विधा- गीत

माँ के गर्भ से निकली लाडो  ,, सभी ने ममता लुटाई
प्यार के छाँव जीवन संवरा ,,, नारी हर घर मुस्काई

पुत्री बन घर पे राज करती , मोरनी सी वो नाचती
हर सुख मिले जिसकी हकदार,,नाजों नखरे से पलती
मात पिता बलैया लेते ,,,,सुता को निहारा करते
एक दिन वो चली जाएगी ,,,,सोच के ही सिहर उठते

हृद रो रहा, पुत्री को माता ,, करे कैसे अब पराई
प्यार के छाँव में ....

पुत्र ब्याह की बात जभी चले,,,,लालच ने घेरा डाला
मोटी रकम अब ऐंठने को , किया सोच के, दिल काला
बन गई अब वो पक्की सास ,,, समझे न बेटी बहू को
तरसाती है प्रेम प्यार को ,,,  रूलाती बस बहू  को

जब हक न मिले बहू को , सास ,,को माँ कहाँ समझ पाई
प्यार के छाँव में  ...

करे पुत्री बन आज्ञा पालन  ,, माँ पिता भगवान होता
बहू बन फर्ज वो भूल जाती,,सास का तभी दिल रोता          फूटी आँख न भावे ननदें ,,   भूल जाती वो बहन थी
मायका उसे लगता प्यारा,,क्यों ननदें से बजती थी

नारी नारी की दुश्मन! क्यों ? नेह उनमें न पनप पाई
प्यार के छाँव में   ....

सास माँ समान ननद बहन,,,तो रिश्ते से मधु टपके
माँ बन स्नेह दे बहू को फिर,,, बन ले ससुराल, मायके
करे न बैर एक दूजे से,,,करे न मनमानी मन की
प्रेम दया की मूरत नारी,,,जननी है इस धरती की

त्याग की मूरत नारी ! तुम्हीं, प्रीत की रीत सिखलाई
प्यार के छाँव में ...

Friday 25 January 2019

मर्यादा

विधा -- कुकुभ छंद

हद पार किया जब मर्यादा ,,,, तभी महाभारत होता
 रिश्ते जब लालच पर भारी,,,बाण पे पितामह सोता
 दाँव लगते जब छल प्रपंच के ,,रक्त बहता है अपनों का
 सगे संबंधी के रक्त देखकर,,,,,रो गया हृद पांडवो का

सपोलिये के डर से बचने,,, साँप बांबी सुता घूमे
गली गली भरे हैं खल चरित्र ,, शील हरण करने घूमे
चीर हरण करे जब दुःशासन ,,स्मिता भी बेजार रोती
लाज रख ली द्रोपदी की कृष्ण,,  कर दी लम्बी ही धोती

घात किया जब अनाचार ने  ,,कुटुम्ब परिवारों पे ही
जन्म लिया कंस धरा पर लगा,,दी हथकड़ी बहन को ही
स्वार्थ मोह हावी हुआ सोच पर,,हुए राम सिय वनवासी
मद आसक्ति में जल गई लंका,,,रावण हुआ स्वर्गवासी

दिखे सुंदर अधर्म की राहें ,,मंजिल अंत में भरमाता
मिले सत्य को शिकस्त झूठ से,अन्त में सच जीत जाता
सत्य की राह भले हो मुश्किल ,,कोई तो वचन निभा लेते
हो जब धरती पर अत्याचार ,,तभी  प्रभु  अवतार  लेते

 

Thursday 24 January 2019

बिटिया दिवस

विधा- -प्रदोष छंद

बेटियाँ दुख हर लेती,,,,, जन्म वो जब घर लेती
सींचे  नेह  नीरों से ,,, महके बाग कलियों से
खुशबू ज्यूँ बिखर जाता ,,,, तभी भंवरा आ आता
तोड़ लिया जाता कली ,,,, सुता की क्या खता भली

हर कदम पे बाधाएँ ,,,, ,रास्ता  रोकने  आएँ
माँ पिता का हृद रोता,,,, पढाना मुश्किल होता
विद्यालय भी असुरक्षित,,,,,गुरु के नैन जब कलुषित
हिफाजत करे  जरूरी,,,,किसी को न दे मंजूरी

प्रतिभा को पहचान ले ,,,,जहां में उड़ान भर ले
है शिक्षित करनी बेटी,,,इज्जत बढाती बेटी
चाहे हो मुश्किल बड़े ,,,, खूंखार शेर पथ खड़े
हिम्मत उसका बढाना,,,,करे सबों का सामना

बेड़ी न दे पैरों  पर,,,,, डाल न पत्थर  राह पर
धरती नाप जाएगी ,,,  जहां में छा जाएगी 
बन्धन में न जकड़ उसे ,,,,उड़ने दे स्वच्छंद उसे
 परवाज हम सभी बने,,,,बिटिया दिवस तभी मने

Monday 21 January 2019

गरीबी

विधा-  राधिका छंद

दहके ज्वाला पेट की ,,,कदम भटकाए  ।
निर्धन  के  पीर  भारी ,,,भूख रूलाए ।
भूखे को कभी नहीं ,,, उप देश सुहाय ।
खाली हो जब पेट तब,,,भजन कहाँ होय ।

रोटी दो जून की भी,,,नहीं  इख्तियार    ।
मुफलिसी तकदीर लिखा,,,मिला न अधिकार  ।
ठोकर खाना नियति कब,,,भाग्य  बदलेंगे ।
भरा रहे सबका पेट,,, भीख क्यों मांगे ।

 दरिद्रों की बिमारी भूख ,,, कौन दुख समझे  ।
 किस्मत पर जोर न चले,,,राह न अब सुझे  ।
 निर्बल को  सब लोग ही ,,,  रखते   दबाके ।
 खुशियाँ सबलों के सभी ,,,, ऐश  है  उनके ।

फेकना अन्न रोज ही,,, शान अमीर का   ।
चुटकी भर दाना नहीं,,,  घरों में विप्र का ।
मुट्ठी भर अनाज क्षुधा,,, शांत कर देती  ।
फेंके अन्नों  ही कितने ,,, पेट भर देती    ।

मृगतृष्णा

विधा- कविता

जिन्हें ढूंढ रही हर वक्त बेचैन निगाहें
जिनके ख्यालों में दिन रैन दिल डुबे रहे 
फिर भी उन्हें कभी भी एहसास न हो
उनको क्या कहूँ नजर का धोखा
मृगतृष्णा या फिर सिर्फ छलावा ..

जब धड़कनें भी अपनी बस में न हो
मन में उनके ही प्रेम धुन बजती रहे
पर उनके होंठों पे न कोई प्रेमगीत हो
उनको क्या कहूँ नजर का धोखा
मृगतृष्णा या फिर सिर्फ छलावा ..

अंखिया जिस के वास्ते तरसती रहे
दिल जुदाई का गम न सहना चाहे
प्रियतम को मिलन की चाहत न हो
उनको क्या कहूँ नजर का धोखा
मृगतृष्णा या फिर सिर्फ छलावा ..

जो पास में रहके दूर दूर ही रहे
करते न हो जरा सा भी परवाह
रहते खफा खफा, हमेशा दूर ही रहे
उनको क्या कहूँ नजर का धोखा
मृगतृष्णा या फिर सिर्फ छलावा ..

स्वाती के बूँद के लिए चातक के तरह
सदियों से प्यासी जो करती इन्तजार
बैरन पिया को तनिक भी न हो कदर 
उनको क्या कहूँ नजर का धोखा
मृगतृष्णा या फिर सिर्फ छलावा ..

उषा झा  ((मौलिक)

Sunday 20 January 2019

बूँदें जब बरसी

विधा- कविता

धानी चुनर पहन धरा मुस्काई
प्यासी धरा की अगन बुझाई

देखो कैसे झूम रही है आसमां
छा रही मुझ मे अजब सी नशा
आ गए  देखो प्रणय के मौसम
बन कर बावरी हो गई मदहोश
पुलकित हैं जैसे मेरे रोम रोम

खग पशु मानव में नेह जगाई
थानी चुनर पहन धरा ....

प्रेमरस में भींगे मेरा तन मन
जाने कहाँ गए वो चितचोर
वसुधा के भी गए रूप निखर
सुधा वृष्टि से तृप्त प्यासे उर
गूँज रहे चहूँ ओर राग मल्हार

मेघा ने नेह बूँदे जब बरसाई...
धानी चुनर पहन ...

तन मन झूमे जब बूँदे बरस गई
सुख रही ताल तलैया भर गई
आकुल जीव की तपन मिटाई
बेजान पादप भी पल्लवित हुए
उर पंकज खिले सुधा प्राण बचाए

अम्बर ने जब जब मोती बरसाई
धानी चुनर पहन धरा...

सावन ने बूँदे झमाझम बरसायी
सतरंगी इन्द्र धनुष नभ में छायी 
पवन संग झूम रही वृक्ष  लताएँ
सम्मोहन की जादुई  नशा छायी
प्यासी चातक भी हर्षित हो गई  

मेघों ने स्वाति की बूँदें बरसाई....
धानी चुनर पहन धरा ...

सघन घन बरसे

विधा- गीत

घनन घनन घन मेघा बरसे, सावन आये जिया जलाए
का से करूँ मैं प्रीत सीख री, मोरे पिया परदेश सिधारे ।

बिजली चमके दामिनी दमके
रह रहके मोरे ये दिल धड़के
आई है कैसी ये रात सुहानी
अँखिया जाने क्यूँ कर फड़के

आओ सजनवाँ निकट मोरे,कारी रैना मुझको डराए
घनन घनन घन मेघा बरसे ....

बागों में कोयल कू कू कूहके
सावन में देखो पड़ गए झूले
कजरी गावे सखी सब मिलके
प्रीतम संग सब कोई पींगे झूले

ज्यूँ ज्यूँ बढ़ती मिलन पिपासा,नैना मोरे नीर बहाए
घनन घनन घन मेघा बरसे ...

तहाथों में सखी सब मेंहदी सजावे
करके श्रृंगार वो पिया को रिझावे
पड़ जाए चैना मोरे हिया को 
तुम बिन सजन मुझे चैन न आवे

किस विधी हो मिलन सखी री,आकुल हिय ने पीर बढाए
घनन घनन घन मेघा बरसे ...

जा रे बदरा तू जिया न जला
वन वन भटकूँ विरहा की मारी
ओ री पवन पिया को बूला ला
किछु नहीं भावे विरह की मारी

ज्यूँ ही पधारे पी सखी री, मन आंगन में खुशियाँ बरसे
घनन घनन घन मेघा बरसे ,सावन आये जिया हर्षाये

अधूरी हसरत

विधा- कविता

गगन में आज उड़ चला मन
शोख चंचल शीतल पवन संग
भरने लगा अरमानों के उड़ान
पंछियों के संग वो चहकने लगा
नभ को छुने को मचलने लगा
हो कर मदमस्त बहकने लगा

चमकीले उजले बादल सुनहले
नीले अम्बर पे मोती बिखरे जैसे
देख चकित नयनाभिराम दृश्य
मन मना रहा आजादी का जश्न
महकते लहराते पवन संग मदहोश
तारे के संग वो आँख मिचौली खेले

चाँद की रेशमी किरणों को पाने
हिरनी बन मन भर रहा कुलाँचे
लुका छिपी खेले वो चाँद के संग
संगमरमरी श्वेत चाँदनी रातों में
चाँद इठला रहा झिलमिल तारों में
शीतल हो गया मन महताब के संग
अरमां हो गए पूरे चाँद के पनाह में

दूर कहीं खेतों में उल्का पिन्ड गिरा
बिजली जोरों की कड़कने लगी
गरजने लगे बादल थर्रा गई धरा
छुप गया चाँद रात के आँचल में
सूनापन लिए मन फिर लौट चला 
धरा पे परकटे पंछी की तरह गिरा
अधूरी हसरतों की पोटली लेकर
आ गया वो फिर अपनी ही खोली में ..

Saturday 19 January 2019

इबादत

विधा --गीत

सर्वस्व अपना तुम्हें सौंप कर ,जिन्दगी की डोर थमा दिया
मन में ही तुझको रख अपने , मन को ही मंदिर बना दिया 

 लुभा गया तेरा गंधर्व रूप ,, लुटा करार हमारा दिल का
 देखा करती थी निश दिन ही,,बना संयोग तुम्हें मिलने का
 उर में खिलने लगा प्रेम पुष्प, सत्य स्नेह मैंने जतलाया  
 लगी थी आग उधर भी !भाग्य, से तुमने भी स्वीकार किया

बिन पंख उड़ने लगी आसमां ,,तुम संग ही दुनिया सजा लिया
सर्वस्व अपना तुम्हें सौंप कर, जिन्दगी की डोर थमा दिया

चुरा लिया दिल जबसे तूने ,ख्वाब देखती दिवानी तेरी
दिवा स्वप्न में खोयी रहती , परछायी  भी गुम  है  मेरी
लुटा दिया तुझपे ये जीवन ,,कर स्वीकार समर्पण मेरी
मीरा  बनी  तेरे  प्रीत में,,    कर रही हूँ  इबादत  तेरी

राह कठिन है प्रेम डगर का,,,,मन मीत सांवरे बना लिया  सर्वस्व अपना तुम्हें सौंप कर,जिन्दगी की डोर थमा दिया

अखियाँ मिल गई जब पिया संग,,जल उठी हृद में प्रेम ज्वाला
पावन मेरा दिल का रिश्ता,,,भावों से  गुँथू  नेह  माला
पूजा है तुझे यज्ञ की तरह,,,हवन तृष्णा को कर डाला
 प्रणय के मंत्र से जीवन सिक्त ,,स्वाहा अस्तित्व  कर डाला
 
मुझ संग सातों फेरे ले कर ,, तू प्यार के वचन निभा लिया
सर्वस्व अपना तुम्हें सौंप कर,,जिन्दगी की डोर थमा दिया

Thursday 17 January 2019

महफूज

विधा-- मुक्तक
मात्रा भार--28

शिशु नव पौधों सा खिल जाते हैं नेह के बाग में
बने माली माता पिता लगे रहते देखभाल में
तोड़ न डाले उत्पाती करते हरदम निगरानी
महफूज रहते सभी शिशु अपने माँ के आंचल में

माता पिता के प्यार दुलारों से बचपन महकता
जीवन में वो मौजूद न हो कहाँ बचपन पनपता
पिता के बिना बच्चों का सही परवरिश संभव नहीं
बचपन होता अधूरा जब पिता का साया उठता

सबसे बड़ा गम है पिता का साया सर से उठना
पिता को खोने का दर्द मुश्किल होता है सहना
पिता के जैसा करूण हृदय किसी का नहीं होता
उनके बिन निश्चित है नैन से रोज ही अश्रु बहना

जब न रहे माता पिता कीमत तब पता चलता है
सुतों पे सब लुटाकर झोली खाली रह जाता है
फर्ज है बच्चों का वंचित न करे खुशियों से उन्हें
योग्य पूत  जीते जी अरमां पूरे  कर  देता  है

उत्थान

विधा - सार ललित छन्द

भीड़ में सब एक दूजे को ,,,रौंद ही डालते हैं      1.
चींटी चलते पंक्ति बनाकर ,, मनु नियम तोड़ते हैं
धीरज धर ले हर कोई तो,,,घटना टल सकती है
कभी न कुंभों के मेले में ,,,भगदड़ मच सकती है

होड़ लगी लोगों में कैसी,,,सब में मारा मारी          2.
छीने हक भाई के, लालच ,,अब रिश्तों पे भारी
जिनको कद्र नहीं रिश्तों का,,उसे कौन अपनाया
लगे बोझ माता पिता जिन्हें ,, समझो विनाश आया

स्थान मिले सबको ही अपना,,ये तो हक जन जन का 3.
छीने न कोई किसी का हक, समाज हो समता का
अनुशासन से इंसानों का,,व्यक्तित्व निखर जाता
सत्य की राह में शूल भले,, युग पुरुष न घबराता

निस्काम कर्मों से फल मिले,,,यही भाव गीता का      4.
काम  क्रोध,लोभ,मद छोड़ने ,,पे उत्थान सबों का
बैर भाव का जो त्याग करे,,,निर्मल मन हो जाते
दुख में दया प्रेम दिखलावे ,,, वही मनुज कहलाते

मन मरुस्थल

मुँह मोड़ लिए जब सजन, हुई बहुत हैरान
तुझ बिन जिन्दगी मेरा , बन गया रेगिस्तान

जिन्दगी बिखर गई रेत सा
कोई नहीं लगे अपना सा 
चौ राह छोड़ क्यों चले गए
हवाओं का रूख विपरीत आज
बेसुरे सारे दिल के साज

ढूंढ रहे मरुस्थल में  , हम कदमों के निशान
तुझ बिन जिन्दगी मेरा , बन गया रेगिस्तान

पग पग पे जीवन छलता है
कोई नहीं कहीं दिखता है
सहरा भी मन भरमाता है
दूर दूर तक  है  सूनापन
करूँ किसपर कैसे यकीन

अस्तित्व को तुमसे ही , मिली नई पहचान
तुझ बिन जिन्दगी मेरा , बन गया रेगिस्तान

तुमने मुझे कहीं का न छोड़ा
 बेरूखी ने दिल है तोड़ा
मृगतृष्णा की चाह ने छला
 सितम तूने जो ऐसा ढ़ाया
 दिल मेरा फिर संभल न पाया

एक डगर चलकर पिया , थी तुमसे अंजान
तुझ बिन जिन्दगी मेरा , बन गया रेगिस्तान

गर्म हवाओं से दहकता तन
मन मरुस्थल में चले आँधियाँ
रेत में दबी लम्हों की दास्तान
उग गई जख्मों की झाड़ियाँ
सिंचित कर इसे नेह बूँद बन

रीतेपन के रेत बहे दृग ,, से, प्रीत दो प्रतिदान 
तुझ बिन जिन्दगी मेरा,,,बन गया रेगिस्तान

Wednesday 16 January 2019

रिमझिम फुहार

विधा- गीत
सावन सुहावन लाई बरखा बहार

सन सन पवन चले हिया में करे शोर
उड़ते घुमड़ते बादलों को देखकर
धड़कनें लगी अरमां दो दिलों की 
आसमान से बरस रही बूँदे हजार
सावन सुहावन लाई ...

गगन में देख कर घटाएँ घनघोर
मुदित चातक स्वाति बूँदें देखकर
पपीहा गाने लगी नाचने लगे मोर
किसलय से सुसज्जित बन हुए हरे
कलियाँ खिली, बागों में आई बहार
सावन सुहावन ...

बादल के गर्जना से दामिनी दमकी
टीप टीप बूँदनियाँ भी छत पे टपकी
सौंधी सौंधी जब खुशबू छाये मिट्टी की
प्रियतम से मन मिलन को तब तरसे
आसमान से  गिर रही रस की फुहार
सावन सुहावन ....

मचले हैं अरमान, कदम भी बहके
बूँदों की रिमझिम सुनके मन थिरके
मन के भाव जगे जब घिर आई बदरा
ताप मिटे हिय के ,सुर सजाती जियरा
प्रीत के हिलोर में डूब जाता है संसार
सावन सुहावन लाई ....

Monday 14 January 2019

उपहार

विधा-- ललित छंद
16/12

प्रियतम बिन विरह की मारी,,,नैन बहे जल धारा
 शूल बन गई सेज हमारी ,,,, मुझे पीर ने मारा

आया है ऋतु पावस देखो,,,  लेकर रिमझिम बूँदें
अगन बढ़ाए मिलन की, जगे  ,,,चाहतों की उम्मीदें 

तड़पते हैं हम तुम विरह में, दिल वियोग में हारा
शूल बन गई सेज हमारी,,, मुझे पीर ने मारा..           1.

गरजे हैं नभ में बादल क्यों  ,,,देते  उन्माद  जैसे
तरसे उर अब प्यास बढ़ाती,,,हुए व्याकुल ऐसे

दग्ध हृदय की चैन छीन रही,,, वेदना बहुत भारी
सजनी बैठे राह निहारे,,, अंखिया भी है हारी

अनगिनत ख्वाब नैन में सजा,,,, धरा ने नभ उतारा
शूल बन गई सेज हमारी,,,,,   मुझे पीर ने मारा      ...2.

पवन झूम के तुझको बुलाये,,, क्यों मुझको भूल गए
बनी आज धरती है दुल्हन,,, जाने किस देश गए

 मचल रहे हैं अरमान बूँद,,, प्रेम उपहार लाए
 मेघों के गर्जन नर्तन भी,,,पी के याद दिलाए

बाग में कुहूके कोइलिया  ,,,सुनके लगता प्यारा
शूल बन गई सेज हमारी,,,, मुझे पीर ने मारा    ...3.

 

Sunday 13 January 2019

नेह का बंधन

चाँद सूरज सा चमके भाई, चाहत हर बहनों का
बहन को दे प्यार हर भाई ,यही उपहार राखी का

एक ही आँचल के वो सितारे
नेह डोर से बंधे दोनों का प्यार
भैया तू रहना हमेशा सलामत 
बहनों के दिल की यही पुकार

अक्षत रोली चंदन से कर तिलक
रब से ले अभय वरदान जीवन का
जीवन में खुशियों के दीप जले
बहना आरती उतारती भाई का

रेशम की कच्ची डोरी से बंधे, प्यार भाई बहनों का
बहनों को दे प्यार हर भाई, यही उपहार राखी का

भाई बहनों को मान देना हमेशा
रहने न देना तुम कभी भी उदास
बहनों की सदा इतनी सी ख्वाहिशें
रिश्ते रहे अटूट स्नेह के जज्बातों से

बहनों का हिम्मत टूटने न देना
विपत्तियों में रखना तुम ध्यान
मायके याद आए तू लिवा लाना
वहां के कहकहों से रूबरू कराना

रब से मांगे भाइयों के वास्ते, पूरे हो ख्वाब उनका
बहनों को दे प्यार हर भाई, यही उपहार राखी का

सूखे वृक्ष

समय को लग जाते हैं पंख
सुख के दिन कितने जल्दी
तीव्र वेग से बीत जाता
पता ही नहीं चलता ...

खुशियों को समेटते समेटते
जीवन की सांझ ढल जाती
रूप यौवन खत्म हो जाता
पता ही नहीं चलता ...

कुछ बनने के धुन में खोकर
बचपन वक्त के तीव्र वेग से
तालमेल बैठाने में लगा रहता
वक्त तो हर पल बदल जाता ..

युवावस्था में परिवार व बच्चे
के बीच फर्ज निभाते निभाते
वक्त हाथों से फिसल जाता
पता ही नहीं चलता ..

फर्जों के इस आपाधापी में
बहुत से काम अधूरा रह जाता
ख्वाहिशें कई अधूरी रह जाती
समय बड़ा ही बलवान होता ..

जीवन के पौधे छायादार वृक्ष बन
जाने कब सूखने लग जाता
समय चक्र कब बदल जाता
पता ही नहीं चलता ...

पौधों को हर कोई ही सिंचता
पेड़ बन फल फूल जो वो देते
जीवन की कैसी ये अद्भुत रीत
सूखे पेड़ को कोई न पूछता ..

यौवन का संग जब होता
सब कोई नतमस्तक होता
सूखे पेड़ को सब काटता
हर कोई ही उसको जलाता

हो जाते हैं जीर्ण शीर्ण देह
विवशता पे अपनी वो रोते
जीवन जीवंत खत्म हो जाता
पता ही नहीं चलता ...

Saturday 12 January 2019

वेदना

विषय मुक्तक--दुःख

तुम बिन जीना अब दुश्वार हो गया  
तुम संग थे तो जीवन फूल बन गया
दिल को दर्द गम है तेरे वियोग का 
मुहब्बत का गम तुम ता उम्र दे गया
       
तिनके तिनके से एक नीड़ बनाया था 
अपने नन्हें चुजों  को दाने खिलाता था
पंख ज्यों ही आया वो उड़ गया फूर्र से
पाखी का दुख ही संग साथ अपना था

रूबाई  / गम

तेरी याद  एक   नासूर  घाव
तू अब देख बीच  मझधार नाव
जाने क्यों गम दिए ,गए चौराह छोड़
किस्मत पे प्रिय लगा दिया है न! दाँव

यादों में  हो शामिल , हो यार कहाँ !
राहों  में  हो  फूल, वो तकदीर कहाँ !!
कर जाओ रुसवा गर सनम,   मुझे
घुट जाएंगे  साँस,  वो मुहब्बत कहाँ ।।

 

एहसास

विधा  कुण्डलियां

मंजिल चाहे दूर हो, माझी करना पार    1.
पाना हमको लक्ष्य है, मानना न तुम  हार
मानना न तुम हार, इरादा कर लो पक्का
हिम्मत है हथियार, बात यही सच सौ टका
जीत अवश्य होगी , मन को रखना तुम अटल
रास्ते कितने कठिन,मिलेगी अवश्य मंजिल

 करता दिल याद अब भी , प्यार की मुलाकात   2 .
 कैसे नयन चार हुए ,  ताजा है सब बात
 ताजा  है सब बात, उर करता झंकृत अब भी
 वो मद भरी एहसास ,,नहीं भूलता मन कभी
 प्यार का वो आलम, बरबस क्यों याद आता
 मदहोश थे हम तुम,,, मिलन को मचला करता

साजन तेरे प्यार में , अश्रु बहाते हैं नैन।            3.
जब तक न देख लूँ तुझे, मिले न मुझको चैन।।
मिले न मुझको चैन , मिलेगी हमें वो ख़ुशी  ।
तेरे  दर्शन से ही ,  सजेगी अधर पे हँसी ।।
दिलबर तू देख ले , मेरा दयनीय जीवन
संग तुम मेरे रहो , फिर न मुरझाऊँ साजन ।।
 
प्रीतम तेरी याद में , मौसम बदला जाय।        4.
सावन में बूँद बरसे, जियरा बहुत जलाय  ।।
जियरा बहुत जलाय, उर में भरे सूनापन ।
 बूँदे मोती बने ,  मुस्कराए मन आंगन   ।।
 प्रेम प्याला पी के , होश हो जाते हैं गुम ।
प्रीत के सागर में , हम तो डुबे हैं प्रीतम  ।।

नूतन वर्ष

देकर कितनी यादें बीत गए फिर से ये साल
तमन्नाओं की पिटारे  लेके आ ही नए साल

एक एक क्षण जीवन के हम सबके चुराकर
तीव्रता से  बीत ही गए बरस, नए तजुर्बे देकर

मंजिल की चाह में चलते रहे राहों में अकेले
छुट गए अपने जिनके अंगुली को पकड़ चले

कितने यादें व मुलाकातें, कई आदतें व वास्ते
अनकही खुशियाँ व गम न भूलने वाली दे बीते

सुखद अनुभूति कभी किया रोमांचित जीवन को
कभी अवसाद ने शिथिल कर दिया मेरे जीवन को

कितने ही अरमां दिलों के पूरे हुए गुजरे सालों में
रिश्तों के रंग दिखे, बूँद स्नेह के भी गिरे आँचल में

अंजाने शहर में मिले कई चेहरे, बने खास दिल के
अपनों ने दी शिकस्त, कर गए वो टुकड़े दिल के

रब ने दी सौगात हमें खुशियों की गुजरे सालों में
अरमानों की झोली पर भरती नहीं कभी दिल में

नूतन वर्ष भी लेके आ जाए ख्वाबों के हजारों रंग
बैर मिटाकर दिलों से, हृदय में भरे  प्रीत के  रंग

 

अंकुश

विधा - गीत

    नया दौर ने बचपन छीना, बदले खेल खिलौने
    इन्टर नेट पर गेम खेले,, मासुमियत लगे खोने

   लुका छिपी,गिल्ली डंडा पता ,,कहाँ!खो खो किसी को
   मैदान पर खेलों के लुफ्त,,,से बंचित अब अनेकों
   बच्चों के खेल बदल गए न,,,,,वो टायर भगा रहा
    देखे बैठे बैठे जहान,,,,घरों से न निकल रहा
   प्रकृति के संग जो रहते हैं ,,नहीं पड़े कभी रोने
   इन्टर नेट पर गेम ...
 
  खेलता नहीं अब कोई भी,,सब फोन के दिवाने
  लद गए दिन सभी बच्चों के ,, बहाने के वो पसीने
  पढ़ाई में मन नहीं लगता,,, बहाने रोज बनता
  रोते हैं माँ बाप देखकर,,,मंजिल न उसका दिखता
  छोड़ दे अपनी ये आदतें  ,, हमें ही हैं रोकने
  इन्टरनेट पर गेम ..
 
  किताबों की भीड़ में खोये ,सिलेबस बहुत भारी
  माँ बाप की बढ़ती आकांक्षा,,,पिसते बारी बारी
  वक्त कम है बच्चों के लिए ,,,व्यस्त सभी अभिभावक
  जीवन के तेज रफ्तार ही,,आज बना है बाधक
  परिस्थिति के दास मनुज सभी,,,वही बनाते बौने
  इन्टरनेट पर गेम ...
 
राॅक गीत सुनके खुश होते,,,भाये मैगी खाने
कानों में आई पाट लगा,, शौक लगे फरमाने
शिक्षा जरूरी है जीवन में ,,यही तो सिखाने हैं
सुंदर भविष्य के लिए बच्चों ,, पे अंकुश जरूरी है
अभिभावकों को संस्कार के,,बीज अब है बोने ...
 इन्टरनेटपर गेम खेले ...
 
 

  
   

तारीख

विधा- प्रदोष छंद

यौवन के दहलीज पर,,, बच्चों होश न गवाँना
मशाल शिक्षा का लेकर ,,,जगत में अलख जगाना ।।

रास्ते कितने कठिन हो,,,विश्वास न खुद पे खोना
कदम ड़गमगा गया तो ,,,जान ! जीवन भर रोना ।।

आलस्य का करो त्याग ,,सामने भविष्य तेरे
 मेहनत करने से बने,, सुनहरे जीवन तेरे   ।।

पढ़ने लिखने पर मिले,, जीवन में सुख सम्पत्ति 
भविष्य होगा उज्ज्वल,, फैलेगा यश और कृति ।।

बुरे संगति में पड़ोगे,, जीवन बेकार  होगा
बिगड़े सुधर जाते, मित्र, संस्कार वाले होगा ।।

पत्थर पर लकीर पड़े, रस्सी घिसा जाएगा ।
आँखें लक्ष्य पे साधना,,मंजिल अवश्य मिलेगा ।।

माँ पिता करेंगे नाज ,,, तुम उनका सम्मान हो
बच्चों में पले सपने ,,,,इतना तुमको ज्ञान हो ।।
      
लिखो देश की तकदीर ,,,सब तारीख है तेरा
कर्म से इतिहास बदल,, हथेली में कल तेरा ।।

दुश्मनों के चाल तुझे,,नाकाम करने होंगे
देश के तकदीर लिखो,,गौरवान्वित सब होंगे ।।

ढ़िढोरा (गजल)

रदीफ- में
काफिया- आने

सरल व कोमल जानके लगे सब हथियाने में
सब समझके फिर भी जुटे हैं अपना बनाने में

तिनके तिनके जोड़ नीड़ बनाने में वो बेपीर  
मरते दमतक कोशिश करते रिश्ते बचाने में

मजलूमों के दर्द कोई नहीं समझा करते हैं
संसार में सब तैयार बैठे हैं कहर बरपाने में

जीगर पे लगे जख्म सह लेते हँसते हँसते
पीर देने वाले ताक में फिरते हैं आजमाने में

व्यथा  को बाँटने पर जग हँसाई ही करवाते
लोगों को मजा आता है ढ़िढोरा पिटवाने में

किस्मत में लिखे चाहे कितने गम क्यों न हो
फिर भी पी रहे हैं दर्द, लगे हुए हैं छुपाने में

मुहब्बत में बेवफाई तो को नई बात है नहीं
जाने क्यों दिलबर संग लगे ख्वाब सजाने में

जले पे रखना नमक, है आम बात लोगों की
कोई कोई ही लगे रहते हैं, रोते को हँसाने में

उजड़े घरों को बसाना है बहुत नेकी की बात
ऐसे फरीस्ते ने काम किया मनुजता बचाने में

Thursday 10 January 2019

प्रेम नशा

विधा- सार छंद

उमंगों भरे वो नायाब पल ,,,थे बहुत ही सुहाने
ख्वाब भी हकीकत सा लगता,,मदहोश दो दिवाने
मन की कलियाँ चटक रही थी,,,भ्रमर सा गुनगुनाता
बाहुपास में प्रिय के हरदम, उर बहुत मचल जाता

बजते थे दिल के साज मधुर,,, प्रीत ने चैन लूटा
पुरवाई जब तन महकाया,,, हद बंदिशों का टूटा
 नैनों में सपने साजन के,,,धीर न आस बंधाये
 जिया में बस गए पी ऐसे,  मन को कोई न भाये

आशिकी सिर चढ़ के बोलता, ढूंढे मिलन बहाने
मुहब्बत में आकंठ डूबे , देख बुत थे जमाने..
प्रियतम का जादू जब चलता,हृद रंगीन हो जाता
नशा के इस आलम में नयन, प्रेम बूँद बरसाता

आलिंगन को तरसे प्रियेसी,  शब्द मधुर टपकाते
मिलन बेला के इन्तजार में , वो दिन रैन गवाँते...
प्रेम मदीरा जो पी लेता,,,  लोग कहते दिवाना
जवां दिल राही एक पंथ के , ख्वाब मिल के सजाना