Tuesday 26 February 2019

खुशनुमां पल

कुछ यादें दिल में ही दफनाने के लिए हैं
शायद वो रिश्ते बने आजमाने के लिए हैं

जमाने भर का गम दफना रखा है सिने में
आके देख ले कई जख्म दिखाने के लिए हैं

जाने किस बात की सजा दी क्यों भूल गया
डूबी विरह में तन्हाईयाँ तो सताने के लिए हैं

ये जिन्दगी अब तो उनके रहमो करम पे
टूटे न दिल, मुहब्बत तो निभाने के लिए हैं

इन्तजार में कट जाती है मेरी सुबहो शाम
अब तो ये दर्द सारी उम्र तड़पाने के लिए हैं

तेरा इश्क ने छिन लिया है मेरे सारे ही सुकून
एक झलक काफी कहर बरपाने के लिए हैं

प्रीत की बूँदे अब बरसा देना भींगे पलको पर
जीवन के खुशनुमां पल होते इतराने के लिए हैं

Saturday 23 February 2019

सच का नंगापन

विधा- -गीत  (ताटंक छंद)

 सत्य सुनने बोलने का मन , कहाँ रही अब लोगों की
 जान बूझ कर सब कोई क्यों,  पट्टी बाँधी आँखों की

मौन तमाशा देख रहे सब,,नंगापन बहशियों का वो
गांधारी बने समाज , बच,, न पाए दरिन्दों से वो
सभी आड़ में छल प्रपंच के ,,लूटते मनुजता को हैं
करे जान के सच अनसूनी ,, न्याय कहाँ बहरों से है
रोये हृद,सरेआम स्मिता ,,,लुटती है बच्चीयों की
जान बूझकर सब....

आँखों देखी साथ सत्य का ,,, कोई तो देने आते
दिल न पिघलता अन्याय देख , कट कर राह चले जाते
दूजे के दुख तकलीफों से , वास्ता नहीं  रखे कोई
मतलब परस्त जग में न पाक, दामन रखे सभी कोई
बेबसी की खिल्ली उड़ाना ,फितरत होती लोगों की
जान बूझकर सब ....

कराह रहा सत्य  घुट घुट कर,, रूप हकीकत के भोंडे
पर्दे के पीछे राज रहे,,,सत्य से मुँह सभी मोड़ें
तन्हा पड़ा सड़क पे सच को,,,जानके कुचल दी जाती
भाता बहुत दिल को चाशनी,,में  झूठ परोसी जाती
नमक मिर्च डाल स्वादिष्ट सच ,, आदत है चटखारे की
जान बूझकर सब...

Wednesday 20 February 2019

खुद की पहचान

राह न खुले किसी की जब तक  दिल में संकल्प नहीं
बुलन्द हौसला न हो तो उनको मिलती  मंजिल नहीं

अपने गिरेबां में सबसे पहले ,सबको झांक लेना चाहिए 
शीशे के घर में रहने वाले , किसी पे फेंकते पत्थर नहीं

दूसरे के जिन्दगी में झांकने वाले, करे खुद की फिकर
सोच की कभी उनके घर पर, पड़े किसी की नजर नहीं

दूसरे की खिल्ली उड़ाने की, लोगों की आदत है बूरी
जान ले तुम्हारा भी मखौल बनने में लगे विलम्ब नहीं

दूसरे के राहों  में गड्ढा खोदना बड़ा ही अमानुषिकता है
वक्त बदला चुन चुन कर लेता, बने खुद के दुश्मन नहीं

कर्तव्य व त्याग का पालन  कोई कोई ही किया करते
उपदेश नेकी का वही देते हैं जो खुद करते अमल नहीं

कभी कभी अपनों से हारना भी सुकून देता लोगों को
प्यार और विश्वास के बिन दिल में खिले कमल नहीं

धैर्य बेहद जरूरी जिन्दगी बार बार परीक्षा लेती है
हर किसी को आरामों सुकूं जिन्दगी मुकम्मल नहीं

नकारात्मकता हावी राग रागिनी में डूबे हैं रचनाकार
वीर रस की कविता लिखा करते हैं अब कलम नहीं

Saturday 16 February 2019

चिराग

चश्मों चिराग देश का बूझ गया
आज गम में डूब गया हिन्दुस्तां

द्रोपदी ने आज है कसमें खाई
नम दृग से लट खोलके बैठ गई
दुश्मन के लहू से केश धोएगी
प्रण पूरा करके ही जूडा बांधेगी
दुष्टों तेरे शीश ही धीर बंधाएगी
वीरों की शहादत हो न अब जाया
चश्मों चिराग देश ...

मासूमों की जिन्दगी अब उजड़ गई
दूध मुँहें बच्चे भी यतीम बन गए
माँ की आँचल फिर सूनी हो गई
चवालिस लाल क्यों शहीद हो गए
बिलख बिलख कर रो रही बेटियाँ
धर्म की आड़ में वो दहशत फैलाया
चश्मों चिराग देश ...
 
सुहाग सेज अभी ही सजी थी
मेंहदी हाथ से निकली कहाँ थी
प्रियतम के प्यार के गुल खिले
नैनों ने ख्वाब अभी तो सजाया
वादा करके गया जल्दी आऊँगा
निर्मम तुमने सुहाग उजाड़ दिया
चश्मों चिराग देश का ...

बूढ़े बाप की लाठी छीन लिया
क्यों न कर पाए पापा विदाई
सोच बेटियों का दिल टूट गया
आतंकवादी शर्म क्यों न आई
दम है सामने से ताकत दिखा
कायर तूने पीठ पर वार किया
चश्मों चिराग देश ...

अबोध  बच्चे को दिशाहीन बनाया
धर्म व पैगम्बर  का खौफ दिखा कर
बारूद और बंदुक हाथ में थमा दिया
जन्नत के ख्वाब दिखाने के बहाने
अधर्मी खुदकशी की राह भेज दिया
विश्वपटल पे नाम तेरा अमिट करना है
आतंकवाद को जड़ से अब काटना है
औकात दिखाने का समय आ गया 
चश्मों चिराग देश का ...

निहत्थे सैनिकों के चिथडें उड़ गए
हर भारतीय का दिल सिसक रहा
इस जख्म से नीर नैन के सूख गए   
शांति संदेश तुम बुजदिली समझ रहा
अब तैयार हो जाओ कफन पहनने को
सन पैसठ,एकहत्तर, कारगिल तू भूल गया
चश्मों चिराग देश का ..

देश पे कुर्बान शहीदों पर हमको फक्र है
बूँद बूँद लहू एक सूत्र में बाँध चले गए हैं
वीर बांकुरे का बलिदान व्यर्थ न जाएगा
दहशत फैला के तू देश में कोहराम न मचा
पाक  तेरा मंसूबा पर पानी फिर जाएगा
पहन तिरंगा वीरों ने देश का मान बढ़ा दिया
चश्मों चिराग देश का ...

Friday 15 February 2019

श्रद्धांजलि अमर शहीदों को

जन जन का खून खौल रहा बदले की आग में
आतंकवाद का सफाया करने से अब धीर बंधे
एक एक शीश लाया जाएगा खाते हैं हम कसमें

आज मातु भारती आँसु बहा रही
बेगुनाहों के खून से लथपथ हो रही
माताओं के गोद  उजाड़ दी  खूनी
जीवन पथ  पर हुई अकेली बहना
सुहागिन की मांग क्यों हो गई सूनी

देश उबल रहा सैनिकों की कुर्बानी के पश्चाताप में
जन जन का खून खौल रहा ...

दुश्मनों तेरा अंत अब आया नजदीक
कर ली तुमने अपनी बहुत ही मनमानी
बूँद बूँद लहू की कीमत पड़ेगी चुकानी
शहीदों की शहादत अब व्यर्थ न जाएगी
दुश्मन जान लो हमारा खून नहीं है पानी

हर भारतीय का दिल जल रहा आत्मसम्मान में
जन जन का खून खौल रहा ...

आत्मग्लानी में देश वासी जी नहीं पाएगा
आतंकवादियों को अब न बख्सा जाएगा
 देश को तोड़ने का ख्वाब देखना बंद करो
 दुष्टों तेरे नापाक इरादा कभी न पूरा होगा
दुश्मन को मुँह तोड़ जवाब दिया जाएगा

नेता अपनी रोटी सेंकनी बंद कर वोट के स्वार्थ में
जन जन का खून खौल रहा बदले की आग में

प्रेम दिवस

विधा- क्षणिका सृजन

प्रेम दिवस आया     1.
इजहार सरेआम
हाथों में हाथ लेकर
पर अंदर से छलिया
क्षणिक आवेश
दो पल में काफूर

प्रेम का बखान        2.
करते न थकते
जैसे हो कितने मर्मज्ञ
बारी आती प्रतिदान की
तो स्वीकार्य नहीं

ढोल पीटने वाले     3.
प्यार कभी न करते
नेह नयन से उतरकर
प्रविष्टि करे हृद के भीतर
झुकने न दे कभी गर्दन

मौन हृदय का स्पंदन    4.
द्व दिल तक पहुँचता
जाने कैसे लोगों में
हलचल मच जाती
जैसे तार का जुड़ा
सब में कनेक्शन

वेलेनटाइन डे मनाना     5.
प्रेम का जश्न न बने
थाम हाथ जीवन पर्यन्त
छोटी छोटी खुशियाँ
देना उम्र भर, पढ ले
प्रेम का पहला पाठ
निभाना वादा अपना

Thursday 14 February 2019

वसंत आगमन

विधा-- दोहा /चौपाई

कुसुमाकर के तीर नित , करे प्रीत बौछार ।

मन उमंग छाने लगा, लूटा हृदय करार ।।

धरती  लेती  है  अंगड़ाई
वसंत ऋतु मधु रस बरसाई

अति प्रीती वसुधा पर छाई

 रोम रोम महि के पुलकाई

फूली  सरसों   पीली   पीली
दिल में पलती आस सजीली

छाई  खेतों  में   हरियाली
बाली  गेहूँ की  झुक डाली

अमिया में मंजर भर आई
नेह गंध मन  को  बहकाई

रुत  हसीन  रंगीन   नजारे
विरही मन भी सजन पुकारे

भरमाया ऋतुराज मन , नयी नयी करतूत ।
खिले सभी दिल हर्ष से,,लदे वृक्ष शहतूत।।

खिले पुष्प चहुँ ओर  घनेरे
विरहन हृद सुधियों के  डेरे  ।।

तरुण वृन्द की बढ़त है जारी,
कुहुक लगे कोकिल की प्यारी

द्वय  दृग नम मन हुआ फकीरा
बजते   हैं  ढप   ढोल   मँजीरा

खिलते उपवन - उपवन टेसू
उड़ते    हैं   गोरी    के   गेसू

मैल दिलों के लगे उतरने
रंग प्रीति  का लागा चढ़ने

लाई होली  खुशियाँ  सारी
रंगी  पिया  ने  काया सारी

बगिया में गुल खिल गये ,भ्रमर दिल गया डोल ।
दिल होली में मिल गये ,नाते हैं अनमोल ।।

Wednesday 13 February 2019

छल- प्रपंच

विधा- -दोहा

धोखा रिश्तों में सभी ,,,खून नहीं हैं  पाक
खंजर भोंके पीठ में ,,करता रिश्ता खाक

मीठी मीठी बोल ही ,,,छलिया का है शौक
आता हितैषी बन, घर ,,घुमे  बेरोक  टोक

करीबी  देता धोखा ,,, आँखें अपना खोल
जहर  मीठा जीवन में,,,,दुष्ट रहा क्यों घोल

चरित्र हंता  खास  हो,,,, किस पर करें यकीन
सुरक्षित न सुता घर में  ,,,, बने  अपने  रकीब

अविश्वास से सब डरा ,,सगा दिल रहा तोड़
धोखेबाज जाने कब ,, देता  जीवन  मोड़

आम जनता पीड़ित हैं  ,,,, नेता  बोले  झूठ
काम ठगना बहलाना ,,,, उन्हें वो रहे  लूट

करे वादा रोज नया,,,,बना  सबों  में  पैठ
 मारता गरीब का हक,,बनता  धन्ना  सेठ

घर बर्बाद हो जाता,,,, करे  अपने   फरेब
हिले सिंहासन छल से ,,,करता न माफ देव
  
 प्रभाव अधर्म का बढ़ा ,,डूब गया संसार
 अस्मिता छीन नारि की,,होता न शर्मसार
 

Saturday 9 February 2019

प्रेम संदेश

विधा- -गीत

दूर गए हैं मेरे सजना,,,,  भेज रही  प्रेम  संदेश
उन बिन हूँ अधूरी ,परिन्दें ,,पत्र ले जा उनके  देश

हो गयी मैं कितनी अकेली,,,,गई सखियाँ संग बालम
भेज रही मैं चिठ्ठी में दिल ,,, तुझ बिन है उदास शाम
करूँ याद वो प्यारी सूरत ,,तुम बिन दिन नहीं  विशेष
दूर गए हैं मेरे .....

बातें मीठी मन में ढ़ेरो ,,,पर करूँ मै किसके संग
प्यार मनुहार के मधुरिम पल ,,,भर रहे नैनों में रंग
आ धमका ऋतु बसंत, विरह,,,बढा रहे उर के क्लेश
दूर गए हैं मेरे .......

भ्रमर कली पे प्रमुदित,,, आ रखा मधुमास नेहिल
कूक कोकिल की न भाये,,हृद में अब न नेह स्नेहिल
सुप्त हैं धड़कनें हुए सर्द नब्ज ,,,बढे हृदय के आवेश
दूर गए हैं मेरे ...

निश दिन तकती तेरी राह,,,रोज रवि के ढलने तक
द्वय नयनों से मोती टपके,,,हर आहट चौंके पलक
नयनों में बीत रही रैन,,,, प्रिये  गुम  हैं  मेरे  होश
दूर गए हैं मेरे ....

भूल गए विदेश में क्यों,आ के,, प्रीत गंधिल बरसाओ 
हर लफ्ज में है दर्द व आँसू,,,पत्र पा पी जल्दी आओ
भारी पड़ता एक एक क्षण ,,,,कर  वियोग के  रैन  शेष
दूर गए हैं मेरे सजना,,,, भेज  रही  प्रेम  संदेश

Friday 8 February 2019

इज्जत

किस्मत मेरे संग जो हुए होते
परवान मुहब्बत चढ़ गए होते

प्रेम को पूजना कौन जानते हैं
काश ये रोग हम न लगाए होते

वफा की कीमत नहीं देते कोई
प्यार के अंजाम जान लिए होते

बात बिन पिए भी निकल जाती
दर्द ए दिल को आस दिखाए होते

प्यार को हरदम बदनामी मिलती
यार कभी इज्जत भी दे दिए होते

हर बार प्यार को इम्तहान देना पड़ता
दिलबर तुम विश्वास तो कर लिए होते

हमारी लाड़ली कभी रूसवा न होती
कोई लफंगें बुरी नजर न गड़ाए होते

सुपथ

विधा - - - -सार ललित छन्द

भीड़ में सब एक दूजे को ,,,रौंद ही डालते हैं      1.
चींटी चलते पंक्ति बनाकर ,, मनु नियम तोड़ते हैं
धीरज धर ले हर कोई तो,,,घटना टल सकती है
कभी न कुंभों के मेले में ,,,भगदड़ मच सकती है

होड़ लगी लोगों में कैसी,,,सब में मारा मारी          2.
छीने भाई के हक, लालच ,,अब रिश्तों पे भारी
जिनको कद्र नहीं रिश्तों का,,उसे कौन अपनाया
लगे बोझ माता पिता जिन्हें ,, समझो विनाश आया

जगह मिले सबको ही अपना ,,ये तो हक जन जन का 3.
छीने न कोई किसी का हक, समाज हो समता का
अनुशासन से इंसानों का,,व्यक्तित्व निखर जाता
सत्य की राह में शूल भले,, युग पुरुष न घबराता

निस्काम कर्मों से फल मिले,,,यही भाव गीता का      4.
काम  क्रोध,लोभ,मद छोड़ने ,, पे उत्थान सबों का
बैर भाव का जो त्याग करे,,,निर्मल मन हो जाते
दुख में दया प्रेम दिखलावे ,,, वही मनुज कहलाते

Thursday 7 February 2019

साजिशें

विधा -कुन्डलियां

साजिश हमेशा रचना ,,शातिरों का स्वभाव
किसी को न खुशियाँ मिले,,देता सबको घाव
देता सबको घाव,,,,वार तो दिल पर करता
मिलता दुख दे चैन ,, क्यों वो घात में रहता
उगे बैर के अंकुर  ,,,,  घर टूटे, यही ख्वाहिश
  दुष्ट शातिर, समाज,, को तोड़, रचता साजिश

   शातिर दाल गली जभी,,मिट जाता परिवार
   रिश्ते में हो साजिशें ,,,दिल  टूटे  सौ  बार
  दिल टूटे  सौ बार ,,,  प्रेम का अंत हो जाता
  नफरत से कभी भी  ,, रिश्ता जुड़ नहीं पाता
  रेत पर महल टिके,,न बचे किसी की जागिर
 एक जुटता हो जब,, चलता न चालें शातिर

मकसद स्वार्थ  सिद्धि हो ,,,, उनका न एतवार
रिश्ते में  विश्वास हो ,,,,बहे  प्रेम  रस   धार
बहे प्रेम रस धार,,,, सभी मिल जुल कर  रहना
प्रेम डोर न टूटे,,,,  त्याग  का मूरत बनना
अपनापन दिलों में ,,, जब बीच न हो कभी मद
रिश्ता बिखरता जब,,,,लालच स्वार्थ हो मकसद

शर्म हया

विधा--कुन्डलियां

हया शर्म है फालतू,,,,कहता हर नर नार
मंजूर नहीं पाबंदी  ,,,पृथक उसका संसार
पृथक उसका संसार ,,,नये फैशन ही भाता
रोक टोक, बिन लगाम,,,सभी घोड़े दौड़ाता
मनमानी सब करे,,,मर्यादा ताक रख दिया
संस्कार की न बात ,,, उनको अब न शर्म हया

माता पिता के आदर्श,,,संतान गए भूल
पूरी करने वो इच्छा,,,, अदब उड़ाता धूल
अदब उड़ाता धूल,,भूल गया लाज शर्म सब
आधुनिकता हावी ,,,,हुआ,करे विचार न अब
अंकुश रहा न उनपर ,,,, नहीं सुझाव ही भाता
पाश्चात का शिकार,,, न हो सुत, डर में माता

गहना स्त्री का लाज है ,,,,रख लो  इसे संभाल
भली लगती नैन झुकी  ,,,, शर्म  से  लाल गाल
शर्म से लाल गाल,,,, रूप और निखर जाता
पर्दा में है सुरक्षा ,,,  छेड़  छाड़  न  हो  पाता
तहजीब संभाल के ,, सबका सम्मान रखना
इज्जत देंगे लोग,,,,लाज  नारी  का   गहना

Tuesday 5 February 2019

बुढापा

विधा--  छंद मुक्त कविता

यौवन में है विचित्र नशा
मुहब्बत में दिल आशना
नैनों में आसक्ति का चश्मा
दिखता है रंगीन ज़माना

नेह सिक्त उर में प्रेमालाप
देह गंध से मदमाता यौवन
ऋतु ने छोड़ा प्रीत का चाप
करे मकरंद पुष्प अधर पान

हृदय द्व भी मचला करते
नर्म साँसों के आवेग बढ़े
प्रेम सुधा को सब तरसते
प्रीतम के मूरत दिल में गढ़े

उतार चढ़ाव चढ़े जीवन के
नेह संग व्यतीत करे दिन रैन
ख्वाबों के रंग भरे जब पलकें
सजन के राह निहारा करे नैन

जब ढले उम्र सिसके कोने में
पीर किसे दिखे साथी न संग में
एक एक क्षण जीना हुआ दूभर
कैसे जिए अब हम अकेलेपन में

बुढ़ापा बन गया है अब सजा
बुजुर्गों को देख कर हँसने वाले
उम्र ढ़लने के बाद ही पता चले
रोने के लिए कंधा उन्हें न मिले

Sunday 3 February 2019

दहलीज के पार

विधा- -अतुकान्त

दहलीज़ 
शब्द हमेशा
चिपका रहता है
हर नारी के माथे पर..
इससे निकल कर
अपना आसमान ढूंढना
बेहद मुश्किल होता उन्हें ..
पर जीजिविषा हो तो
इतना कठिन भी नहीं !
हाँ याद है अब तक ...
किस तरह एक मेधावी
लड़की अपने पंख
खुद काटकर
सिमट के रह गई थी
अपने ही बनाए
दहलीज़ में ....!
किशोर वय में ही
ब्याह रचा देना और
बच्चों की परवरिश में
अपना अस्तित्व
नियति के हवाले कर
खुशियों को तलाशना
रूचिकर लगता..
इन्हीं के बीच उसने
खुद को समेट लिया
जैसे भूल ही गई अपनी हस्ती ..
एक बच्चे के आने के बाद भी
हाँ पढ़ाई उसने पूरी कर ली थी ।
बच्चे, परिवार, जिम्मेदारी
के बीच आकांक्षा
कभी कभी हिलोरें
मारती भी तो शांत कर देती ..
जैसे आंधी के बाद
निःशब्द हो जाता
पवन, धरा, वातावरण ।
धीरे धीरे उम्र बढ़ चली
अब जिम्मेदारी भी पूरी
होने के कगार आ ही गई ...
अब खाली दिन ..खाली रातें
पति व्यस्त... बच्चे मगन
अपनी दुनिया में ..!!
अब कुछ पाने की लालसा
कुलबुलाने लगी...उसे
अस्तित्व मिटाने की भूल से
पीड़ित वो छटपटाने लगी
लेकिन फिर ...
वही दहलीज़  रास्ता रोककर
खड़ी हो गयी ..पर कुछ पाना है तो
दहलीज के पार जाने की
हिम्मत तो जुटानी ही पड़ेगी...!!
अब गलतियाँ दुहराना उसे मंजूर नहीं..।
विज्ञान विषय की छात्रा होने के बावजूद
कलम को अपना साथी बनाया
दादा संस्कृत, पापा अंग्रेजी
चाचा हिन्दी के प्रकांड विद्वान थे
शायद खून में सृजन था ...
अनायास बढ़ चली
बिन गुरू उस राह...
भावों की अभिव्यक्ति
शब्दों की माला पिरोकर
रचने लगी सृजन
आखिर कार गुरु भी मिले ...अब
कठिन परिश्रम से नई मंजिल को
वो तलाशने निकल पड़ी ...
दहलीज़ के उस पार ...!!


Saturday 2 February 2019

प्रीत की आँच

विधा --गीत

कहर ढाता सारा ज़माना ,,,जब लगे दिल की लगी
बुझे न आँच प्रीत की,सांवरी, सपने सजाने लगी

जब नयनों ने इजहार किया,,,  हलचल हुई दिलों में
सजने लगे ख्वाब ,उम्मीदें ,,,   जवां  हुई  नैनों  में
प्रेम रोग जब लगे किसी को,,  हार सभी दिल जाता
पी लिया विष मीरा ने, प्रेमी ,, जिन्दगी वार जाता 

जकड़ ले जंजीरों में फिर भी, जख्म अब भाने लगी
बुझे न आँच ...

नश्तर सी चुभ रही दिलों पे ,, कटार विष वाणों से
बंदिशें न रोक सके उन्हें ,,,, डरते   फरेबियों   से
छल प्रपंच न हो, रिश्ते भी,,,दिल में आबाद  होता
बिन स्वार्थों का प्रेम हो जब ,, जग में अमर हो जाता

अब जीना मरना संग उनके ,,वो मुस्कुराने लगी
बुझे न आँच  ...

कोई मिटा दे चाहे हस्ती  ,,रूह कभी न मर सकता
मिलना बिछुड़ना रीत जग की, जिन्दा मुहब्बत रहता
दिलों में काँटे चुभो दो,तोड़,,,,सके न डोर प्रीत के
शाश्वत सत्य सब कोई मान,,,प्रेम आधार  जग  के

राह जो ठान ले मुड़े नहीं ,,,,प्रेम पथ चलने लगी
बुझे न आँच प्रीत की, बावरी,,सपने सजाने लगी

Friday 1 February 2019

अनोखी दास्तान

विधा --दिग्पाल छंद

दादू से बचपन में ,, ,,कई कहानियाँ सुनी
उषा प्रद्यम्न की कथा,,,किशोर वय में जानी
प्रद्यम्न का प्रेम छुप न ,, सका, दादा कृष्ण से
बाणासुर को संदेश,,,,भेजा शांति दूत से

ब्याह प्रस्ताव उसने ,,, गुस्से से ठुकरा दी
प्रेमी द्व को मिलाने,,, की योजना बना दी
बाणासुर की बेटी ,,,,श्री कृष्ण ने हर लिया
ऊखीमठ में पोता ,, का विवाह करा दिया

भा गई मन को, प्रीत ,, की दास्तान अनोखी
पवित्र प्रेम एक सत्य ,, यही सच्चाई दिखी
नेह के कोंपल खिले,, जब यौवन आया था
मिल गए राजकुमार,, स्वाब पूरा हुआ था

युग बदला, बदल गए ,,,,वक्त के साथ हम भी
जम गई धूल कितनी ,,,,  नामोनिशान  पर भी
  बना संजोग आ गई ,, पवित्र स्थान देखने
अब भी कुंड अक्षुण है ,,,उषा खड़ी अंजाने