रविधा --पदपादाकुलक छंद
ओ पिया आ गया वसंत है
उनमुक्त भ्रमर बाग में है
खिल रही कली उर में मेरी
तकती राहें निश दिन तेरी
सज संवर सजनी इठलाती
पी संग सखी नयन मटकाती
रंग रही रूत सबके उर्मी
मधुमास में मिले द्वय प्रेमी
कोयल की कूक अब न भाती
छन छन पायल शोर मचाती
साजन बिन सब फीका लगता
बैरी पी याद नहीं करता !
सज धज दुल्हन बनी मही
ख्वाबों के झूला पींग रही
मन भाए खुशबू कलियों के
आया आलम मदहोशी के
नव पल्लव से तरु प्रमुदित
मन कूँज प्रीत से सुवासित
कुसमित कानन दिल हर्षाए
प्रियतम हृदय बहुत बौराए
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