Saturday 9 March 2019

मनमीत

विधा- गीत

जल रही मैं सदियों से , तेरी ही प्रतिक्षा में
जम रही अब सुधियों के धूल,ले लो तुम पनाह में

जीवन दीया के मैं बाती ,,तुम भी घृत बन जाना
बुझने ना देना आस पिया, जोत प्यार के जलाना
मिलके सुख दुख बाँटू हो सिर्फ ,नेह छैया अंगना में
जल रही मनमीत सदियों से ....

प्रेम अगन में जलती हर दिन,,आँधी बुझा न डाले
डरती दुनिया के नजरों से,,, हैं दिल सबके काले
आ एक दूजे को थाम, हो,,,जाए फना संसार में
जल रही मनमीत सदियों से ....

नारी तो बाती होती है,,पुरुष है ज्वलन शक्ति 
अधूरे एक दूजे बिन है,,द्वय दिलों की आसक्ति
हम संग हो तो अपने चमके,,सितारे आसमां में
जल रही मनमीत सदियों से ,तेरी ही प्रतिक्षा में

दो दिल जब मिलते हैं प्रेम दीपक पथ रौशन करे
नर बिन नारी है अधूरी,, कौन इससे इंकार करे
यही सत्य है सृष्टि का नींव ,,नर नारि के मिलन में
 जल रही मनमीत सदियों से,तेरी ही प्रतीक्षा में
जम रही सुधियों के धूल ,ले लो तुम पनाह में  ।।

प्रो उषा झा रेणु 

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