लुप्त हरियाली से क्षुब्ध है वसुन्धरा
बिन बरसे नभ में घुमड़ रहे हैं बदरा
बिन नीर ताल तलैया सब सूखे पड़े
ग्लोबल वार्मिंग से मनुज संभल ले जरा
धुआँ धुआँ है जिन्दगी जलती पराली
गाड़ी की भीड़ ने आफत बुला डाली
दूषित पर्यावरण में है बेबस जीवन
नित्य नीर बहाते हैं प्रकृति के माली
प्रकृति के संग खिलवाड़ अति महंगा पड़ा
कहीं कहीं जल प्लावन कहीं सूखा पड़ा
भूख से बिलख रहे सब, मानव लाचार
मृदा क्षरण से अब सारा जहान उजड़ा
पशु भूखा है खोज रहा हरियाली
घोसला बिन पक्षी के,कानन खाली
उभर रहे नदियों में रेत और बालू
जल बिन तड़पे मछली,जलाशय खाली
नादां इन्सां कंक्रीट के जाल बुन रहे
दिन प्रतिदिन पर्यावरण नष्ट कर रहे
वृक्ष कटान व केमिकल गैस से दुखी मही
रुग्ण सभी, दूषित वायु सांस में घुल रहे
जाग जा मनुज, वृक्ष लगा कर वृष्टि करा दे
पैदल चलकर अब प्रदूषण को हरा दे
कूड़ा का निस्पादन न ही यत्र तत्र कर
लो कपड़े की थैली प्लास्टिक बंद कर दे
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